मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

माननीयों के लिए जल्द बनेगी आचार संहिता!

संसद व राज्य विधानमंडलों के सचेतको में बनी सहमति
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
संसद और राज्यों के विधानमंडलों में निर्वाचित जनप्रतिनिधियों का अचार और व्यवहार गरिमयी हो इसके लिए जल्द ही केंद्र सरकार आचार संहिता बनाने की तैयारी कर रही है। केंद्र की मोदी सरकार ने पिछले दिनों सदनों में टूटती संसदीय मर्यादाओं से कम होती संसद और विधानसभाओं की विश्वसनीयता को मजबूत करने का फैसला किया है।
भारतीय संसद और राज्य विधानसभाओं में बैठकों की गिरती संख्या की समस्या लगातार होने वाले अवरोधों और स्थगनों की वजह से और जटिल हो जाती है और सदन में कई दिनों तक कामकाज भी नहीं हो पाता है। ऐसे में विधायिका के प्रमुख कार्यों में से एक विभिन्न प्रकार से कार्यपालिका की जवाबदेही सुनिश्चित कैसे करे, जिसमें सदन में प्रश्नकाल भी शामिल है। इसी निराशाजनक पहलू को देखते हुए सदनों में सांसदों या विधायकों अथवा जनप्रतिनिधियों के आचार-व्यवहार को गरिमापूर्ण बनाने के लिए विचार किया जाना जरूरी है। न कि संसद के इतने महत्वपूर्ण समय का इस्तेमाल राजनैतिक अभिव्यक्ति का एक नियमित तरीके के रूप में इस्तेमाल किया जाए। इस समस्या से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने सभी राजनीतिक दलों के संसद और राज्य विधानमंडलों के सचेतकों का गोवा में सम्मेलन बुलाकर आचार संहिता को दायरे को सख्त बनाने का निर्णय लिया है और इस समस्या से निपटने के लिए सामूहिक रूप से कदम उठाने पर सहमति बनाई जा रही है। मसलन केंद्र सरकार जल्द ही सांसदों और राज्य के विधानसभा सदस्यों के लिए आचार संहिता बनाने की तैयारी में हैं। हालांकि जहां तक संसद का सवाल है ससंदीय सचिवालय की ओर से समय-समय पर बुकलेट जारी होती रही है जिसमें संसदीय परंपराओं, नियमों का उल्लेख के साथ उनका पालन करने की हिदायतें भी होती हैं और इस बात का जिक्र भी होता है कि एक सांसद या जनप्रतिनिधि को संसद के भीतर या बाहर किस तरह का व्यवहार करना चाहिए। लेकिन इसके बावजूद संसद ही नहीं बल्कि राज्य विधानसभाओं में जिस तरह से संविधान और सदन की गरिमाएं तार-तार होती देखी गई है उससे देश की जनता के प्रति भी ये संस्थाएं विश्वसनीयता खोती जा रही हैं। अब केंद्र में मोदी सरकार ने सांसदों के लिए एक रूल बुक लाने की योजना पर विचार किया है, जिसमें आचार संहिता आचार संहिता का पालन सुनिश्चत किया जा सके। इसका संदेश आम लोगों तक पहुंचना चाहिए। इसमें यह भी कहा गया है कि यह बैठक इसलिए बुलाई गई है ताकि संसद और राज्य विधानमंडलों के कामकाज की जटिलताओं से निपटने के लिए सामूहिक कदम उठाया जा सके।
पिछले दशक में गिरी संसद की गरिमा
संसदीय कार्य मंत्रालय के अनुसार लोकसभा के 15 कार्यकालों में से 10 लोकसभाओं ने अपना कार्यकाल पूरा किया है। इन 10 में से 14वीं एवं 15वीं लोकसभा के दौरान प्रतिवर्ष की औसत बैठक संख्या सबसे कम क्रमश: 67 एवं 71 रही हैं। जबकि वर्ष 1952 में हुए पहले आम चुनावों के बाद से पहले 37 सालों में पहली लोकसभा से छठी लोकसभा तक प्रति वर्ष 100 से ज्यादा बैठकें होती रही हैं। यही नहीं पहली लोकसभा के नाम 132 बैठकों का रिकॉर्ड अभी भी कायम है और छठी लोकसभा में प्रति वर्ष बैठकों की औसत संख्या 108 रही है। 1980 से 1984 तक सातवीं लोकसभा के दौरान यह संख्या पहली बार गिरकर 100 से नीचे आई। सरकार का मानना है कि संसद 100 बैठकें प्रतिवर्ष किये जाने की जरूरत है।
हरियाणा का रिकार्ड खराब
राज्य विधानमंडलो की स्थिति इस मामले ज्यादा खराब रिकार्ड पेश कर रही है। यदि हरियाण विधानसभा के वर्ष 2009 से 2014 का रिकार्ड देखा जाए तो इन पांच सालों में हरियाणा विधानसभा की बैठकें की संख्या महज 56 रही है। मसलन एक साल में लगभग 11 दिन बैठकों का औसत रहा। जबकि छोटे राज्यों के लिए प्रतिवर्ष कम से कम 40 बैठकें और अन्य बड़े राज्यों के लिए 70 बैठकें सुनिश्चित करने की जरूरत है। जबकि संसदऔर संसद के लिए 100 दिन तय किए जाने पर विचार किया जाना चाहिए।
कार्यपालिका के प्रति धारणा नकारात्मक हुईं: नायडू
संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने सोमवार को गोवा में शुरू हुए संसद और राज्य विधानमंडल के सर्वदलीय सचेतकों के सम्मेलन भी कहा कि देश की सर्वोच्च पंचायत संसद और राज्य विधानसभाओं के कामकाज को लेकर जनता की धारणा बेहद चिंता का विषय है, जिसके लिए सदनों को जनता के विश्वास को मजबूत करने की जरूरत है। मसलन इन महत्वपूर्ण संस्थानों की विभिन्न काराणों से कम होती जा रही विश्वसनीयता के पीछे राजनीति का अपराधीकरण, धनबल में वृद्धि, बैठकों की संख्या में कमी, बैठकों में बार-बार अवरोध और उनका स्थगित होना, सदन के भीतर एवं बाहर कुछ सांसदों और विधायकों का आपत्तिजनक बर्ताव जैसी बढ़ती परंपरा है। इस लिए वक्त का तकाजा है कि जनप्रतिनिधियों को लोकतंत्र के हमारे पवित्र संस्थानों के संचालन के तरीके में बदलाव के प्रयास करने की जरूरत है।

