शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2015

हकीकत की पटरी पर दौड़ी प्रभु की रेल!


राजनीति के नहीं, बल्कि जरूरत के बल चलेगी ट्रेने
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के रेलव बजट में रेल मंत्री सुरेश प्रभु के रेल बजट हकीकत की पटरी पर चलता नजर आया, जिसमें न तो यात्री किराए में बढ़ोतरी की गई और न ही किसी नई ट्रेने चलाने का ऐलान किया गया गया। यानि मोदी सरकार का साफ संकेत है कि जरूरत के बल पर ही ट्रेनों को चलाया जाए न कि राजनीति की बिसात पर। इसकी हकीकत यही बंया करती है कि पिछले कुछ दशकों में रेल बजट की घोषणाएं अभी तक भी बाट जो रही हैं और इस हकीकत को भांपते हुए मोदी सरकार के बजट में उन लंबित योजनाओं को ही आगे बढ़ाने के लिए नीतिगत फैसलों का ऐलान किया गया है।
केंद्र की मोदी सरकार ने रेल बजट में सहकारी संघवाद की नई परिभाषा गढ़ते हुए शायद राज्यों को दो टूक संदेश दे दिया है कि अब राजनीति के बल पर नहीं, बल्कि जरूरत के बल पर नई ट्रेनों या फिर रेलवे की योजनाओं का विस्तार किया जाएगा। मसलन रेलवे विस्तार की परियोजना को लागू करने में केंद्र उसी राज्य को सौगात देगा, जो रेलवे परियोजनाओं में हिस्सेदारी करके इन परियोजनाओं में मदद करेंगे। इस रेल बजट ने एक तरह से राज्य सरकारों को रेलवे ढांचा को बेहतर करने का अवसर या फिर दबाव के रास्ते पर लाकर खड़ा कर दिया है। रेल मंत्री सुरेश प्रभु जब लोकसभा में रेल बजट पेश करते हुए भाषण दे रहे थे और उन्होंने खत्म भी कर लिया तो सभी को पहले तो इस बात पर आश्चर्य हुआ कि बजट में किराया न बढ़ाने का तो फैसला अलग हो सकता है, लेकिन इस बजट में कोई नई रेल चलाने या आमान-परिवर्तन या दोहरीकरण, विद्युतीकरण रेलमार्गो की सूची को क्यों शामिल नहीं किया गया। शायद बाद में सभी की समझ में आया कि यह बजट थोथी घोषणाओं के सच से परे हैं और बजट पूरी तरह से हकीकत की पटरी पर नजर आया। विशेषज्ञ ही नहीं विपक्षी दल समाजवादी पार्टी प्रमुख मुलायम सिंह यादव भी इस बजट की तारीफ करते नजर आए। इस बजट की हकीकत यही है कि पिछले कई दशक के दौरान पिछली सरकारों के कार्यकाल में पेश किये गये रेल बजट में इसी बात की स्पर्धा रहती थी कि किस राज्य या किस रेल मार्ग पर कितनी रेल मसलन इस बजट की हकीकत यही है कि पिछले कई दशकों से रेल बजट में होती रही नई ट्रेने चलाने और अन्य लोकलुभावनी घोषणाएं कागज पर ही सिमटी हुई है, जिन्हें पिछली किसी भी सरकार ने अपनी ही घोषणाओं को अमलीजामा पहनाने का प्रयास नहीं किया। शायद इसीलिये प्रभु के रेल बजट में सरकार ने नई ट्रेने या अन्य लोकलुभावनी घोषणाओं को दरकिनार करके यात्रियों की सुविधओं में इजाफा, रेलवे के विकास को बढ़ावा देकर यात्रियों को आधुनिक तकनीकी सुविधाएं उपलब्ध कराने के उनकी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने पर जोर दिया है। रेलवे को आर्थिक तंगी से बाहर लाने के लिये रेल बजट में रेल यात्री किराया नहीं बढ़ाया गया, बल्कि इसे संतुलित करने के लिए मालभाड़े में दस फीसदी तक की बढ़ोतरी के अलावा निवेश को बढ़ाने की नीति पर रेल को दौड़ाने का ऐलान किया गया है।
