सोमवार, 22 अगस्त 2022

मंडे स्पेशल: अफ्रीका का वायरस रोक रहा गऊ माता की सांसे!

इंसानों में कोरोना के बाद पशुओं में लंपी संक्रमण ने उड़ाए होश
पशुओं में फैलते लंपी स्किन रोग से दहशत में पशुपालक सर्वाधिक पशु संक्रमित होने के कारण यमुनानगर डेंजरजोन घोषित 
बीमारी को रोकने के लिए पशुओं के वैक्सीनेशन में तेजी अंतर्राज्यीय पशुओं के आवागमन व पशुओं के मेलो पर रोक 
सड़कों पर दुर्घटना को दस्तक दे रही है बढ़ती आवारा पशुओं की संख्या 
ओ.पी. पाल.रोहतक। अभी इंसानी संक्रमण कोरोना वायरस से पूरी तरह उभर भी नहीं पाए हैं, कि पशुओं में अफ्रीका के वायरस ‘लंपी स्किन’ नामक संक्रमण ने चपेट में लेना शुरू कर दिया है। प्रदेश में पशुओं की त्वचा पर गंभीर रूप से असर दिखाने वाले इस संक्रमण की रफ्तार इतना ज्यादा है कि हरियाणा सरकार को प्रशासनिक अमले के लाख प्रयासों के बावजूद अभी संक्रमण की गति में कोई कमी नहीं आ पाई है। राजस्थान से सटे जिलों से शुरू हुई यह बीमारी प्रदेश के 18 जिलों में पांव पसार चुकी है। अब तक प्रदेश के तीन हजार से ज्यादा गांवों और 266 गौशालाओं के पशुओं में लंपी संक्रमण विकराल रुप ले चुका है। यानी हरियाणा में रविवार शाम तक 1,66,266 पशुओं में लम्पी वायरस का संक्रमण पाया गया है, हालांकि 55 फीसदी से ज्यादा पशु स्वस्थ हुए हैं। जबकि चार सौ से ज्यादा संक्रमित पशुओं की मौत हुई है। संक्रमण की रफ्तार को देखते हुए पशुओं की आवाजाही पर पूर्ण रोक लगा दी गई है। पशु मेले और पशुपालन विभाग के अधिकारियों, कर्मचारियों की छुट्टियां रद कर दी गई है। नगर निगम ने आवारा पशुओं को पकड़ना बंद कर दिया है। खुद मुख्यमंत्री बीमारी पर नियंत्रण को लेकर मैदान में उतर आए हैं। केंद्र सरकार से लंपी रोधी टीके मांगे गए हैं। इसके बावजूद प्रदेश के तीन हजार से ज्यादा गांवों में संक्रमण पैर पसार चुका है। लंपी बीमारी से सबसे ज्यादा प्रभावित यमुनानगर जिले को डेंजरजोन घोषित कर दिया गया है। लंपी संक्रमण के चलते जहां एक तरफ दुग्ध उत्पादन में कमी आ रही है, वहीं दूसरी तरफ सड़कों पर बेसहारा या आवारा गौंवश की संख्या लगातार बढ़ रही है। 
अलर्ट पर सरकार और गौसेवा आयोग 
देश के डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्यों में पशुओं को अपनी चपेट में ले रहे लंपी स्किन वायरस का प्रकोप हरियाणा में भी तेजी से साथ फैल रहा है। दूधारु पशुओं में तेजी से फैल रहे इस रोग की रोकथाम के लिए राज्य सरकार, गोसेवा आयोग व पशुपालन विभाग पूरी तरह से अलर्ट पर है। खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस बीमारी की रोकथाम के लिए संबन्धित विभागों के अधिकारियों को पशुओं में वैक्सीनेशन को कोरोना वायरस की तर्ज पर मिशन मोड़ पर करने के निर्देश जारी कर दिए हैं। वहीं राज्य सरकार में पशुपालन एवं मंत्री जेपी दलाल भी लगातार पशुओं में फैलसे इस रोग की रोकथाम के लिए पशुपालन विभाग के अधिकारियों के अलावा सभी जिला प्रशासन को आवश्यक दिशानिर्देश देते