रविवार, 19 अक्तूबर 2014

अब सांसद को सदन में हंगामा करना पड़ेगा भारी!

हर साल संसद में न्यूनतम सौ बैठकें तय करने की सिफारिश
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद या विधानमंडलों में हंगामा करके सदन की कार्यवाही को बाधित करना सांसदों एवं विधायकों के लिए अब भारी पड़ेगा। यदि संसदीय कार्यमंत्री एम.वेंकैया नायडू की सिफारिश पर अमल हुआ तो जनप्रतिनिधियों के खिलाफ न सिर्फ अनुशासनात्मक कार्यवाही होगी, बल्कि एक दिन का वेतन भी काट लिया जाएगा।
संसद में विधायी कार्यो में बाधक बनते आ रहे सांसदों के हंगामें पूर्ण आचरण को सुधारने की कवायद में मोदी सरकार ने आगे बढ़ना शुरू कर दिया है। इस मामले में जहां सरकार सांसदों के लिए आचार संहिता लाने की तैयारी कर रही है, वहीं उसी रणनीति के तहत पिछले एक दशक में संसद की बैठकों की संख्या में आई कमी को न्यूनतम सौ दिन तक लाने का प्रयास है। सरकार सदन में सांसदों के आचरण पर गंभीर है और इस दिशा में सरकार बड़े फैसले करने की तैयारी में जुट गई है। हाल ही में गोवा में संपन्न हुए संसद और विधानमंडलों के सर्वदलीय सचेतकों के सम्मेलन में इस प्रकार के निर्णय लिये गये हैं जिनमें जनप्रतिनिधियों के लिए सरकार जल्द ही आचार संहिता लागू करेगी। इस आचार संहिता के तहत आचरण और शिष्टाचार के लिहाज से जनप्रतिनिधियों पर शिकंजा कसने की तैयारी हो रही है। इस सम्मेलन में हुए कुछ प्रस्तावों के बाद संसदीय कार्य मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने लोकसभा अध्यक्ष श्रीमती सुमित्रा महाजन को एक पत्र लिखा है जिसमें सांसदों के आचारण में सुधार लाने की दिशा में ऐसा प्रावधान करने का सुझाव दिया गया है,जिसमें सदन के भीतर यदि कोई सांसद हंगामा करके सदन की कार्यवाही को बाधित करता है तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही सुनिश्चित की जाए, वहीं ऐसे सांसद का एक दिन का वेतन और भत्ता काटने की सिफारिश भी की गई है। मोदी सरकार के सख्त फैसलों की तैयारी के खाका में सदन में खराब व्यवहार पर आचार संहिता के तहत तत्काल कार्रवाही करने का सुझाव भी दिया गया है। वहीं पिछले एक दशक में संसद की एक साल में बैठकों का ग्राफ गिरकर सौ से कम आने से चिंतित केंद्र सरकार ने लोकसभा अध्यक्ष को सुझाव दिया है कि सांसदों के आचारण को प्राथमिकता पर रखते हुए सदन की एक साल में न्यूनतम 100 बैठकें भी सुनिश्चित की जाएं। गौरतलब है कि पिछले एक दशक यानि 14वीं एवं 15वीं लोकसभा के दौरान प्रतिवर्ष की औसत बैठक संख्या सबसे कम क्रमश: 67 एवं 71 रही हैं। संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने गोवा में हुए सम्मेलन में भी संसद व विधानमंडलों के सर्वदलीय सचेतकों के समक्ष कहा था कि देश की सर्वोच्च पंचायत संसद और राज्य विधानसभाओं के कामकाज को लेकर जनता की धारणा बेहद चिंता का विषय है, जिसके लिए सदनों को जनता के विश्वास को मजबूत करने की जरूरत है।
विधानसभाओं में भी हो सुधार
उधर राज्यों की विधानसभाओं में भी इसी प्रकार की आचार संहिता लागू करने के लिए संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने विधानसभा अध्यक्षों व राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखकर सुझाव दिया है कि 30 विधायकों से कम संख्या वाली विधानसभाओं में कम से कम 40 दिन और 30 से ज्यादा संख्या वाली विधानसभाओं में कम से कम 70 दिन की बैठकें एक साल में सुनिश्चित की जाएं। वहीं विधायकों के आचरण को सुधारने के लिए विधानमंडल के नियमों व आचार संहिता के तहत कार्यवाही करने की सिफारिश की है।
अनुशासन का शिकंजा
सासंदों के लिए लागू होने वाली प्रस्तावित आचार संहिता में केंद्र सरकार के कड़े फैसलों में पद की गरिमा और मयार्दा को बनाए रखना, सदन में प्रवेश करने और निकलने से पहले अध्यक्ष के सामने झुकने जैसे मुद्दों पर भी सख्ती करने की तैयारी है। सदन के भीतर चर्चा में के समय शांति बनाए खना,अध्यक्ष यदि खुद बोल रहे हों तो सीट पर बैठ जाना, संसद की लॉबी में बातचीत नहीं करना और नहीं हंसना भी जनप्रतिनिधियों के गले की फांस बन सकते हैं। आचरण और शिष्टाचार के प्रति गंभीर सरकार ऐसे सख्त नियमों की तरफ बढ़ रही है जिसमें सदन के अंदर नारेबाजी, किताबे पढ़ना, झंडा या कोई पंपलेट दिखाना जैसा व्यवहार भी जनप्रतिनिधियों के लिए भारी पड़ सकता है। 
19Oct-2014



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