सपा सरकार में कम हो गई थी इन अफसरों की अहमियत
ओ.पी. पाल
मुजफ्फरनगर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में जब तीन दिन तक राज्य की सपा सरकार नाकाम रही, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बसपा शासनकाल में दंगा रोकने के माहिर माने जाने वाले मायावती के चेहते अफसरों की तैनाती करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसका नतीजा मंगलवार को देखने को मिला, जहां शहर में लागू कर्फ्यू में ढील दी गई।
उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक हो रहे सांप्रदायिक दंगों खासकर मुजफ्फरनगर की हिंसा को रोकने में नाकाम साबित हो रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बसपा प्रमुख मायावती के उन चेहते अफसरों की याद आई, जिन्होंने बसपा शासनकाल में राज्य में एक भी दंगा नहीं होने दिया और उन्होंने दंगा रोकने की महारत हासिल है। बसपा से सत्ता कब्जाने के बाद सपा के मुख्यमंत्री ने इन अफसरों को तैनात करने में ज्यादा अहमियत नहीं दी थी। इसके बावजूद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यह भी जानते थे कि इन अफसरों की काबलियत किसी से कम नहीं है। इस काबलियत को भांपते हुए ही राज्य सरकार को इन अफसरों की सोमवार को ही दंगा रोकने के इरादे से मुजμफरनगर, शामली जिलों तथा सहारनपुर व मेरठ मंडल में तैनाती करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
अनुभवी और दबंग में गिनती
सरकार द्वारा दंगा नियंत्रण करने के लिए प्रवीण कुमार को मुजμफरनगर का एसएसपी बनाया गया है जो मायावती शासनकाल में दो साल आठ महीने यहां इसी पद पर रह चुके थे, जिन्हें सपा सरकार ने पीएसी की 41वीं बटालियन का कमाण्डेंट बना रखा था। इसी प्रकार मेरठ के आयुक्त बनाये गये भुवनेश कुमार भी बसपा शासनकाल में मुजफ्फरनगर के डीएम रह चुके थे। इसी प्रकार सहारानपुर के डीआईजी बनाये गये अशोक मुथा जैन भी मुजफ्फरनगर में तैनात रह चुके हैं, जिन्हें सपा सरकार आते ही हटा दिया गया था। इसी प्रकार मेरठ रेंज के आईजी के रूप में तैनात भवेश कुमार यहां पहले डीआईजी रह चुके हैं। अखिलेश सरकार ने बसपा शासनकाल में महत्वपूर्ण पदों पर रहे इन अफसरों की अहमियत कम कर दी थी।
दंगा निरोधक दल में भी माया के चेहते
विजय भूषण की गिनती मायावती के बेहद खास अफसरों में होती है, जो मायावती सरकार के दौरान गाजियाबाद में एसपी के पद पर तैनात थे और 2008 में गाजियाबाद में जब स्कूली बच्चों के झगड़े ने सांप्रदायिक तनाव का रंग लिया तो विजय भूषण ने तुरंत उसपर काबू पाया था। सपा सरकार ने अब विजय भूषण को मुजफ्फरनगर भेजकर दंगाग्रस्त इलाके में उनके अनुभव को आजमाने का निर्णय लिया है और उन्हें बनाये गये दंगा निरोधक दल में शामिल किया है। इसी प्रकार बसपा सरकार के दौरान एसटीएफ के एसएसपी रह चुके अमित पाठक को भी अखिलेश सरकार ने दंगा नियंत्रण इलाके में भेजकर इस दल में शामिल किया है, पाठक अभी तक अलीगढ़ के एसएसपी थे। इनके अलावा इस दल में बसपा सरकार के दौरान डीआईजी रहे राजीव सब्बरवाल को बरेली और मथुरा में हुए सांप्रदायिक तनाव की काबिलियत को भांप कर दंगाग्रस्त इलाके में भेजा गया है। सब्बरवाल आतंकवादी निरोधी दस्ते के आईजी हैं, जिन्हे दंगाईयों से निपटने के तकनीकी का विशेषज्ञ माना जाता है। इसी प्रकार बसपा के चेहते मेरठ के डीआईजी रह चुके जेएन सिंह को भी दंगाईयों से निपटने की काबलियत है, जिन्हें पुलिस मुख्यालय के शिकायत प्रकोष्ठ से तत्काल बागपत में तैनात कर दिया है।
ओ.पी. पाल