हुए राज्य में अलर्ट जारी करके पशुओं के वैक्सीनेशन के लिए मंगाई पांच लाख से ज्यादा गोट पॉक्स वैक्सीन को हर जिले में पशुपालकों और गौशालाओं के संचालकों को उपलब्ध कराई गई हैं और पशुओं का वैक्सीनेशन करने का अभियान तेजी से चलाया जा रहा है। सरकार ने पशुपालकों को जागरुक करने और संक्रमण से पशुओं को बचाने के उपायों में दिशानिर्देश जारी करके पशुओं के अंतर्राज्यीय आवागमन और पशु मेला या पशु पैंठ पर प्रतिबंध लगा दिया है। वहीं सभी जिला प्रशासन को मच्छर-मक्खी की दवाइयों का छिड़काव करने के निर्देश जारी किये गये हैं। जिलो के पशुपालन विभाग के अधिकारी संक्रमित पशुओं के नमूने लेकर परीक्षण हेतु राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशुरोग संस्थान भोपाल भेजे जा रहे हैं। 
लंपी स्किन वायरस अफ्रीकन 
पशुओं के लिए जानलेवा लंपी स्किन वायरस मूल रूप से अफ्रीकी बीमारी है, जिसकी शुरुआत जाम्बिया देश में हुई थी, जहां से यह दक्षिण अफ्रीका में फैल गई। बीते 10-15 सालों में इसने दक्षिण अफ्रीका के घाना सहित अन्य इलाकों में महामारी का रूप ले लिया था। साल 2012 के बाद से इसका प्रकोप इतना तेजी से फैला कि लंपी वायरस के मामले मध्य पूर्व, दक्षिण पूर्व, यूरोप, रूस, कजाकिस्तान, बांग्लादेश (2019) चीन (2019), भूटान (2020), नेपाल (2020) और भारत (अगस्त 2021) में पाए गए। तीन साल पहले जुलाई 2019 में यह वायरस पहली बार बांग्लादेश के साथ भारत के ओडिशा में पाया गया। इसके बाद से यह बीमारी पूरे एशिया में महामारी के रुप में फैल रही है। भारत में यह बीमारी सिर्फ 16 महीनों के भीतर करीब डेढ़ दर्जन राज्यों में फैल गई है, जिसका असर अब अब हरियाणा में तेजी से बढ़ता नजर आ रहा है। लंपी वायरस का प्रकोप भैंसों की अपेक्षा गायों और वह भी संकर प्रजाति की गांयों में ज्यादा फैल रहा है। 
स्वदेशी वैक्सीन हुई विकसित 
देश के हरियाणा समेत करीब डेढ़ दर्जन से ज्यादा राज्यों में पशुओं में तेजी फैल रही लम्पी स्किन रोग की वजह से हजारों मवेशियों की मौत से चिंतित केंद्र और राज्य सरकार के साथ पशुपालकों को बड़ी राहत मिली। मसलन तीन साल के रिचर्स के बाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद यानी आईसीआरए के संस्थानों राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र, हिसार (हरियाणा) और भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान, इज्जतनगर (बरेली) ने आपसी सहयोग के साथ एक स्वदेशी वैक्सीन (लम्पी- प्रो वैक-इंड) को विकसित कर लिया है। केंद्र सरकार ने इस वैक्सीन का देशभर में 30 करोड़ पशुओं का टीकाकरण करने का लक्ष्य तय किया है। आईसीएआर के उप महानिदेशक (पशु विज्ञान) बीएन त्रिपाठी ने कहा कि दोनों संस्थान प्रति माह इस दवा की 2.5 लाख खुराक का उत्पादन करने में सक्षम है, जिसकी प्रति खुराक की लागत 1-2 रुपये है। 
यमुनानगर जिला में खतरनाक हुआ लंपी संक्रमण 