आचार संहिता में शामिल होंगे ये मुद्दे
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार संसद और विधानसभाओं में होने वाली बैठकों की संख्या और विधायी कामकाज को सुचारू करने की दिशा जिस तरह के कदम उठाने की तैयारी कर रही है। मसलन उसके लिए जनप्रतिनिधियों के आचार और शिष्टाचार के दायरे को सख्त करने के लिए आचार संहिता बनाने जा रही है। जबकि संसद के पास पहले से ही ऐसे अधिकार मौजूद हैं जिन्हें सरकार सख्ती से लागू करने की तैयारी में हैं।
केंद्र सरकार ने संसद और राज्य विधानमंडलों के सचेतकों की बैठक के दौरान जिन मुद्दों पर चर्चा करने का निर्णय लिया है उनमें संसद की गरिमा और मयार्दा को बनाए रखना, सदन में प्रवेश करने और निकलने से पहले अध्यक्ष के सामने झुकना जैसे कुछ अहम मुद्दे हैं। चर्चा में शामिल नहीं होने के समय शांति बनाए रखना, अध्यक्ष यदि खुद बोल रहे हों तो सीट पर बैठ जाना, संसद की लॉबी में बातचीत नहीं करना और नहीं हंसना भी इसमें शामिल है। अन्य नियमों संसद के अंदर निरर्थक किताबें नहीं पढ़ना, नारेबाजी नहीं करना, आसन की ओर पीठ कर खड़ा नहीं होना जैसे कुछ नियम भी इनमें शामिल हैं। सदन में कोई झंडा, कोई निशान नहीं दिखाना और हाथ नहीं लहराना जैसे नियम भी इसमें शामिल होंगे। कोई मुद्दा सदन में उठाते समय सांसद को ऐसे किसी मामले को उठाने से बचना होगा, जो न्यायालय में लंबित हैं। असंसदीय शब्दों का प्रयोग नहीं करना भी इसमें शामिल होगा। किसी भी सरकारी अधिकारी को संसद में नाम लेकर नहीं बुलाया जाएगा, अध्यक्ष या सभापति जब कहें, तभी बोलना होगा, जैसे मुद्दे भी इसमें शामिल हैं। इन मुद्दों को लेकर सरकार शीघ्र ही जनप्रतिनिधियों के लिए आचार संहिता बनाने की तैयारी में है।
अधिकारों से परिपूर्ण है संसद
सूत्रों की माने तो अभी तक आजाद भारत में सांसदों के अनचाहे कार्यों की व्याख्या नहीं की गई है। हालांकि इसके बारे में संसद के पास यह अधिकार भी है कि वह सांसदों के कामकाज को परिभाषित कर सके। ऐसा भी नहीं है कि असंसदीय व्यवहार करने वाले सांसदों को दंडित करने का अधिकार संसद के पास नहीं है, लेकिन उसके लिए राजनीतिक पक्ष को बाधक बना हुआ है। मसलन संसद के पास यह अधिकार भी है कि वह संसद के अंदर या बाहर किसी सांसद के गलत कार्यों पर उसे दंडित करे। ऐसे किसी गलत काम के लिए सांसदों को कई तरह की सजा दी जा सकती है। इसमें जेल भेजना और सदस्यता रद्द करने जैसा बड़ा कदम भी है। 
14Oct-2014


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