मंगलवार, 15 मई 2018

एससी/एसटी एक्ट पर अध्यादेश लाने की तैयारी



संसद में विधेयक से बदला जाएगा सुप्रीम कोर्ट का फैसला
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका पर 16 मई को सुनवाई होनी है, लेकिन यदि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला नहीं बदला तो केंद्र सरकार इस कानून पर अध्यादेश लाने के विकल्प पर भी विचार कर रही है, जिसे संसद में विधेयक के जरिए इस कानून को संविधान की नौवीं अनुसूचित के दायरे में लाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगाने जैसे फैसले से देश की सियासत गरमा गई थी और तमाम विपक्षी दलों ने मोदी सरकार पर इस फैसले को बदलवाने के लिए पुनर्विचार याचिका दायर करने का दबाव बनाया। इसी दबाव में दायर केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर 16 मई बुधवार को सुनवाई होनी है। सूत्रों के अनुसार इस मुद्दे पर केंद्र सरकार दूसरे विकल्प की भी तैयारी कर चुकी है, जिसके तहत सरकार संसद में एक विधेयक पारित कराकर एससी/एसटी एक्ट को संविधान की नौवीं अनुसूचि के दायरे में शामिल करने की तैयारी में है, ताकि इसे न्यायिक चुनौती न दी जा सके। सूत्रों के अनुसार यदि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले को बदलने से इंकार किया तो ऐसे में केंद्र सरकार जल्द ही एससी/एसटी एक्ट पर अध्यादेश जारी कर सकती है, जिसे संसद में विधेयक के रूप में तब्दील कर दिया जाएगा। गौरतलब है कि केंद्र सरकार की ओर से एजी के जरिए कहा था कि अदालत इस प्रकार का नया कानून नहीं बना सकती है, जो उसके अधिकार क्षेत्र में न हो। भारतीय संविधान में काननू बनाने का अधिकार संसद के पास है।
क्या था सुप्रीम कोर्ट का आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने एससी/एसटी एक्ट पर आदेश दिया था कि इस एक्ट में एफआईआर से पहले जांच अधिकारी का संतुष्ट होना जरूरी है और गिरफ्तारी से पहले यह जांच जरूरी है कि किसी निर्दोश को झूठा तो नहीं फंसाया जा रहा है। जांच के बाद ही आरोपित की गिरफ्तारी करने का फैसला दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को लेकर संसद के दोनों सदनों में भी सरकार को पुनर्विचार याचिका दायर करने की मांग की जाती रही। इस मुद्दे पर गरमाई राजनीति के दबाव में सरकार को सुप्रीम कोर्ट में अपने फैसले को बदलने के आग्रह के लिए पुनर्विचार याचिका दायर करनी पड़ी। हालांकि इस याचिका पर पिछली सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले पर अडिग नजर आ रहा था। शायद सरकार ने कोर्ट के इसी रूख को देखते हुए अध्यादेश जैसे विकल्प की तैयारी की है।
15May-2018
 


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