सुप्रीम कोर्ट में 28 अक्टूबर को होगी सुनवाई पर दारमोदार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा की तीन रिक्त सीटों पर चुनाव कराने का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन आयोग का यह फैसला हैरतअंगेज करने वाला है, जिस पर सवाल इसलिए भी उठने शुरू हो गये हैं कि दिल्ली में चुनाव कराने को लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है।
चुनाव आयोग ने दिल्ली की तीन उन विधानसभा सीटों कृष्णानगर, महरौली और तुगलकाबाद पर 25 नवंबर को उपचुनाव का ऐलान किया है, जो यहां के विधायकों क्रमश: डा. हर्षवर्धन, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और रमेश विधूडी के लोकसभा के लिए निर्वाचित होने से रिक्त घोषित की गई थी। जबकि दिल्ली में लागू राष्टÑपति शासन के बीच कई बार सरकार गठन के लिए भी राजनीतिक दलों में गतिविधियां बढ़ी है, जिसमें उपराज्यपाल नसीब जंग भी राष्ट्रपति को एक पत्र भेजकर ऐसा प्रयास कर चुके हैं। इसी बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी विचार के लिए लंबित हैं, जिसके लिए दिल्ली चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 28 अक्टूबर को ही सुनवाई होनी है। ऐसे में चुनाव आयोग के इस ऐलान से दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो
गई है।
चुनाव आयोग का तर्क
जब मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने दिल्ली की रिक्त तीन सीटों कृष्णा नगर, महरौली व तुगलकाबाद पर उपचुनाव कराने का ऐलान किया तो उस मौके पर मीडिया ने सवाल उठाने शुरू किये तो संपत ने तर्क दिया कि इन सीटों से निर्वाचित विधायकों डा. हर्षवर्धन, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और रमेश लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं और उनके इस्तीफे आने के बाद चुनाव आयोग ने 30 मई को उनकी सीटें रिक्त घोषित कर दी थीं। विधानसभा सीट छह महीने से ज्यादा खाली नहीं हो सकती हैं। वहीं दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू है लेकिन विधानसभा को भंग नहीं किया गया है। इन सीटों पर उप चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने ऐसी ही संवैधानिक बाध्यता के कारण चुनाव की तारीखों का ऐलान किया गया है। संपत ने हालांकि यह भी स्पष्ट किया है कि अगर इस बीच उप राज्यपाल चुनाव कराने की सिफारिश कर देते हैं, तो इन सीटों पर उप चुनाव कराने का निर्णय वापिस ले लिया जाएगा।
फिर भी नहीं बनेगी सरकार?
इन तीनों सीटों पर उप चुनाव कराने के बाद भी सरकार बनने को कोई संभावना नजर नहीं आती? यदि भाजपा ही इन उपचुनाव में जीत जाती है तो भाजपा की विधानसभा चुनाव के दौरान आई 31 सीटें पूरी हो जाएंगी और विधानसभा की स्थिति वही रहेगी, जिसके चलते उस दौरान आप ने कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई थी और मात्र 49 दिन ही चल सकी। और यदि उप चुनाव में आम आदमी पार्टी भाजपा की इन तीनों सीटों को छीनने में सफल होती हैं तो उसकी भी 28 से बढ़कर 31 हो जाएगी, जो बहुमत से कोसो दूर है और वह दोबारा बिना कांग्रेस या अन्य के सरकार नहीं बना सकेगी। इसका कारण साफ है कि दिल्ली में सरकार का गठन करने के लिए भाजपा, कांग्रेस व आप में से किन्हीं दो दलों को आपस में मिलना पड़ेगा, लेकिन कोई भी ऐसा करने को तैयार नहीं है। इसलिए ऐसे में दिल्ली में बिना दोबारा चुनाव के सरकार बनने की संभावनाएं दूर तक नहीं हैं।
गेंद केंद्र के पाले में
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली मेंसरकार न बनने की स्थिति में ऐसी भी संभावनाएं प्रबल हैं कि यदि केंद्र सरकार चाहे तो संसद में बिल पेश करके राष्ट्रपति शासन की अवधि दो साल और बढ़ा सकती है। गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने 14 फरवरी को जन लोकपाल बिल के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था और 17 फरवरी को विधानसभा सस्पेंड करके एक साल के लिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। राष्ट्रपति शासन समाप्त होने से पहले दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराया जाना जरूरी है।
भाजपा का दावं
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त को केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके कहा था कि वह 5 सप्ताह में एक सकारात्मक फैसला ले और तमाम संभावनाओं के बारे में विचार करे। इन संभावनाओं में दिल्ली विधानसभा को भंग करना या फिर सरकार के गठन की कोशिश सब कुछ शामिल है। केंद्र सरकार को अब 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट को बताना होगा कि दिल्ली में विधानसभा भंग की जा रही है या नहीं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या केंद्र की भाजपा सरकार इन उपचुनावों को जनता के मूड भांपने के लिए इस्तेमाल करेगी? ऐसा करके भाजपा दिल्ली की बाजी अपने पास रखने में सफल हो सकती है।
