शनिवार, 4 मार्च 2017

मणिपुर: जातिगत समीकरण की सियासत हावी

सुरक्षा के साय में पहले चरण का चुनाव आज
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मणिपुर की 60 में से 38 सीटों पर पहले चरण में शनिवार को वोटिंग कराई जाएगी, जिसके लिए 168 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। राजनीतिकारों की माने तो यूपी की तरह मणिपुर में भी जातिगत समीकरण चुनाव के दौरान हावी रहते हैं, जिनके आधार पर केई दिग्गजों की अग्नि परीक्षा होनी है।
मणिपुर में शनिवार को होने वाले विधानसभा चुनाव के पहले चरण के मद्देनजर राज्य में सुरक्षा के चाक चौबंद इंतजाम किए गए हैं। हिंसा की आग में झुलसे सूबे के पहले चरण की 38 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव मैदान में उतरे 168 प्रत्याशियों के सामने 19,02, 562 मतदाताओं का चक्रव्यूह तैयार है। इनमें 9.28 लाख 573 पुरुष मतदाता है जबकि 9.73 लाख 989 महिला मतदाता शामिल हैं। खासबात है कि इस चरण में पहली बार मतदान करने वाले 45, 642 ऐसे युवा मतदाता हैं, जो चुनाव परिणाम बदलने की कुबत रखते हैं। इस चरण में 1,643 पोलिंग स्टेशन बनाए गए हैं, जिसके दायरे में पश्चिमी और पूर्वी इंफाल, विष्णुपुर और मणिपुर का पहाड़ी क्षेत्र चूरचांदपुर और कांगपोक्पी इलाका शामिल हैं।
क्या है जातीय सियासत
पूर्वाेत्तर के इस राज्य की 60 सीटों में से एक-तिहाई आरक्षित हैं। इनमें से एक सीट अनुसूचित जाति के उम्मीदवार के लिए है तो 19 अनुसूचित जनजाति के। राज्य में कुछ सीटों पर मुसलमान आबादी ज्यादा है। इसके बावजूद स्थानीय समीकरणों का ध्यान रखते हुए भाजपा ने महज एक मुसलिम उम्मीदवार को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने तीन। राज्य के वोटर मैतेयी, कूकी व नगा तबके में बंटे हैं। पर्वतीय इलाके की 20 सीटों पर नगा वोटर निर्णायक हैं तो घाटी में मैतेयी और कूकी। नगा संगठन यूनाइटेड नगा कौंसिल ने बीते साल पहली नवंबर से ही अलग जिलों के गठन के मुद्दे पर आर्थिक नाकेबंदी कर रखी है। ाणिपुर के नौ फीसद मुसलिम मतदाता यहां भी राजनीतिक दलों की किस्मत बनाने या बिगाड़ने में सक्षम हैं। यहां इस तबके को पांगल या मैतेयी पांगल के नाम से जाना जाता है। नजमा के खिलाफ फतवा जारी करने वालों ने इसकी कोई वजह तो नहीं बताई है, लेकिन समझा जाता है कि वे उसके चुनाव मैदान में उतरने से नाराज हैं। नजीमा ने शर्मिला के साथ राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला से मुलाकात कर उनको इस फतवे के बारे में जानकारी दे दी है।
पूर्वाेत्तर के मुद्दे अलग
मणिपुर के चुनाव प्रचार के दौरान सभी राजनीतिक दलों ने यूनाइटेड नागा काउंसिल की ओर से राज्य में आर्थिक नाकेबंदी और राज्य सरकार की नाकामयाबी के मुद्दे पर मुख्य फोकस करने का ज्यादा प्रयास किया है। जबकि राजनीतिकार मानते हैं कि इसका कारण इस सूबे में बड़े मुद्दों में भ्रष्टाचार, फंड का दुरुपयोग और कानून व्यवस्था जनता के जहन में हैं। हालांकि सबसे प्रमुख समस्या राज्य के दो हाईवे के बंद होने और तीन माह के आर्थिक नाकेंबंदी के मुद्दे को भी हवा दी जा रही है। पहली बार मणिपुर की सियासत में सभी की नजरें सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला पर होंगी। जिन्होंने हाल ही में अपनी 16 वर्षीय लंबी भूख हड़ताल को समाप्त कर एक नई पार्टी बनाकर चुनावी मैदान में हैं। इरोम शर्मिला की नई पार्टी का नाम पीपल्स रिसर्जेंट एंड जस्टिस एलायंस है।
04Mar-2017

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