सोमवार, 27 मार्च 2017

राग दरबार: योगी का एंटी रोमियो मिशन

रोमियो की दशा रंडुओं जैसी
भारतीय संस्कृति खासकर हिंदू धर्म सत्यनारायण की कथा में दाहिने हाथ में कलावा बंधवाने की परंपरा प्राचीनकाल से चली आ रही है। सोशल मीडिया पर फिलहाल इस परंपरा पर ब्रेक लगने का अंदेशा इसलिए नजर आने लगा कि कलावा किसी भी प्रेमी यानि रोमियो पर कहर भी बरपा कर सकता है। क्योंकि पुलिस को पता है कि रोमियो की शनाख्त कैसे की जाए। रोमियो भी चौकन्ने हैं। दोनों में डाल-डाल और पात-पात का खेल चल रहा है। प्रेम पथ के उन्मुक्त पथिकों को रोमियो नाम मिलने को लेकर भी सवाल हैं। योगी सरकार के इस एक्शन प्लान में सबसे ज्यादा मुसीबत उन रोमियो की जिनके पास जूलिएट नहीं। जूलियट है तो आपके हजार पैरोकार और नहीं है तो रोमियो की दशा पश्चिमी यूपी के रंडुओं जैसी, पता नहीं कब सांसो का सफर थम जाए। बहरहाल एंटी रोमियो अभियान चालू आहे। सलवार-सूट, चुन्नी-दुपट्टा वाली बालिकाएं टीवी स्क्रीन पर आकर खुशी जाहिर कर रहीं हैं। यूपी के मौजूदा हालात के मद्देनजर बदले वर्क प्रोफाइल में फिलहाल रोमियो स्वयं की रूप सज्जा पर ध्यान देने में जुट गये हैं? मसलन बरगंडी कलर में हेयर, आॅखें ब्लू,ऐब्रो नुकीली, और आकर्षक डोलों के साथ फेसबुक प्रोफाइल पिक पर हर घंटे नये शोहदाना कलेवर में नमूदार होते नजर आ रहे हैं। सोशल मीडिया का भी स्वरूप बदलता दिख रहा है यानि कमेंट पर फब्तियां कसने के बजाय फ्रेंड रिक्वेस्ट देखी जा रही है। हालात ऐसे हो गये कि रिस्पॉंस मिलने पर सीमित हिग्लिंश डॉयलाग के सहारे टॉरगेट अचीव करने की कोशिश होने लगी है। भले ही योगी सरकार के एंटी रोमियों अभियान से सड़क से संसद तक राजनीति गरमा गई हो, लेकिन सियासी गलियारों में तो ये भी चर्चा हो रही है कि लव जिहादी नाम भी सबका साथ-सबका विकास के खांचे में फिट नहीं बैठता। ऐसे में शोध करके रोमियो नाम तय किया गया जो कम से कम विश्वस्तरीय है। खैर कुछ भी हो यूपी में सरकार बोलने वाली पसंद की जाती है। चाहे उसका काम बोले या फिर कारनामा। बैठे ठाले पुलिस भी हिल्ले से लग गई। सुबह रोमियो की तो शाम को शरबत-ए-दंगई के शौकीनों की धरपकड और पूरा दिन थाने में झाडू-पोछा। हैं ना योगी सरकार का कमाल। अभी तो आगाज है, अंजाम की प्रतीक्षा करें।
अजब-गजब हैं वास्तु के फेर...
वास्तु भारतीय समाज और संस्कृति से काफी प्राचीन समय से जुड़ा हुआ रहा है। हर छोटे-बड़े काम में इसका प्रयोग किया जाता है। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां भी बनती हैं कि वास्तु के हिसाब से किए गए बदलावों को शत-प्रतिशत स्वीकार नहीं जाता। ऐसा ही एक मामला पिछले दिनों राजधानी के शास्त्री भवन स्थित केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री के कक्ष को लेकर भी देखने को मिला। पहले उन्होंने अपनी पसंद के लिए एक कमरे को चुना, फिर उसका रेनोवेशन कराया। लेकिन कमरा तैयार होने के बाद उसमें नहीं बैठे और कमरे को एक कॉंफ्रेंस हॉल में तब्दील कर दिया। शुरुआत में यह कहा जा रहा था कि जिस कक्ष का मंत्री जी चयन किया है, उसमें वास्तु का बड़ा हाथ है। लेकिन बाद में यह कहीं भी नजर नहीं आया। ऐसे में यह कहना उचित होगा कि वास्तव में अजब-गजब के हैं वास्तु के फेर।
इनका तो कुछ नहीं...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में बीजेपी के सांसदों की बैठक में कहा कि सभी सांसद हर दिन सदन में मौजूद रहे। चर्चाओ में हिस्सा ले और जनता से जुडे मुददों को सदन में उठाए। पीएम के इस निर्देश के बाद से सांसद चिंता में नजर आ रहे है। कुछ सांसदों इस सोच में पढ गए है कि संसद सत्र के दिनों में पहले ही शनिवार और रविवार क्षेत्र में काम के लिए मिलते है। अब इन दिनों मेंभी अगर हम दिल्ली में ही रहेंगे तो क्षेत्र में काम कैसे होगा। हमें तो जनता के बीच जाना ही होगा जब जाकर आगे के चुनाव में कुछ हो सकेगा। इसके साथ ही कुछ सांसदों का यह तर्क है कि इनका तो कुछ नहीं है लेकिन हमारा तो घर परिवार, रिश्तेदारी, खेती और कारोबार •ाी वह हमारे बिना कैसे चलेगा...।
-ओ.पी. पाल, कविता जोशी  व राहुल
26Mar-2017

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