गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

चीन-रूस संबन्धों पर भारत ने उकेरी नई तस्वीर!

चीन में सुषमा ने दिया कूटनीतिक दक्षता का परिचय
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज की चीन यात्रा में आखिर भारत की कूटनीति कारगर साबित होती नजर आई, जो भारत ने चीन और रूस के साथ त्रिपक्षीय व्यवस्था को एक नए आयाम को खड़ा किया है। भारत की विदेश और कूटनीति का विशेषज्ञों और चीनी मीडिया ने भी लोहा माना है, जिसमें अमेरिकी राष्टÑपति बराक ओबामा की भारत यात्रा के दौरान भारत-अमेरिका की दोस्ती से चीन का भारत के खिलाफ चढ़ा पारा नीचे ही नहीं, बल्कि भारत और चीन के संबन्धों की बर्फ भी जमने से पहले पिघली है।
चीन का दौरा करके स्वदेश लौटने से पहले ही विदेश मंत्री श्रीमती सुषमा स्वराज ने चीन में चीनी विदेश मंत्री वांग यी व रूसी विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव के साथ पेइचिंग में त्रिपक्षीय वार्ता में हिस्सा लिया, जहां चीन-रूस-भारत के आपसी सहयोग और समान दिलचस्प वाले अंतर्राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मुद्दों के साथ मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय स्थिति पर एक व्यापक सहमति हासिल कर सुषमा स्वराज ने अपनी दक्षता पेश की। उधर भारत में रहते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी भारत और चीन के संबन्धों को अटूट बताकर चीन के दिल में भारत की जगह बनाकर सोने पर सुहागा वाली कहावत को चरितार्थ किया। विदेश मामलों के विशेषज्ञ प्रशांत दीक्षित का कहना है कि इससे ज्यादा भारत के लिए क्या हो सकता है कि जब चीन-रूस-भारत की त्रिपक्षीय व्यवस्था विश्व के बहु ध्रुवीकरण की प्रक्रिया को एक रचनात्मक शक्ति के रूप में देखी गई। उनका मानना है कि इसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और दूसरी और अमेरिका से सुषमा की यात्रा के दौरान चीन को लेकर आए संदेश ने भी अपनी अहम भूमिका निभाई है। यदि भारत-चीन के संबन्धों के बारे में चीन स्थित अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान संस्था की विशेषज्ञ छेन यूरोंग का नजरिया देखें तो उन्होंने कहा कि भारत, चीन और रूस यानि तीनों देशों की एकजुटता एशिया-प्रशांत क्षेत्र की स्थिरता को बनाने में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। विदेश मामलों के विशेषज्ञ सलमान हैदर ने कहा कि सुषमा स्वराज की चीन यात्रा इसलिए भी महत्वपूर्ण साबित हुई कि संयुक्त राष्ट सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की खिलाफत कर रहे चीन ने अब संयुक्त राष्टÑ में अधिक बड़ी भूमिका का समर्थन करने का भरोसा दिया है। चीन ने यह भी मान लिया है कि वह और भारत दोनों विकासशील देश हैं और सुधार से संयुक्त राष्ट्र की भूमिका मजबूत करने और पहले विकासशील देशों का प्रतिनिधित्व होना जरूरी है। इसके अलावा इस त्रिपक्षीय व्यवस्था के बीच भारत,चीन व रूस के साथ विभिन्न मुद्दों पर बनी सहमति भारत के अंतर्राष्टÑीय पक्ष को मजबूत करने में कारगर साबित होगी।
कूटनीति का माना लोहा
उधर भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज का चीन का दौरा चीनी अखबारों में सुर्खियों में रहा है। चीन के सरकारी अखबरों के अलावा चाइना डेली और ग्लोबल टाइम्स ने दोनों देशों के संबन्धों को मजबूत बनाने के लिए हुए करारों और सहमतियों में भारत की कूटनीति खासकर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व का लोहा माना है। इसी कूटनीति के जरिए भारत ने अंतरराष्ट्रीय संबंध के लोकतांत्रीकरण, अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और अधिकार में विभिन्न देशों का उपभोग को बढ़ाना विकासशील देशों की मांग को भी दिशा दी है। चीन, रूस और भारत को हाथ पर हाथ डालकर सहयोग और समान जीत वाली अवधारणा का विकास करने पर जोर दिया गया, ताकि विश्व की शांति और विकास को बनाए रखने में नई प्रेरक शक्ति का संचार हो सके।
04Feb-2015

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