शनिवार, 14 फ़रवरी 2015

राग दरबार

वायदों का कवच पूर्ण राज्य का मुद्दा
प्राणों की पीड़ा बनी आज मृगजल की-सी आशा, वह नादानी बन गई आज जीवन की परिभाश:आ वाली ही कहावत तो कहीं दिल्ली की आप सरकार पर लागू नहीं हो रही है। मसलन दिल्ली और काश्मीर पर एक ही पार्टी की ये कैसी दोगली मानसिकता का परिचायक तो माना जा रहा है, जिसमें दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग करने वाली आम आदमी पार्टी आखिर कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग करने वालो का विरोध और धारा 370 का समर्थन क्यो करते रहे हैं? आम आदमी पार्टी सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का अलाप दिल्ली की जनता से किये गये 70 बिंदुओ वाले मुद्दों पर कवच बनाने की कूटनीति मानी जा रही है। मुख्यमंत्री की शपथ लेने से पहले पीएम नरेन्द्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह और शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू से अरविंद केजरीवाल की मुलाकात में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा की मांग उनकी पहली प्राथमिकता ठीक उसी तरह नजर आ रही है, जैसे कि पिछले कार्यकाल में जनलोकपाल। दरअसल जिन 70 बिंदु वाले वायदे करके आप सत्ता में पहुंची, उनमें बिजली, पानी और कुछ दिल्ली स्तर की मांगों को दिल्ली सरकार पूरा करने में सक्षम है, लेकिन पूर्ण राज्य का दर्जा दिल्ली को दिया जाए यह इसलिए भी दूर की कोड़ी होगी, क्योंकि दिल्ली राष्टÑीय राजधानी है और इस मांग को पूरा करने में केंद्र आगे बढ़ता है तो दिल्ली का दो हिस्सों में बंटना तय है। राजनीतिकारों का सवाल चर्चाओं में ऐसे तैर रहे है कि खजाना खाली है तो 15 लाख सीसीटीवी कैमरे कैसे खरीदें जाएंगे? बिजली मुμत, पानी मुμत, कोई नया कर नहीं लगेगा, अनाधिकृत कालोनियों में सारी सुखसुविधा और तमाम स्कूल-कालेज खोलने का वादा, आखिर इन सबके लिए पैसा कहां से आएंगा? दिल्ली प्रदेश का बजट लगभग 40 हजार करोड रुपए सालाना का ही तो है। राजनीति गलियारों में चर्चा है कि जनता से किये वादे को पीछे धकेलने के लिए ही तो दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा देने का राग अलापना शुरू हुआ है। मसलन यह मुद्दा वायदों को अपने कवच से ठके रहेगा और आप की सरकार चलती रहेगी।
अब्दुला दिवाने बेचारे
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना हो रहा है। केजरी बाबू ने तो न्योता भी देना मुनासिब नहीं समझा। दरअसल चुनावी दंगल के दौरान केजरी को समर्थन देने और फिर आप की जीत पर जमकर ढ़ोल बजाने वाले जदूयू नेता नीतिश कुमार, सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव, राजद प्रमुख लालू यादव, तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी के अलावा बसपा, रालोद और वामदल तथा अन्य दलों के नेताओं को आप ने शपथ ग्रहण समारोह में न्यौता तक भी नहीं दिया। ऐसे में इन नेताओं की हालत बेगानी सियासत के अब्दुल्ला दीवाने बेचारे वाली कहावत को ही तो पूरी कर रही है। भले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी किन्हीं कारणों से आप की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए, लेकिन मुख्यमंत्री की शपथ लेने से पहले अरविंद केजरीवाल ने कम से कम उन्हें व उनके मंत्रियों को मुलाकात के दौरान समारोह में आने का न्यौता तो दिया। चर्चाएं तो आम है कि मोदी व उसके मंत्रियों को न्यौता देने के लिए शायद केजरी खेमा यही सोच रहा होगा कि घोड़ा घास से यारी करेगा तो खाएगा क्या?
15Feb-2015

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