देश
की सियासत की सूरत कितनी बदल गई है, जिसमें अब जनहित के मुद्दे गौण होते जा रहे हैं
और चुनावी मौसम आते ही सियासत ऐसी करवट बदलती नजर आती है कि सत्ता की खातिर बड़े-बड़े
वादे करने के बावजूद मुद्दों को ताक पर रखते हुए राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप
लगाते हुए जनता के बीच जुबानी जंग का जहर परोसने का प्रयास कर रहे हैं। कर्नाटक चुनाव
में जिस प्रकार की सियासत देखने को मिली है उसमें कर्नाटक की सत्तारूढ़ कांग्रेस के
कामकाज का आकलन खुद जनता करके अपने मताधिकार का इस्तेमाल कर रही है, जबकि सत्ता परिवर्तन
के लिए इन चुनावों में जान फूंक चुकी भाजपा राज्य में सुशासन देने का वादा कर रही है।
राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार कर्नाटक विधानसभा चुनाव की वोटिंग के बाद सामने आ रहे
रूझानों से भाजपा व कांग्रेस के बीच 50-50 चुनावी मैच नजर आ रहा है। हालांकि भाजपा
ने राज्य सरकार की तमाम खामियां गिनाकर चुनावी प्रचार में जनता के बीच विश्वास का माहौल
बनाने का प्रयास किया है। इसके बावजूद चुनाव प्रचार के दौरान जिस प्रकार से खासकर भाजपा
व कांग्रेस के बीच सियासी तकरार की जंग के बीच सामने आई कुछ घटनाओं में एक-दूसरे पर
पर जिम्मेदारी का ठींकरा फोड़ा गया है, उसका जवाब तो जनता दे चुकी है केवल दोनों दलों के ईवीएम में बंद भाग्य
का पिटारा खुलना बाकी है और पता चल जाएगा कि सत्ता की खातिर किस दल ने कितना सच उगला
है।
मुंगेरीलाल के हसीन सपने
अगले
साल लोकसभा के चुनाव की तैयारियों में जुटे तमाम राजनीतिक दल अपनी-अपनी रणनीतियों का
तानाबाना बुनने में व्यस्त हैं। भले की कर्नाटक विधानसभा के चुनाव के चुनावी प्रचार
ही क्यों न रहा हो ,जिसके बहाने भाजपा और कांग्रेस की नजरें केंद्र की सत्ता के लिए
सीधे आगामी आम चुनाव पर रही। भला ऐसे में नए-नए पार्टी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष
राहुल गांधी पीएम बनने की इच्छा का संकेत न दें तो पता कैसे लगेगा कि वह प्रधानमंत्री
बनने के लिए मुंगेरीलाल के हसीन सपने देख रहे हैं। युवराज के इन सपनों में भी सपा की
दखलंदाजी समझ से परे है, जिसके मुखिया ने कहा कि लोकसभा चुनाव होने के बाद तय होगा
कि पीएम कौन बनेगा। सियासी गलियारों में चर्चा है कि पीएम बनने के लिए मुंगेरीलाल के
सपने अकेले युवराज ही नहीं देख रहे, बल्कि भाजपा के खिलाफ महागठबंधन रूपी काठ की हांडी
पकाने में शामिल अन्य दलों के मुखिया भी ऐसे सपनों की लहरों में तैर रहे हैं। राजनीतिकारों
का मानना है कि देश के सामने मोदी का अभी कोई विकल्प नजर नहीं आता, इसलिए भाजपा के
खिलाफ विपक्षी दल एकजुट होकर मुकाबला करने की तैयारी में हैं, लेकिन पिछले सियासी इतिहास
को देखें तो दर्जनों बार महागठबंधन की कोशिशें हुई, लेकिन नेतृत्व की जंग में काठ की
हांडी पक नहीं सकी और न ही भविष्य में ऐसी कोशिश सिरे चढ़ने की उम्मीदें बहुत ही कम
हैं।
ताजमहल का तकाजा
दुनिया
के अजूबों में शामिल ऐतिहासिक धरोहर ताज महल के बदलते विपरीत स्वरूप को लेकर हाल ही
में सुप्रीम कोर्ट ने पुरातत्व विभाग को लेकर टिप्पणी की है। यूपी के आगरा स्थित ताज
महल के रंग के फीका पड़ने या पीलेपन को लेकर चिंतित केंद्र सरकार का पर्यटन मंत्रालय
भी चिंतित है। ताजमहल के हक को लेकर भी पिछले दिनों जिस प्रकार के विवाद सामने आए हैं
उसमें भी राजनीतिक तर्क तक सुर्खियां बने हैं। इसी बीच नमामि गंगे मिशन को लेकर केंद्रीय
मंत्री नितिन गडकरी भी ताज महल की सौंदर्यता को लेकर चुप नहीं रह सके और गंगा सफाई
अभियान के बहाने ही अपने जल संसाधन मंत्रालय की गंगा के साथ यमुना नदी की गंदगी हटाने
की योजना पर बोले कि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए दिल्ली के अधिकारियों के साथ
हुई बैठक में इस बात पर चर्चा हुई है, कि यमुना नदी सबसे ज्यादा दिल्ली की गंदगी के
कारण प्रदूषित है, जिसकी गंदगी सीधे ताज महल के निकट से से गुजर रही यमुना नदी में
जमा हो रही है। मसलन उनका तर्क था कि यदि यमुना का गंदा पानी ताज महल तक जाना बंद हो
जाए तो ताज महल की चमक को बरकरार रखा जा सकता है।
और अंत में
केंद्रीय
सूचना एवं प्रसारण मंत्री की मीडिया के प्रति बनी नकारात्मक सोच शायद अभी बदली नहीं
है। इससे पहले मीडिया पर शिकंजा कसने के लिए जारी आदेशों को पीएमओ के हस्तक्षेप को
वापस लेने का मजबूर मंत्रालय की नजर शायद अभी मीडिया पर नियंत्रण करने पर टिकी हुई
है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी का एक बयान आया कि मीडिया की स्वतंत्रता
के लिए संतुलन बनाने का समय आ गया है। इसका मतलब पीएम मोदी व अमेरीकी राष्ट्रपति ट्रंप
मीडिया की आजादी को लेकर सकारात्मक बयान दे रहे हैं, लेकिन भारत का आईबी मंत्रालय मीडिया
पर नियंत्रण करने की कोशिश में है?
-हरिभूमि ब्यूरो
13May-2018
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