बुधवार, 17 अगस्त 2022

साक्षात्कार: सामाजिक सरोकार में निहित साहित्य की दोहा विधा: रघुविन्द्र यादव

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति हासिल की व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रघुविन्द्र यादव 
जन्म: 27 सितंबर 1966 
जन्म स्थान: गांव नीरपुर, नारनौल (हरियाणा) 
शिक्षा: मास्टर ऑफ मास कम्यूनिकेशन’,एमए (इतिहास)’ शिक्षा स्नातक 
संप्रत्ति: शिक्षा विभाग हरियाणा में व्यावसायिक प्रवक्ता। 
--ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में देश के उन चुनिंदा दोहा लेखन करने वाले साहित्यकारों में हरियाणा के साहित्यकार रघुविन्द्र यादव का नाम भी शुमार है, जिन्होंने दोहाकार के रूप में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति हासिल की है। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों को लेकर अपने रचना संसार का विस्तार देने में जुटे यादव के मौलिक दोहे इतने लोकप्रिय हो रहे हैं कि उनकी लिखी पुस्तकें अमेरिका जैसे देश की नेप्परविल्ले पुस्तकालय की भी शोभा बढ़ा रही है। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, महेन्द्रगढ़ में व्यावसायिक प्रवक्ता के रूप में सेवारत रघुविन्द्र यादव ने इस आधुनिक युग में साहित्य के बदलते स्वरुप और उसके प्रभाव की चुनौतियों जैसे पहलुओं को लेकर हरिभूमि संवाददाता से बातचीत की और अपने साहित्यिक सफर और अनुभवों को साझा किया। हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में अग्रणी गाँव नीरपुर के नंबरदार जोखीराम एवं दमयंती यादव के घर एक प्रतिष्ठित किसान परिवार में 27 सितंबर 1966 को जन्मे रघुविन्द्र यादव का परिवार भी शिक्षा में अग्रणी था। इसलिए स्वाभाविक है कि बचपन में ही पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अलावा अन्य पुस्तकें पढ़ने की रुचि उनमें भी विकसित हुई। साहित्यकार रघुविन्द्र यादव ने बताया कि पुस्तकें पढ़ने के दौरान दोहा सुनाना तो आदत में शुमार हो गया, लेकिन लेखन के प्रति रुझान स्नातक होने के बाद ही पैदा हुआ। अपने अनुभवों के आधार पर उन्होंने बताया कि साल 1989 में जब वह नेहरु युवा केंद्र की जिला आयोजन समिति के सदस्य चुना गया, तो युवाओं को प्रोत्साहित करने के लिए उन्होंने मुक्तक, शे’र, और रुबाई संकलित करके सुनाने लगा। हालांकि जब अवसर के अनुसार कुछ नहीं मिलता, तो उन्होंने खुद लिखना शुरु किया। भले ही उसे साहित्यिक रूप से बहुत शुद्ध नहीं कहा जा सकता था। साल 1995 में हरियाणा में आई बाढ़ आई और राहत कार्यों में भ्रष्टाचार के दृष्टिगत रखते हुए सही मायने में उन्होंने ‘जनता भूखी मर रही, शासक खाते माल-तिजोरियाँ धनवान की, भरते बाढ़ अकाल’ नामक पहला दोहा लिखा। इसके बाद जो भी दोहे लिखे वे देश-विदेश के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए, तो उनका आत्मविश्वास बढ़ता गया और उनकी पहचान एक दोहाकार के रूप में होने लगी। बकौल उनके लिखे दोहों की चोरियां तक होने लगी, जिनके उन्होंने उदाहरण भी दिये, हालांकि अपनी पुस्तकों और रचनाओं में अपने नाम से उनके दोहे छापने वालों ने पश्च्याताप कर क्षमा भी मांगी। कई ऐसी रोचक घटनाओं का जिक्र करते हुए रघुविन्द्र यादव कहते हैं कि एक यूटयूब चैनल पर खुद उन्होंने अपने दोहे की पंक्ति देखी, जिनके साथ शब्द जोड़कर भजन बनाकर गाया गया और उसे दस लाख देख चुके थे। इसको लेकर चैनल को नोटिस भेजा गया तो उन्हें पारिश्रमिक देने के साथ माफी मांगनी पडी, जिसके बाद एक नया वीडियो बनाने के लिए उनकी लिखित अनुमति लेकर वीडियो बनाना शुरू किया। मेरी सभी विधा की रचनाएँ सामाजिक सरोकारों से जुड़ी होती हैं, जिनमें झूठ, पाखंड, अन्धविश्वास, लूट, भाई-भतीजावाद का विरोध, सामाजिक, राजनैतिक विद्रूपताओं को बेनकाब करना और अंतिम व्यक्ति की आवाज़ बुलंद करना ही उनके लेखन का उद्देश्य रहा है। वे शोध तथा साहित्य की राष्ट्रीय पत्रिका बाबूजी का भारतमित्र के संपादक हैं। रघुविन्द्र यादव साहित्यिक गतिविधियों के अलावा सामाजिक सेवा के रूप में अपने स्तर पर एक ब्लड हेल्पलाइन भी चलाते हैं, जो आपातकालीन और बेसहारा मरीजों को मौके पर रक्त उपलब्ध करवा कर उन्हें नवजीवन देने में सहयोग कर रहे हैं। इस आधुनिक में साहित्य को लेकर रघुविन्द्र यादव का मानना है कि आज चौराहे पर खड़े साहित्य की दशा और दिशा दोनों पर विचार करना बहुत जरुरी है। तभी साहित्य को समाज का दीपक की सार्थकता को बरकरार रखा जा सकेगा। इस स्वार्थ, आपाधापी और महँगाई के इस दौर में लोगों के पास साहित्य पढ़ने को पर्याप्त समय नहीं है। यही कारण है कि कहानियों की अपेक्षा लघुकथाएं और लम्बी कविताओं की जगह दोहे जैसे छोटे छंद आज लोकप्रियता के शिखर पर हैं। जबकि बच्चों पर पाठ्यक्रम के बोझ के बीच विज्ञान के विद्यार्थियों के लिए हिंदी को एक वैकल्पिक विषय बना देना भी युवा पीढ़ी को साहित्य से दूर किया जा रहा है। मसलन जब बच्चे हिंदी ही नहीं पढ़ेंगे, तो साहित्य कैसे पढ़ेंगे? इस कारण इस इंटरनेट के युग में पाठकों की संख्या कुछ प्रभावित हुई है। हालात यहां तक भी आ चुक हैं कि खुद साहित्यकार खुद भी अच्छे पाठक नहीं रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि आज पुस्तकें पढ़ी न जा रही हैं। देखा जाए तो पहले की अपेक्षा आज ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हो रही है, लेकिन उनमें विषय वस्तु गुणवत्ता युक्त ऐसी नहीं है, जिसे अच्छा नागरिक बनने के लिए शिक्षा या बौद्धिक रूप से ज्ञान विकसित किया जा सके। जबकि आज युवाओं को साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने हेतु अच्छे लेखन व साहित्य की जरुरत है।
प्रकाशित पुस्तकें
साहित्कार रघुविन्द्र यादव की अब तक प्रकाशित 20 पुस्तकों में मौलिक लेखन के तहत नागफनी के फूल, वक्त करेगा फैसला, आये याद कबीर (दोहा संग्रह), मुझमें संत कबीर, कुंडलिया कुमुद(कुण्डलिया छंद संग्रह), बोलता आईना, अपनी-अपनी पीड़ा (लघुकथा संग्रह), कविता के विविध रंग (काव्य संग्रह), कामयाबी की यात्रा (निबंध संग्रह) सुर्खियों में हैं। संपादित पुस्तकों में आधी आबादी के दोहे, आधुनिक दोहा, मानक कुण्डलिया, दोहे मेरी पसंद के, दोहों में नारी, हलधर के हालात, नयी सदी के दोहे, शंखनाद, जीने की राह, पर्यावरण परिचय और अभिनन्दन के स्वर शामिल हैं। उन्होंने एक मौलिक ग़ज़ल संग्रह और ‘रघुविन्द्र यादव के प्रतिनिधि दोहे’ संपादक जय चक्रवर्ती प्रकाशन की प्रक्रिया में हैं। उन्होंने सितंबर, 2009 से शोध और साहित्य की राष्ट्रीय पत्रिका ‘बाबूजी का भारतमित्र’ का संपादन एवं प्रकाशन भी किया। वहीं उन्होंने साल 2019 में स्थापना ऑनलाइन छंद-कोश वेबसाइट स्थापना भी की, जिसमें देशभर के साहित्यकारों के छंद संकलित किए जा रहे हैं। इसके अलावा वे दर्जनों पुस्तकों की भूमिका, अभिमत, फ्लैप टिप्पणी और समीक्षाएं लिख चुके हैं। उनके लिखे दोहों का वीडियो एलबम ‘बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात’ यूट्यूब पर दो करोड़ से अधिक बार देखा जा चुका है, जो संत कबीर के बाद दोहा वर्ग में सबसे अधिक व्यूज वाला वीडियो है। कविता कोश, छंद कोश और गद्य कोश में उनकी सैंकडों रचनाओं का संकलन के अलावा उनके कुछ दोहों और लघुकथाओं का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। 
पुरस्कार/सम्मान
हरियाणा साहित्य अकादमी ने दोहाकार के रूप में पहचाने गये साहित्यकार रघुविन्द्र यादव को साल 2021 के लिए दो लाख रुपये के लाला देशबन्धु गुप्त सम्मान देने के लिए चयनित किया है। इसके अलावा उन्हें साल 2010 में बाबु बाल मुकुंद गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्य संरक्षण परिषद रेवाड़ी का बाबू बालमुकुन्द गुप्त पुरस्कार (साहित्य), साल 2011 में राजस्थान के जिला दौसा के लालसोट में स्व. श्यामसुन्दर ढंड स्मृति सम्मान एवं तरूण भारत संघ द्वारा ‘तरूण भारत पर्यावरण रक्षण सम्मान से नवाजा जा चुका है। साल 2012 में पंजाब कला साहित्य अकादमी ने उन्हें विशेष अकादमी सम्मान देकर पुरुस्कृत किया। इसके अलावा देश के विभिन्न राज्यों के दर्जनों साहित्यक, सामाजिक और शासकीय संस्थाओं द्वारा भी उन्हें सम्मान मिल चुका है। अमेरिका, कनाडा और शरजहां आदि देशों में विश्वा, हिन्दी चेतना, विभोम स्वर, अभिव्यक्ति और अनुभूति’ आदि प्रकाशित होने वाली पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाओं का प्रकाशन भी उनके सम्मान का ही पहलु है। 
17Aug-2022

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