मंगलवार, 24 फ़रवरी 2015

बजट सत्र: बरकरार हैं हंगामे के आसार!


राष्ट्रपति  की नसीहत भी विपक्ष को नहीं आई रास
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद के शुरू हुए बजट सत्र में अभिभाषण के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की सांसदों को सदन में सहयोग और आपसी सदभावना के साथ अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करने की दी गई नसीहत भी शायद विपक्षी दलों को रास नहीं आई। अध्यादेशों खासकर भूमि अधिग्रहण कानून के मुद्दे पर सरकार के खिलाफ लामबंद होते विपक्षी दलों के तेवरों से इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि संसद में हंगामें के आसार बरकरार हैं।
सोमवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में दोनों सदनों के संयुक्त सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण में भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को लेकर विपक्षी दलों की सरकार के खिलाफ लामबंदी की आशंका को भांपते हुए सभी सांसदों से अनुरोध किया कि वे सहयोग और आपसी सदभावना के साथ अपने उत्तरादायित्वों का निर्वहन करें, लेकिन ऐसा कोई संकेत नहीं दिया, कि विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश में सरकार की कोई बदलाव करने की मंशा है। हालांकि राष्ट्रपति ने कहा कि सरकार भूमि अधिग्रहण से प्रभावित किसानों और उनके परिवारों के हितों की सुरक्षा को सर्वाधिक महत्व देती है। उन्होंने यहां तक कहा कि भारतीय संसद लोकतंत्र का परम पावन स्थल है और भारत के लोगों, विशेषकर दूर दराज में रहने वाले अत्यंत निर्धन लोगों ने अपनी आशाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए इस संस्था में अटूट विश्वास दिखाया है। इसलिए प्रत्येक नागरिक की देश प्रेम की शक्ति से हम सबको एकजुट होकर एक सशक्त और आधुनिक भारत के निर्माण के लिए कार्य करना चाहिए। वहीं संसद परिसर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी विपक्षी दलों से संसद के बजट सत्र को सुचारू रूप से चलाने के लिए सहयोग की अपील को दोहराया। इसके वावजूद भूमि अध्यादेश पर कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के तेवर तीखे नजर आ रहे हैं। संसद परिसर में हरिभूमि से बातचीत के दौरान इस मुद्दे पर कोई भी विपक्षी दल मोदी सरकार को खासकर भूमि अधिग्रहण कानून को लेकर आगे बढ़ने न देने की चेतावनी देता नजर आया।
सरकार की बड़ी चिंता
इस बजट सत्र का मोदी सरकार के कामकाज का बड़ा असर पड़ेगा, क्योंकि इसमें कई अहम अध्यादेश और विधेयक दांव पर हैं। सरकार के सामने अध्यादेशों को विधेयक में बदलने के लिए सबसे बड़ी चिंता यह है कि राज्यसभा में उसके पास बहुमत नहीं है। ऐसे में उसके लिए भूमि अधिग्रहण जैसे महत्वपूर्ण विधेयकों को पास कराना बेहद मुश्किलें पेश आएगी। हालांकि सरकार बराबर विपक्ष के साथ विचार विमर्श करने को तैयार है। इसे भी बड़ी मुश्किल यह है कि यदि अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित नहीं करा पाई तो बजट सत्र के बाद ये अध्यादेश लैप्स हो जाएंगे। ऐसे में यदि विपक्ष के साथ संभावित गतिरोध को खत्म न किया गया तो सरकार के पास इस अध्यादेश को वापस लेने या फिर उसे संसद का संयुक्त सदन बुलाकर इस विधेयक को को पारित कराने जैसे विकल्प ही बचते हैं।
झुकने को तैयार नहीं विपक्ष
लोकसभा में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार को अध्यादेश लाने से पहले ही विपक्षी दलों से सलाह लेनी चाहिए थी और यूपीए के लाए गये भूमि अधिग्रहण कानून को ही किसान हितैषी बताया। उनका कहना था कि मोदी सरकार ने इस कानून में संशोधन करके इसे किसान विरोधी और औद्योगिक क्षेत्र के हितों की रक्षा करने वाला बना दिया है। राज्य सभा में कांग्रेस के उपनेता आनंद शर्मा का कहना है कि इस कानून को लेकर जिस तरह से माहौल बनाया जा रहा है, वह गलत है। उन्होंने भूमि सुधार अध्यादेश को किसान विरोधी बताते हुए इसका विरोध करने की वकालत की। जद-यू के राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी और केसी त्यागी ने अपने नेता शरद यादव के बयान को हवा देते हुए कहा कि सरकार ने सरकार पर किसान विरोधी करार देते हुए कहा कि विपक्ष इस मुद्दे पर एकजुट है और किसानों के हितों पर विपक्ष किसी प्रकार की चोट को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं है। त्यागी ने कहा कि पिछले कुछ चुनाव नतीजे सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा को ऐसी नीतियों का जवाब भी दे चुकी है।
24Feb-2015

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