रविवार, 1 फ़रवरी 2015

धर्मनिरपेक्षता पर गरमाई सियासत!

गणतंत्र दिवस विज्ञापन को लेकर छिडा विवाद
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
गणतंत्र दिवस के मौके पर जारी एक विज्ञापन में संविधान की तस्वीर से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों के गायब होने पर विपक्षी दलों ने सियासी मुद्दा बनाकर सवाल मोदी सरकार पर सवाल खड़े करने शुरू कर दिये। हालांकि मोदी सरकार ने इसे एक भूल करार दिया, लेकिन विपक्षी सियासी दल इस मुद्दे पर गोलबंदी करके मोदी सरकार को घेरने में जुटे हुए हैं।
गणतंत्र दिवस की परेड के बाद 26 जनवरी को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने यहां सीरी फोर्ट सभागार में बोलते हुए भारत में हर नागरिक को अपने धर्म का पालन करने और उसका प्रचार-प्रसार करने की आजादी देने वाले भारतीय संविधान की धारा 25 का उल्लेख करके एक तरह से धर्मनिरेपक्षता की सियासत कर रहे राजनीतिक दलों को नसीहत दी थी, लेकिन ओबामा के भाषण के इस अंश को दरकिनार करते हुए गणतंत्र दिवस पर जारी इस विज्ञापन में धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्दों के न होने पर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस आपत्ति उठाते हुए बिदकता नजर आया। यह विज्ञापन डीएवीपी ने जारी किया था, इसलिए सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री राठौड़ ने इस विज्ञापन पर स्पष्टीकरण देते हुए कहा कि इसमें संविधान की मूल कॉपी का इस्तेमाल किया गया है। विवाद इसके साथ ही समाप्त हो जाना चाहिए था, लेकिन शिव सेना के संजय राउत ने इस शब्दों को संविधान से हटाने की मांग कर बखेड़ा खड़ा कर दिया। जबकि इससे पहले भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहले ही भारत के लिए हिंदू राष्ट्र की प्रतिज्ञा दोहरा चुका है। ऐसे में केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने इसका बचाव करते हुए बहस कराने की दलील दे डाली कि 1976 में आपात काल के समय 42वें संशोधन के जरिए संविधान में जोड़े गये धर्मनिरपेक्ष और 'समाजवादी' शब्द जोड़ा गया था। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने तो विपक्षी दलों पर पलटवार करते हुए यहां तक कह डाला कि जवाहरलाल नेहरू और भीमराव अंबेडकर जैसे नेताओं ने सूझबूझ कर ही इन शब्दों को संविधान में नहीं रखा था। इस विवाद पर गरमाती जा रही सियासत के बीच विपक्षी दलों का सियासी पारा सातवें आसमान पर है और आगामी बजट सत्र के दौरान इस मुद्दे पर सरकार को घेरने के लिए लामबंदी करने में जुटे हुए हैं।
लामबंदी की राह पर सियासी दल
मोदी सरकार की सहयोगी पार्टी पीएमके ने भी संविधान की प्रस्तावना पर बहस के सुझाव पर चिंता जताई है तो बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी और महात्मा गांधी के परपोते तुषार गांधी ने भी इसकी आलोचना की। पीएमके पार्टी नेता रामदॉस का कहना है कि समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता इस देश की मौलिक पहचान है और हमेशा ऐसा ही रहना चाहिए। ये शब्द रहने चाहिए और भारत में किसी को उसे बदलने के बारे में नहीं सोचना चाहिए। तो वहीं मांझी और तुषार गांधी ने इसे नादानी और कट्टरता से पैदा विध्वंसक, निंदनीय और अपमानजनक बयान करार दिया है। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सूरजेवाला कह चुके हैं कि कैबिनेट की बैठक के बाद बहस शुरू करने पर सरकार के प्रवक्ता की टिप्पणी संविधान के मुख्य विचारधारा की समीक्षा मोदी सरकार के नियोजित एजेंडे का हिस्सा है। वामदल की नेता वृंदा करात का कहना है कि भारत में धर्मनिरपेक्षता के लिए संघर्ष देश के अस्तित्व और उसके विकास का संघर्ष है। करात ने कहा कि यह अत्यंत चिंता की बात है कि केंद्र में 31 प्रतिशत मतों के साथ सत्ता में आने वाली प्रधानमंत्री की सरकार है, जो संविधान के सिद्धांतों पर बहस करना चाहती है। राष्ट्रीय सचिव डी राजा ने आरोप लगाया है कि फासीवादी ताकतों ने सत्ता हथिया ली है, इसलिए राजनीतिक दलों को एकजुट होकर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने की अपील की जा रही है।
01Feb-2015

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें