सोमवार, 27 मार्च 2017

अफ्रीकी देशों को भाई ये भूजल संरक्षण तकनीक!

जल स्वावलम्बन अभियान से सूबे में बढ़ने लगा भूजल स्तर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राजस्थान के आदिवासी इलाकों में जल संकट से निपटने के लिए भूजल स्तर को बढ़ाने की दिशा में राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रही मुख्मंत्री जल स्वावलम्बन अभियान में पानी की बूंद-बूंद को संचित करने के लिए जिस अनोखी तकनीक को अपनाया जा रहा है, उससे जल्द ही राजस्थान के रेगिस्तानों में हरियाली नजर आएगी।
दुनिया में जल सरंक्षण को लेकर ऐसी बहस चल रही है कि अगल विश्वयुद्ध पानी को लेकर ही होगा। इसलिए जल सरंक्षण को लेकर भारत ही नहीं, बल्कि दुनियाभर के देश सतर्क होकर तकनीक के जरिए भूजल स्तर बढ़ाने में जुटे हुए हैं। राजस्थान के रेगिस्तानों खासकर बांसवाड़ा जिले के आदिवासी क्षेत्रों में तो वर्षा के जल की बूंद-बूंद को भूजल स्तर बढ़ाने में इस्तेमाल की जा रही तकनीक के जल स्वावलम्बन अभियान के तहत सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं। यही कारण है कि केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती भी देश में बुंदेलखंड जैसे सूखाड इलाके में इस तकनीक को अपनाने की तैयारी में हैं। दरअसल राजस्थान सरकार ने एमजेएसए जैसी योजना का नेतृत्व कर रहे राजस्थान बेसिन प्राधिकरण का चेयरमैन श्रीराम वेदिरे की इस तकनीक को देखने के लिए कई अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधि भी आदिवासी इलाकों का दौरा करने के बाद उन्होंने ऐसी रूचि दिखाई कि अफ्रीकी देशों ने भी इस तकनीक से भूजल स्तर की योजना को तेजी से लागू करना शुरू कर दिया है। वहीं बांसवाडा के आदिवासी क्षेत्रों में इस तकनीक को अपने देश के कई राज्यों में अपनाया जाने लगा है।
क्या हुआ तकनीक का असर
आरबीए के चेयरमैन वेदिरे का कहना है कि राजस्थान सरकार द्वारा मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन अभियान के तहत ग्रामीण इलाके जल क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनते नजर आने लगे। इस तकनीक एक सरकारी आंकड़े के अनुसार राजस्थान में 61 प्रतिशत भूमि रेतीली है। भूजल स्तर बढ़ने से अब लोगों को पीने के लिए 90 प्रतिशत पानी मिलना शुरू हो गया है। वहीं 60 फीसदी सिंचाई इसी जल से की जा रही है। दरअसल इस सूबे में भूजल का सालाना 137 फीसदी दोहन हो रहा है जिससे राज्य में भूजल का स्तर तेजी से गिर रहा है। इसी कारण इस तकनीक को एक जनांदोलन की तरह चलाया जा रहा है।
रड़ार पर अब 22 हजार गांव
आरबीए के अनुसार राज्य सरकार द्वारा एमजेएसए के जरिए भूजल स्तर बढ़ाने की दिशा में चल रहे इस अभियान के तहत अब तक साढ़े तीन हजार गांवों के जल स्तर में बेहतर सुधार देखा गया है। अभियान के तय लक्ष्य में 2019 तक 22 हजार गांवों में भूजल स्तर में सुधार लाने का प्रयास होगा। अभियान के निदेशक अरुण जोशी का कहना है कि इस वैज्ञानिक तकनीक का एक सकारात्मक परिणाम यह है कि परियोजना के पहले चरण में साल में पानी के अभाव में सिर्फ एक फसल उगाने वाले कई गांवों के किसान अब दो फसलें लगा रहे हैं। उनका दावा है कि योजना के दूसरे चरण ग्रामीण तीन-तीन फसल ले सकेंगे।
क्या है तकनीक
राजस्थान के बांसवाडा के घोडी तेजपुर, लोढाखोडा और खोरापाडा जैसे आदिवासी गांवों में भूजल स्तर बढ़ाने की इस तकनीक को हरिभूमि संवाददाता ने खुद भी देखा, जहां भूजल स्तर बढ़ाने के लिए वर्षा जल के एक-एक बूंद का संचयन स्ट्रेगर्ड ट्रेन्चेज विधि के जरिए हुआ है। स्ट्रेगर्ड ट्रेन्चेज का तात्पर्य ऐसे पूरे इलाके में एक निश्चित दूरी पर और अलग अलग लम्बाई में एक नाप की ऊंचाई तथा चौड़ाई में खोदे गए, जिनमें इस तकनीक के जरिए वर्षा जल को भरकर बहने के बजाए जमीन में जाकर भूजल स्तर को बढ़ाएगा। यदि यह गड्ढे भर जाएं तो पानी फिर अगले गड्ढे और फिर खोदे गये तालाब में जमा हो जाता है। सबसे महत्वपूर्ण है कि बरसात का अतिरिक्त पानी से भरे ये तालाब लंबे समय तक ग्रामीणों को पानी मुहैया करा रहे हैं।
27Mar-2017

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