रविवार, 6 मई 2018

नमामि गंगे मिशन पर सरकार ने बदली रणनीति



जीआईएस तकनीक के इस्तेमाल का फैसला
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार की गंगा स्वच्छता अभिभयान से जुड़े महत्वाकांक्षी ‘नमामि गंगे’ मिशन में तेजी लाने की दिशा में सरकार ने रणनीति बदलते हुए भारतीय सर्वेक्षण विभाग को शामिल किया है। वहीं इस परियोजना में अब जीआईएस तकनीक का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया गया है।
दरअसल राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के नए महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने नमामि गंगे की परियोजनाओं में भौगोलिक सूचना प्रणाली यानि जीआईएस प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने का निर्णय लिया है, जिसके लिए मिशन ने गंगा कायाकल्प कार्य को पूरा करने के मकसद से देश के सबसे पुराने भारतीय सर्वेक्षण विभाग को मिशन में शामिल कर लिया है। इस निर्णय के लिए नमामि गंगे परियोजना में जीआईएस तकनीक के इस्तेमाल पर अनुमानित लागत 86.84 करोड़ रूपये की मंजूरी भी की गई है।  केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार नमामि गंगे मिशन के लक्ष्य को को हासिल करने के लिए राष्ट्रीय,राज्य और स्थानीय स्तर पर योजनाओं के जारी निर्माण तथा कार्यान्वयन में तेजी लाने के लिए एनएमसीजी ने यह फैसला किया है।
ऐसे होगी जीआईएस प्रणाली
मंत्रालय के अनुसार नमामि गंगे मिशन में जीआईएस प्रौद्योगिकी के उपयोग से विकेंद्रीकरण भी सुनिश्चित होगा, जिसमें संग्रहित किये जाने वाले आंकड़ों तथा सरकार द्वारा उठाए गये कदमों की जानकारी पोर्टल व मोबाईल एप के माध्यम से स्थानीय लोगों के साथ साझा की जाएंगी। इसका मकसद है कि परियोजना में स्थानीय लोगों को अपनी प्रतिक्रिया या सुझाव देने का मौका भी मिलेगा। इस प्रकार यह आपसी संवाद सुलभ करेगा तथा एक पारदर्शी मंच साबित होगा। वहीं इस प्रणाली से प्रभावी निर्वहन प्रबंधन के लिए औद्योगिक, व्यावसायिक और सभी अन्य प्रकार की संस्थाओं से निकलने वाले सीवेज की मैपिंग की जा सकेगी। दरअसल जीआईएस तकनीकी से नदी के दोनों किनारों पर प्रस्तावित उच्च क्षमता वाली संरक्षित क्षेत्रों के नियमन में सहायता मिलेगी और कार्य में तेजी आ सकेगी।
डीईएम प्रौद्योगिकी
गंगा स्वच्छता के लिए तमाम परियोजना में डिजीटल इलिवेशन मॉडल पर तकनीक के इस्तेमाल सटीक आंकड़ा संग्रह करना सुनिश्चित होगा, जो नदी-बेसिन प्रबंधन योजना का एक महत्त्वपूर्ण घटक भी है। डीईएम प्रौद्योगिकी पूरे क्षेत्र की स्थलाकृति की पहचान करता है। इससे नीति निर्माता आसानी से उपलब्ध आंकड़ों का विश्लेषण कर सकते हैं। इस प्रकार यह नीति निर्माण प्रक्रिया को सहायता प्रदान करता है। इस तकनीक से महत्त्वपूर्ण स्थानों की पहचान की जा सकती है।
मजबूत होंगे प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
मंत्रालय के अनुसार राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन ने गंगा बेसिन राज्यों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड व पश्चिम बंगाल के राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की मजबूती के लिए 5 वर्षों के लिए 85.97 करोड़ रूपये की लागत से एक परियोजना को भी मंजूरी दी है, ताकि वे समय-समय पर जल की गणवत्ता सत्यापित कर सकें। प्रदूषण मूल्यांकन और जल गुणवत्ता निगरानी के लिए प्रयोगशालाओं में आधुनिक उपकरण लगाए जाएंगे तथा प्रशिक्षित विज्ञानकर्मियों को नियुक्त किया जाएगा।
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सीवेज विकसित करने की मंजूरी
पश्चिम बंगाल में हुगली-चिनसुरह और महेशतला नगरपालिकाओं में सीवेज अवसंरचना को विकसित करने के लिए 358.43 करोड़ रूपये मंजूर किये गए हैं। इन दोनों परियोजनाओं के पूरे होने से 56 एलएलडी सीवेज पानी सीधे गंगा में बहने से रूक जाएगा।महेशतला एक प्रमुख शहर है और यह वृहत कोलकाता का एक हिस्सा है। महेशतला परियोजना में पृथक सीवर नेटवर्क (27 किलोमीटर), एक एसटीजी (26 एमएलडी), मौजूदा बुनियादी ढांचे की मरम्मत कार्य और 15 वर्षों तक संचालन व रखरखाव आदि शामिल हैं। इनकी कुल लागत 198.43 करोड़ रूपये है। 160 करोड़ रूपये की लागत से हुगली-चिनसुरह परियोजना में एक एसटीजी का निर्माण (29.3 एमएलडी), 20 किलोमीटर सीवर लाइन का निर्माण, 2 पंपिंग स्टेशनों का निर्माण, मौजूदा बुनियादी ढांचे का मरम्मत कार्य तथा 15 वर्षों तक संचालन व रखरखाव आदि शामिल हैं। ये दोनों परियोजनाएं पीपीपी मॉडल आधारित  हाइब्रिड एन्यूटी के अन्तर्गत मंजूर की गई हैं। 531.24 करोड़ रूपये की लागत वाली ये 4 नई परियोजनाएं राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की 11 वीं कार्यकारी समिति की बैठक में मंजूरी की गई थी। 
06May-2018
 


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