राज्यों की भूमिका का फार्मूला
रेल मंत्री का यह फैसला सरकार की नई नीति का हिस्सा है। जिस तरह से संसाधनों के बंटवारे में पहले ही मोदी सरकार राज्यों को उनके प्रदर्शन को प्रमुख मानक बनाने की घोषणा कर चुकी है। अब रेलवे में भी यही फामूर्ला लागू किया जाएगा। सिर्फ नई ट्रेनों की घोषणा ही नहीं बल्कि अन्य रेलवे परियोजनाओं में भी राज्यों की भूमिका बढ़ेगी। हालांकि प्रभु ने नई ट्रेनों के परिचालन की घोषणा के नीतिगत फैसले में जल्द समीक्षा करने की बात कही है, जिसके आधार पर नई ट्रेने चलाई जा सकेंगी।
ताकि घोषणाएं कागजी न रहें
रेल मंत्री सुरेश प्रभु के रेल बजट की सार्थकता को इस मायने में भी देखा जा रहा है कि देश के विभिन्न राज्यों में इससे पहले रेल बजट के दौरान की गई घोषणाओं की समीक्षा होगी और क्षेत्र की प्राथमिकता के आधार पर लंबित रेल परियोजनाओं को आगे बढ़ाया जाएगा। विशेषज्ञों और रेलवे के ही आंकड़ो के अलावा राज्यों के नागरिकों की रेलवे में आ रही शिकायतें इस बात की गवाही देती हैं कि कई दशक की रेलवे घोषणाएं अभी तक कागजी घोषणाओं तक ही सीमीत हैं। मसलन मोदी सरकार के इस रेल बजट में रेलमंत्री प्रभु का इरादा साफ है कि देश में रेल पटरियों को दुरस्त करके उन पर तय की गई गति के आधार पर ट्रेनों को दौड़ाया जाए, जिसमें सुरक्षा और संरक्षा रेलवे की पहली प्राथमिकता होगी। जहां तक नई ट्रेने चलाने का सवाल है उसके लिए रेलमंत्री ने संकेत दे दिये हैं कि संसद के बजट सत्र में मौजूदा ट्रेनों की समीक्षा रिपोर्ट पेश की जाएगी। उसके बाद ही नई ट्रेनों को चलाने का फैसला लिया जाएगा। प्रभु ने निजीकरण की चचार्ओं को भी खारिज करते हुए साफ कह दिया है कि देश की मूल्यवान राष्ट्रीय संपदा पर जनता का ही कब्जा बरकरार रहेगा।
राजनीति की रेल
रेल बजट में हमेशा नई ट्रेनों को चलाने की घोषणा होती रही है, लेकिन इस बार लीक से हटकर आए रेल बजट से राजनीति की ट्रेने कहीं दूर तक भी नजर नहीं आई। जहां तक पिछले बजट के दौरान नई ट्रेनों की घोषणा का सवाल है उसमें हर साल कई दर्जन नई ट्रेने चलाने की घोषणाएं होती रही हैं। रेल बजट की घोषणाओं के आधार पर पिछले साल ही 160 नई टेÑन चलाने की घोषणाएं हुई थी,जिसमें वर्ष 2014-15 के रेल बजट में 69, वर्ष 2013-14 में 91, वर्ष 2012-13 में 96 और वर्ष 2011-12 के रेल बजट में 81 नई ट्रेने चलाने की घोषणाएं हुई थी, लेकिन इनमें से कई ट्रेनें अभी तक शुरू भी नहीं हो सकी है। इसका ही नतीजा हो सकता है कि देश के कुछ क्षेत्रों में ट्रेनें तो ज्यादा हैं, लेकिन उससे पूरी रेल परिवहन व्यवस्था चरमराई हुई है।
27Feb-2015

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