रविवार, 1 फ़रवरी 2015

सेल्यूट, सलाम और सजदा

राग दरबार
सेल्यूट, सलाम और स
जदा
गणतंत्र दिवस में विश्व ने देखी भारत की ताकत। सैन्य पराक्रम, युवा जोश और महिला सशक्तिकरण से परिपूर्ण दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की बहुरंगी छटा से आज रूबरू हुए दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा। इस शान शौकत के बावजूद गणतंत्र दिवस परेड के दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्रगान के समय जब सेल्यूट कर रहे थे, उप राष्टÑपति के सावधान की मुद्रा में खड़े होने को लेकर कुछ नामसझी की लहर में आपत्तियां उठनी शुरू हुई और सोशल मीडिया की सुर्खियां बनी तो उप राष्टÑपति सचिवालय को सेल्यूट, सलाम और सजदा में अंतर समझाने के लिए मजबूर होना पड़ा। वैसे भी सेल्यूट, सलाम और सजदा में अंतर को समझना चाहिए था। अल्लाह और सिर्फ अल्लाह पर अकीदा रखने वाला मुसलमान, अल्लाह को छोड़ कर किसी के सामने सजदा नहीं कर सकता पर सलाम तो करता ही है और सेल्यूट भी। सवाल उठता है कि यदि उपराष्ट्रपति यदि गैरमुस्लिम होते तो आपत्ति जताने वाले इसे उनकी भारी भूल या गलती कहकर टाल देते, लेकिन नासमझी मनों ने सीधे तौर पर सांप्रदायिक कट्टरता का ठप्पा जड़ने का प्रयास ही नहीं किया, बल्कि घोरआपत्तिजनक व बहुरंगी भारत के दामन पर कालिख लगाने की कोशिश ने कोई कसर नहीं छोड़ी। राष्टÑ की परंपरा के जानकार μलैग कोड आॅफ इंडिया का हवाला देकर अब आपत्ति करने वाले नासमझों को गणतंत्र की परिभाषा पढ़ाने में जुÞटे हुए हैं और नसीहत दे रहे हैं कि जब दुनिया एक लोकतांत्रिक देश की ताकत को टकटकी निगाहों से देख रही हो तो ऐसे में इस तरह के विवाद खड़े करके चिढ़ने वाले मुल्कों को सहारा देने के बजाए बाल की खाल निकालना किसी भी सूरत में उचित नहीं है।
कांग्रेस जीरो-आप हीरो
आजकल दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार चरम पर है तो चुनावी नतीजों को लेकर सर्वे करने वाली एजेंसियां भी सक्रिय हैं और वहीं खासकर राजनीतिक दल भी अपने अंदरूनी सर्वे कराने में पीछे नहीं होते। दिल्ली की सत्ता में आने के लिए अत्यंत आत्मविश्वासी नजर आ रही आम आदमी पार्टी का अपना सर्वे को आजकल आॅटो रिक्शा के पीछे जिस तरह से प्रचारित किया जा रहा है उसमें आप ने अपने को हीरो तो कांग्रेस को जीरो साबित करके दर्शाया है। यानि दिल्ली विधानसभा की 70 सीटों में से आप ने अपने पक्ष में 43 और भाजपा के पक्ष में 27 सीटें दिखाई हैं। इसका तात्पर्य साफ है कि कांग्रेस और अन्य दलों को आम आदमी पार्टी चुनावी मुकाबले से कोसो दूर धकेल रही है। लोगों में आप को लेकर चर्चा है कि कम से कम चुनाव प्रचार में तो केजरीवाल की पार्टी बहुमत में रहे,लेकिन कांग्रेस के अहसान को तो न भूलें, जिसकी बैशाखी के सहारे ही आप के संयोजक केजरीवाल मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे थे, भले ही चुनाव के बाद वास्तविक नतीजों में भाजपा, कांग्रेस, आप या अन्य दल की स्थिति कुछ भी आए। राजनीतिक गलियारों में आप विरोधी यहां तक चर्चा करने में जुटे हुए हैं कि कांग्रेस को पिछले चुनाव की सीटों के हॉफ तक आंकने के बजाए साफ मानकर चलने वाली आप को कांग्रेस के जनाधार को इतना कमजोर भी नहीं आंकना चाहिए।
01Feb-2015

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