रविवार, 22 सितंबर 2013

अब हवाई अड्डें निजी निजी हाथों में !

शतप्रतिशत हिस्सेदारी पर छह हवाई अड्डो का निजीकरण करने की योजना
ओ.पी. पाल

केंद्र सरकार ने हवाई अड्डों के संचालन का जिम्मा निजी क्षेत्र में देने की प्रक्रिया को और तेज कर दिया है, जिसमें भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण संचालित कोलकाता, गुवाहवटी तथा जयपुर हवाई अड्डो के परिचालन तथा प्रबन्धन के लिए निविदांए आमंत्रित कर दी गई है। इससे पहले एएआई चेन्नई तथा लखनऊ हवाई अड्डों को संचालित करने के लिए पहले ही निजीकरण की नीति के तहत निजी कंपनियों को स्थानांतरिक किए जाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
नागर विमान मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार आर्थिक तंगी से जूझ रहे भारतीय विमानन के सुधार के लिए सरकार को ऐसे निर्णय लेने पड़ रहे हैं। एएआई द्वारा संचालित चेन्नई और लखनऊ हवाई अड्डो को निजी पक्ष को स्थानांतरण करने की प्रक्रिया की जा रही है। इन दो हवाई अड्डो के बाद भारतीय विमाननपत्तन प्राधिकरण ने अब अब कोलकाता, गुवाहाटी तथा जयपुर हवाई अड्डों के परिचालन तथा प्रबंधन के लिए बोलियां आमंत्रित की हैं। सूत्रों के अनुसार सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) माडल में सरकार फिलहाल छह हवाई अड्डों के परिचालन के लिए निजी कंपनियों को 100 प्रतिशत हिस्सेदारी लेने की प्रक्रिया पर कार्यवाही कर रही है। यदि इसके नतीजे सकारात्मक रहे तो देश के हवाई अड्डों को भी पीपीपी मॉडल के तहत संचालित किया जा सकता है। दो हवाई अड्डों की निजी कंपनियां तय होने के बाद सरकार ने तीन और हवाई अड्डों के लिए पात्रता के लिए आग्रह (आरएफक्यू) आमंत्रित किया है। इसके बाद अहमदाबाद हवाई अड्डे का निजीकरण करने की भी योजना है। सूत्रों का कहना है कि अहमदाबाद के लिए आरएफक्यू जल्द जारी किया जाएगा। सूत्रों ने कहा कि चुनी गई निजी कंपनियों को कोलकाता, गुवाहाटी तथा जयपुर हवाई अड्डों के लिए वायु तथा शहर में विभिन्न कार्यों के लिए क्रमश: 700 करोड़, 600 करोड़ तथा 550 करोड़ रुपये की राशि खर्च करनी होगी। नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों का कहना है कि प्राधिकरण ने यह कदम राजस्व हासिल करने की दिशा में देश के प्रमुख हवाई अड्डों दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद तथा बंगलुरु के आंशिक निजीकरण के परिणामों को देखते हुए उठाया है।
एयर इंडिया का निजीकरण नहीं
पिछले साल भारतीय कंपनी मामलों यानि आईआईसीए की एक रिपोर्ट में भारतीय विमानन कंपनी एयर इंडिया को आर्थिक संकट से उबारने के लिए आंशिक रूप से निजीकरण करने का सुझाव दिया गया था। इस रिपोर्ट के आने के बाद उस समय भी नागर विमानन मंत्री चौधरी अजित सिंह ने ऐसी संभावना से इंकार करते हुए कहा था कि सरकार एयर इंडिया के निजीकरण के पक्ष में नहीं है। सूत्रों के अनुसार सरकार एयरलाइन के पुनर्गठन के लिए तीस हजार करोड़ रुपये से ज्यादा की पूंजी डाल रही है। वहीं एफडीआई लागू होने के बाद सरकार ने राजस्व वृद्धि की दिशा में कई अन्य ठोस कदम भी उठाए हैं, जिसके चलते सरकार को विमानन कंपनी के निजीकरण करने के पक्ष में नहीं है।
22Sept-2013

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