रविवार, 19 मार्च 2017

राग दरबार: सियासी संग्राम में खरे उतरे मोदी

गब्बर नहीं बब्बर शेर साबित हुए मोदी..
देश के पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में खासकर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड राज्य के विधानवसभा चुनाव में भाजपा ने ऐसा परचम लहराया कि उसके साथ में दो राज्यों की सरकार उसे बोनस में मिल गई और भाजपा तथा पीएम मोदी की आलोचना में जुटे रहे विपक्षी दल हाथ मलते रह गये। दरअसल खासकर उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस, सपा, बसपा और यहां तक कि रालोद जैसे विपक्षी दलों ने जितनी गहरी गोलबंदी करके पीएम मोदी पर निशाने साधे उतनी ही भाजपा में तेजी से सियासी ऊर्जा का संचार होता नजर आया। गौर करने वाली बात है कि विपक्षी दलों की मर्यादाहीन हमलों का पीएम मोदी और भाजपा प्रमुख अमित शाह ने जितनी शालीनता से जवाब दिया उसके जरिए विपक्षी दलों के मुकाबले जनता को हर मुद्दे को समझाने में भाजपा कामयाब रही,भले ही वह नोटबंदी या फिर सर्जिकल स्ट्राइक का मुद्दा ही क्यों न हो। कांग्रेस के युवराज के चुनावी भाषणों और उनकी भाषा पर तो चुनावी प्रचार के दौरान सोशल मीडिया पर मजाक भी बनता देखा गया, जिसमें यूपी से मणिपुर तक राहुल ने शोले फिल्म के गब्बर का जिक्र किया, लेकिन चुनावी नतीजों से उनकी समझ में आया कि मोदी तो बब्बर शेर साबित हुए। राजनीति के गलियारों में इस चुनावी महासंग्राम को लेकर तो ऐसी चर्चा रही कि सपा व कांग्रेस के गठबंधन ने एक-दूसरे की जड़ों में मठ्ठा डालने का काम किया यानि यूं भी कहा जा सकता है कि यह गठबंधन ऐसा बेमानी साबित हुआ जिससे यह कहावत चरितार्थ होती नजर आई कि हम तो डूबेंगे सनम-तुम्हें भी ले डूबेंगे..!
अब नहीं सताएगी गोवा की याद
देश के पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने हाल में गोवा के मुख्यमंत्री के रुप में शपथ ले ली है। इससे पहले वो करीब ढाई साल तक केंद्र में रहे। लेकिन इस दौरान कभी औपचारिक तो कभी अनौपचारिक ढंग से उन्होंने अपने मन की बात जगजाहिर करते हुए कहा था कि उनका मन तो गोवा में ही रचता-बसता है। दिल्ली तो केवल पीएम के अनुरोध के बाद आकर उन्होंने काम करने का फैसला किया था। गोवा से उनके इस अनूठे जुड़ाव की बानगी तो पर्रिकर सप्ताह में हर शुक्रवार को वीकेंड पर गोवा की यात्रा करके भी पेश करते रहते थे। लेकिन अब उनके मन की मुराद पूरी हो गई है। इसमें राज्य के विधानसभा चुनाव के नतीजे की निर्णायक भूमिका रही। क्योंकि इसके साथ ही भाजपा को बाहर से सहयोग देने के लिए राजी हुए अन्य दलों ने केवल पर्रिकर के नाम पर ही समर्थन देने का ऐलान किया। फिर क्या था भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को इसे स्वीकार कर और पर्रिकर को उनकी मन और कर्मस्थली गोवा रवाना कर दिया गया।
केजरीवाल की चाल
दिल्ली नगर निगम चुनाव में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर चुनाव जीतने का सपना देख रहे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के दांव से परेशान हैं। शाह ने फैसला किया है कि बीजेपी के मौजूदा 153 पार्षदों में से किसी को भी टिकट नहीं दिया जाएगा। तय ये हुआ है कि जब मौजूदा पार्षद चुनाव ही नहीं लड़ेंगे तो फिर उनके कथित भ्रष्टाचार को केजरीवाल किस मुंह से मुद्दा बना पायेंगे। केजरीवाल भी मान रहे हैं कि इस बार विधानसभा चुनाव की तरह एकतरफा मुकाबला नहीं रहने वाला। इसलिए उन्होंने बसपा की मायावती की तर्ज पर पहले ही इवीएम में गडबडी की आशंका का राग अलापना शुरू कर दिया है। हारे तो इवीएम की करतूत।
सड़क पर गोगोई
पूर्व मुख्यमंत्री का भी एक प्रोटोकॉल होता है। संबंधित राज्य के दिल्ली स्थित भवनों में उन्हें एक अदद कमरा भी मयस्सर न हो, ऐसा आमतौर पर होता नहीं। लेकिन ये असम के मुख्यमंत्री रहते हुए तरुण गोगोई ने ही सिस्टम बनाया था। उसकी जद में जब वे खुद आए तो उन्हें दर्द का अहसास हुआ। बतौर मुख्यमंत्री गोगोई ने किसी भी राजनीतिक कार्यक्रम के लिए असम भवन में किसी भी दल को कमरा या हॉल आवंटित नहीं करने पर पाबंदी लगा रखी थी। विपक्ष ने इस पर हंगामा भी बरपाया था, लेकिन सत्ता मद में चूर गोगोई के कान पर जूं नहीं रेंगी। अब जब सीएम की कुर्सी चली गई। खुद गोगोई ने पूर्व सीएम के नाते पत्रकारों से बातचीत के लिए कमरा मांगा तो अधिकारियों ने उन्हें उनके बनाए नियम पढ़ा दिए। दशकों असम पर राज करने वाले गोगोई कबूतर उड़ गए। अंत में फैसला किया गया कि संसद भवन के बाहर सड़क पर ही असम से जुड़े पत्रकारों से चर्चा कर ली जाए। हुआ भी ऐसा। गोगोई को सड़क पर खड़े-खड़े प्रेस-कांफ्रेंस करनी पड़ी।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा, शिशिर सोनी व कविता जोशी
19Mar-2017

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