हरियाणा पशुधन विकास बोर्ड पंचकुला के रविवार देर शाम प्राप्त आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में 1,66,266 पशुओं में लम्पी वायरस पाया गया है, जिसमें से अब तक 55.82 प्रतिशत पशु लम्पी वायरस से स्वस्थ्य हो चुके हैं। इसमें सबसे ज्यादा यमुनानगर जिले के 485 गांव में 10,634 पशु लंपी संक्रमण की चपेट में आए हैं, जिनमें से 6665 पशु अब तक ठीक हो चुके हैं। इसके बाद सिरसा में करीब 218 गांवों में 5404 संक्रमितों में से 74.56 प्रतिशत पशु लम्पी वायरस से रिकवर हो चुके है, लेकिन 147 गौंवंश की मौत होने की पुष्टि की गई है। जबकि अंबाला जिले में 436 गांवों में 3656 पशु लंपी वायरस से संक्रमित पाये गये हैं। इसी प्रकार कुरुक्षेत्र के करीब 300 गांवों में 3200, कैथल के 221 गांवों में दो हजार से ज्यादा, फतेहाबाद में करीब 1487 और करनाल जिले के 518 गांवों में करीब 1125 पशु संक्रमित पाये गये हैं। इसके अलावा पंचकूला जिले में करीब आठ सौ, जींद में करीब 400, हिसार में 236, पलवल में डेढ़ सौ से ज्यादा, भिवानी में 143, महेंद्रगढ़ जिले में करीब 65, फरीदाबाद में करीब 60, रोहतक और चरखी दादरी जिले में करीब आधा दर्जन से ज्यादा पशु लंपी स्किन रोग से ग्रस्त हैं। 
प्रदेश में 78.93 लाख दूधारु पशु 
हरियाणा में साल 2019 में कराई गई पशु जनगणना के मुताबिक दुधारु पशुओं की संख्या कुल 78.93 लाख गोजातीय (भैंस और गौवंश) पशुओं में से करीब 20 लाख गौवंश हैं। इन गौवंश में लंपी स्किन वायरस के संक्रमण फैलने का ज्यादा खतरा बना हुआ है। प्रदेश में प्रतिदिन अनुमानित दूध उत्पादन 98.09 लाख टन है, जिसमें प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति 1005 ग्राम दूध की उपलब्धता है। 
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क्या है लंपी स्किन डिजीज 
पशु रोग विशेषज्ञों के अनुसार लंपी स्किन रोग गायों एवं भैंसों में कैंप्री पॉक्स वायरस के संक्रमण से होता है। लंपी स्किन बीमारी मुख्य रूप से गौवंश को ज्यादा प्रभावित करती है। देसी गौवंश की तुलना में संकर नस्ल के गौवंश में लंपी स्किन बीमारी के कारण मृत्यु दर ज्यादा है। इस बीमारी से पशुओं में मृत्यु दर 1 से 5 प्रतिशत तक भी है। इस रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं, जो संक्रमित पशु के शरीर पर बैठने वाली किलनी, मच्छर व मक्खी से भी यह रोग एक दूसरे पशुओं में फैलता है। इससे सिर और गर्दन के हिस्सा में काफी तेज दर्द होता है। पशुओं की दूध देने की क्षमता भी कम हो जाती है। बीमार पशुओं को एक दूसरे जगह ले जाने या उसके संपर्क में आने वाले स्वस्थ पशु भी संक्रमित हो जाते हैं। गायों और भैंसों के एक साथ तालाब में पानी पीने-नहाने और एकत्रित होने से भी रोग का प्रसार हो सकता है। 
लंपी स्किन रोग के लक्षण 