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने दिल्ली विधानसभा की तीन रिक्त सीटों पर चुनाव कराने का ऐलान तो कर दिया है, लेकिन आयोग का यह फैसला हैरतअंगेज करने वाला है, जिस पर सवाल इसलिए भी उठने शुरू हो गये हैं कि दिल्ली में चुनाव कराने को लेकर एक मामला सुप्रीम कोर्ट में भी लंबित है।
चुनाव आयोग ने दिल्ली की तीन उन विधानसभा सीटों कृष्णानगर, महरौली और तुगलकाबाद पर 25 नवंबर को उपचुनाव का ऐलान किया है, जो यहां के विधायकों क्रमश: डा. हर्षवर्धन, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और रमेश विधूडी के लोकसभा के लिए निर्वाचित होने से रिक्त घोषित की गई थी। जबकि दिल्ली में लागू राष्टÑपति शासन के बीच कई बार सरकार गठन के लिए भी राजनीतिक दलों में गतिविधियां बढ़ी है, जिसमें उपराज्यपाल नसीब जंग भी राष्ट्रपति को एक पत्र भेजकर ऐसा प्रयास कर चुके हैं। इसी बीच यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी विचार के लिए लंबित हैं, जिसके लिए दिल्ली चुनाव को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 28 अक्टूबर को ही सुनवाई होनी है। ऐसे में चुनाव आयोग के इस ऐलान से दिल्ली में विधानसभा चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति पैदा हो
गई है।
चुनाव आयोग का तर्क
जब मुख्य चुनाव आयुक्त वीएस संपत ने दिल्ली की रिक्त तीन सीटों कृष्णा नगर, महरौली व तुगलकाबाद पर उपचुनाव कराने का ऐलान किया तो उस मौके पर मीडिया ने सवाल उठाने शुरू किये तो संपत ने तर्क दिया कि इन सीटों से निर्वाचित विधायकों डा. हर्षवर्धन, प्रवेश साहिब सिंह वर्मा और रमेश लोकसभा के लिए चुने जा चुके हैं और उनके इस्तीफे आने के बाद चुनाव आयोग ने 30 मई को उनकी सीटें रिक्त घोषित कर दी थीं। विधानसभा सीट छह महीने से ज्यादा खाली नहीं हो सकती हैं। वहीं दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू है लेकिन विधानसभा को भंग नहीं किया गया है। इन सीटों पर उप चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग ने ऐसी ही संवैधानिक बाध्यता के कारण चुनाव की तारीखों का ऐलान किया गया है। संपत ने हालांकि यह भी स्पष्ट किया है कि अगर इस बीच उप राज्यपाल चुनाव कराने की सिफारिश कर देते हैं, तो इन सीटों पर उप चुनाव कराने का निर्णय वापिस ले लिया जाएगा।
फिर भी नहीं बनेगी सरकार?
इन तीनों सीटों पर उप चुनाव कराने के बाद भी सरकार बनने को कोई संभावना नजर नहीं आती? यदि भाजपा ही इन उपचुनाव में जीत जाती है तो भाजपा की विधानसभा चुनाव के दौरान आई 31 सीटें पूरी हो जाएंगी और विधानसभा की स्थिति वही रहेगी, जिसके चलते उस दौरान आप ने कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई थी और मात्र 49 दिन ही चल सकी। और यदि उप चुनाव में आम आदमी पार्टी भाजपा की इन तीनों सीटों को छीनने में सफल होती हैं तो उसकी भी 28 से बढ़कर 31 हो जाएगी, जो बहुमत से कोसो दूर है और वह दोबारा बिना कांग्रेस या अन्य के सरकार नहीं बना सकेगी। इसका कारण साफ है कि दिल्ली में सरकार का गठन करने के लिए भाजपा, कांग्रेस व आप में से किन्हीं दो दलों को आपस में मिलना पड़ेगा, लेकिन कोई भी ऐसा करने को तैयार नहीं है। इसलिए ऐसे में दिल्ली में बिना दोबारा चुनाव के सरकार बनने की संभावनाएं दूर तक नहीं हैं।
गेंद केंद्र के पाले में
राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक दिल्ली मेंसरकार न बनने की स्थिति में ऐसी भी संभावनाएं प्रबल हैं कि यदि केंद्र सरकार चाहे तो संसद में बिल पेश करके राष्ट्रपति शासन की अवधि दो साल और बढ़ा सकती है। गौरतलब है कि अरविंद केजरीवाल की सरकार ने 14 फरवरी को जन लोकपाल बिल के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया था और 17 फरवरी को विधानसभा सस्पेंड करके एक साल के लिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। राष्ट्रपति शासन समाप्त होने से पहले दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराया जाना जरूरी है।
भाजपा का दावं
सुप्रीम कोर्ट ने 5 अगस्त को केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके कहा था कि वह 5 सप्ताह में एक सकारात्मक फैसला ले और तमाम संभावनाओं के बारे में विचार करे। इन संभावनाओं में दिल्ली विधानसभा को भंग करना या फिर सरकार के गठन की कोशिश सब कुछ शामिल है। केंद्र सरकार को अब 28 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट को बताना होगा कि दिल्ली में विधानसभा भंग की जा रही है या नहीं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या केंद्र की भाजपा सरकार इन उपचुनावों को जनता के मूड भांपने के लिए इस्तेमाल करेगी? ऐसा करके भाजपा दिल्ली की बाजी अपने पास रखने में सफल हो सकती है।
26Oct-2014
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