मुजफ्फरनगर में भड़की सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में जब तीन दिन तक राज्य की सपा सरकार नाकाम रही, तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बसपा शासनकाल में दंगा रोकने के माहिर माने जाने वाले मायावती के चेहते अफसरों की तैनाती करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसका नतीजा मंगलवार को देखने को मिला, जहां शहर में लागू कर्फ्यू में ढील दी गई।
उत्तर प्रदेश में एक के बाद एक हो रहे सांप्रदायिक दंगों खासकर मुजफ्फरनगर की हिंसा को रोकने में नाकाम साबित हो रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को बसपा प्रमुख मायावती के उन चेहते अफसरों की याद आई, जिन्होंने बसपा शासनकाल में राज्य में एक भी दंगा नहीं होने दिया और उन्होंने दंगा रोकने की महारत हासिल है। बसपा से सत्ता कब्जाने के बाद सपा के मुख्यमंत्री ने इन अफसरों को तैनात करने में ज्यादा अहमियत नहीं दी थी। इसके बावजूद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव यह भी जानते थे कि इन अफसरों की काबलियत किसी से कम नहीं है। इस काबलियत को भांपते हुए ही राज्य सरकार को इन अफसरों की सोमवार को ही दंगा रोकने के इरादे से मुजμफरनगर, शामली जिलों तथा सहारनपुर व मेरठ मंडल में तैनाती करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
अनुभवी और दबंग में गिनती
सरकार द्वारा दंगा नियंत्रण करने के लिए प्रवीण कुमार को मुजμफरनगर का एसएसपी बनाया गया है जो मायावती शासनकाल में दो साल आठ महीने यहां इसी पद पर रह चुके थे, जिन्हें सपा सरकार ने पीएसी की 41वीं बटालियन का कमाण्डेंट बना रखा था। इसी प्रकार मेरठ के आयुक्त बनाये गये भुवनेश कुमार भी बसपा शासनकाल में मुजफ्फरनगर के डीएम रह चुके थे। इसी प्रकार सहारानपुर के डीआईजी बनाये गये अशोक मुथा जैन भी मुजफ्फरनगर में तैनात रह चुके हैं, जिन्हें सपा सरकार आते ही हटा दिया गया था। इसी प्रकार मेरठ रेंज के आईजी के रूप में तैनात भवेश कुमार यहां पहले डीआईजी रह चुके हैं। अखिलेश सरकार ने बसपा शासनकाल में महत्वपूर्ण पदों पर रहे इन अफसरों की अहमियत कम कर दी थी।
दंगा निरोधक दल में भी माया के चेहते
विजय भूषण की गिनती मायावती के बेहद खास अफसरों में होती है, जो मायावती सरकार के दौरान गाजियाबाद में एसपी के पद पर तैनात थे और 2008 में गाजियाबाद में जब स्कूली बच्चों के झगड़े ने सांप्रदायिक तनाव का रंग लिया तो विजय भूषण ने तुरंत उसपर काबू पाया था। सपा सरकार ने अब विजय भूषण को मुजफ्फरनगर भेजकर दंगाग्रस्त इलाके में उनके अनुभव को आजमाने का निर्णय लिया है और उन्हें बनाये गये दंगा निरोधक दल में शामिल किया है। इसी प्रकार बसपा सरकार के दौरान एसटीएफ के एसएसपी रह चुके अमित पाठक को भी अखिलेश सरकार ने दंगा नियंत्रण इलाके में भेजकर इस दल में शामिल किया है, पाठक अभी तक अलीगढ़ के एसएसपी थे। इनके अलावा इस दल में बसपा सरकार के दौरान डीआईजी रहे राजीव सब्बरवाल को बरेली और मथुरा में हुए सांप्रदायिक तनाव की काबिलियत को भांप कर दंगाग्रस्त इलाके में भेजा गया है। सब्बरवाल आतंकवादी निरोधी दस्ते के आईजी हैं, जिन्हे दंगाईयों से निपटने के तकनीकी का विशेषज्ञ माना जाता है। इसी प्रकार बसपा के चेहते मेरठ के डीआईजी रह चुके जेएन सिंह को भी दंगाईयों से निपटने की काबलियत है, जिन्हें पुलिस मुख्यालय के शिकायत प्रकोष्ठ से तत्काल बागपत में तैनात कर दिया है।
11Sept-2013
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