रोग के प्रसार का मुख्य कारण मच्छर, मक्खी और परजीवी जैसे जीव हैं। लंपी स्किन डिजीज में पशु की त्वचा पर ढेलेदार गांठ बन जाती है। यह पूरे शरीर में दो से पांच सेंटीमीटर व्यास के नोड्यूल (गांठ) के रूप में पनपता है। खास कर सिर, गर्दन, लिंब्स और जननांगों के आसपास के हिस्से में इन गांठों का फैलाव होता है। संक्रमित होने के बाद कुछ ही घंटों के बाद पर पूरे शरीर में गांठ बन जाती है। इसी वजह से मवेशी की नाक एवं आंख से पानी निकलने लगता है। मवेशी बुखार की जद में आ जाते हैं। यही नहीं गर्भवती मवेशी को गर्भपात का भी खतरा बना रहता है। ज्यादा संक्रमण से ग्रसित हो तो निमोनिया होने के कारण पैरों में सूजन भी आ सकती है। संक्रमण के शिकार दूधारु पशुओं का दूध भी कम होने लगता है। 
रोग नियंत्रण व बचाव के उपाय 
पशु रोग विशेषज्ञों के मुताबिक लंपी स्किन डिजीज का अभी कोई भी पुख्ता इलाज नहीं है और केवल टीकाकरण ही इसके रोकथाम का सबसे प्रभावी साधन है। स्टेरॉयड एंटीइन्फ्लेमेटरी और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग से भी रोग पर नियंत्रण किया जा सकता है। संक्रमित पशु को स्वस्थ्य पशुओं से अलग एक जगह बांधकर रखें, ताकि वे आपस में संपर्क में न आ सके। स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण कराना चाहिए। वहीं बीमार पशुओं को बुखार एवं दर्द की दवा तथा लक्षण के अनुसार उपचार करें। पशु मंडी या बाहर से नए पशुओं को खरीद कर पुराने पशुओं के साथ ना रखें, उन्हें कम से कम 15 दिन तक अलग क्वॉरेंटाइन में रखे।
दूध उत्पादन पर खतरे की घंटी 
पशुओं में फैले लंपी स्किन वायरस के कारण प्रदेश में दुग्ध उत्पादन भी कम हो रहा है। मसलन संक्रमित पशुओं के दूध में कमी आ रही है, तो लोग भी ऐसे पशुओं का दूध का इस्तेमाल करने से परहेज कर रहे हैं। बताया जा रहा है कि इस बीमारी से हरियाणा जैसे राज्य में हजारों लीटर दुध का उत्पादन कम हो रहा है। मसलन गांठदार त्वचा रोग ने दूध के उत्पादन को लेकर एक तरह से खतरे की घंटी बजा दी है, जिसकी वजह से डेयरी उद्योग पर भी संकट मंडराने लगा है। 
---- वर्जन 
इंसानों में नहीं फैलता संक्रमण 
लंपी स्किन वायरस रोग जूनोटिक डिजीज की श्रेणी यानी यह रोग गैर-जूनोटिक है। इसलिए यह पशुओं से इंसानों में नहीं फैलता है और इससे पशुपालकों को घबराने की जरुरत नही है, जो पशुओं से इंसानों में इसका संक्रमण नहीं है। जहां तक इस वायरस से संक्रमित पशु के दूध के इस्तेमाल का सवाल का जवाब है कि ऐसे पशुओं के दूध को ऊबाल कर सेवन करने से इंसान पर कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ता। बछड़ों को संक्रमित मां का दूध उबालने के बाद बोतल के जरिए ही पिलाया जाना चाहिए। लंपी स्किन रोग से पशुओं को बचाए रखने के लिए पशुपालकों या गौशाला संचालकों को साफ सफाई और मक्खी, मच्छर या अन्य परजीवी कीटों से पशुओं को बचाए रखने की जरुरत है। वहीं यदि कोई पशु संक्रमित होता है तो उसे स्वस्थ पशुओं से अलग रखकर उसका उपचार करना चाहिए। जैसे ही पशु को बुखार हो या उसके शरीर पर चकते हों तो सीधा उसे डॉक्टर को दिखायें। 
-डॉक्टर सूर्यदेव खटकड, उप निदेशक, पशु पालन विभाग रोहतक। 
22Aug-2022

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