बुधवार, 4 अगस्त 2021

आजकल: राजद्रोह कानून में धारा 124ए की जरुरत नहीं

--------रंजन कुमार, वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट----------- दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों पर अनुचित प्रतिबंध लगाने वाले अंग्रेजी हुकूमत के राजद्रोह कानून की प्रासांगिकता को अभी तक कायम रखने पर सुप्रीम कोर्ट का केंद्र सरकार से सवाल करना वाजिब है। सुप्रीम कोर्ट ने मेजर जनरल एसजी वोम्बटकेरे की आईपीसी की राजद्रोह कानून की धारा 124ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई के दौरान कई तरह की टिप्पणियां भी की। जिसमें उन्होंने । ब्रिटिशकाल में 1870 में लाए गए राजद्रोह कानून के मकसद को भी स्पष्ट किया। ब्रिटिश सरकार इस कानून को भारत की स्वतंत्रता के कट्टर समर्थक बाल गंगाधर तिलक और महात्मा गांधी जैसे समर्थकों को चुप करने के लिए लेकर आई थी, जिसका मकसद स्वतंत्रता संग्राम को दबाना था। मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमण की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस तथ्य का जिक्र करते हुए इसे एक औपनिवेशिक कानून बताया, लेकिन सरकार से पूछा कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरुरत है? सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी कानून को लेकर नहीं, बल्कि इसके दुरुपयोग की लगातार बढ़ती रफ्तार को लेकर चिंता जाहिर की गई। केंद्र सरकार अंग्रेजी हुकूमत के हजारों अप्रासांगिक हुए कानूनों को खत्म कर चुकी है, फिर इस कानून को समाप्त क्यों नहीं कर रही? खासकर वर्ष 2014 के बाद राजद्रोह कानून की आईपीसी की धारा 24ए का दुरुपयोग दोगुना से भी ज्यादा हुआ है। इस कानून का ब्रिटिशकाल में भी विरोध हुआ। हालांकि देश में बढ़ रहे राजद्रोह कानून के दुरुपयोग का मामला पिछले संसद के बजट सत्र में भी उठाया गया था। इसके बाद सरकार ने इस कानून में संशोधन करने के लिए एक समिति का भी गठन किया है, जिसके लिए राज्यों की सरकारों से भी सुझाव मांगे जाने रहे हैं। केंद्र सरकार कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद संसद में चर्चा कराकर इसमें संशोधन करने का भरोसा दे रही है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर सुनवाई में इस कानून के दुरुपयोग रोकने के लिए जो टिप्पणी की है। आजाद भारत में वर्ष 1962 में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य राजद्रोह का किसी अदालत में पहला मामला सामने आया था और पहली बार ही देश में राजद्रोह के इस कानून की संवैधानिकता को चुनौती दी गई और मामले की सुनवाई करते हुए अदालत ने देश और देश की सरकार के मध्य के अंतर को भी स्पष्ट किया। उस समय भी अदालत ने स्पष्ट कहा था कि किसी भी परिस्थिति में सरकार की आलोचना करना राजद्रोह के तहत नहीं गिना जाएगा। केंद्र सरकार को चाहिए कि इस कानून के दुरुपयोग को रोका जाना चाहिए। देश में इस कानून का दुरुपयोग हमेशा होता रहा है, लेकिन पिछले छह साल में देश में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए यानि राजद्रोह कानून के दुरुपयोग कहीं ज्यादा ही देखा गया है। आंकड़ो पर गौर किया जाए तो तीन सौ से ज्यादा दर्ज मामलों में पांच सौ से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसके दुरुपयोग को महसूस करते हुए ही सुप्रीम कोर्ट में राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाएं विचाराधीन है। बहरहाल अब राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर निर्णय सुप्रीम कोर्ट के पाले में है। शीर्ष अदालत सरकार के जवाब के बाद इस कानून को समाप्त करने या संतुलित करने का आदेश देती है। जहां तक आजाद भारत में सभी को अपनी बात कहने का मौलिक अधिकार मिला हुआ है, उसमें अभिव्यक्त की स्वतंत्रता को नियंत्रित नहीं किया जा सकता? फिर भी यदि देशद्रोह के दायरे में आने वाले भाषणों और टिप्पणियों के लिए देश में अन्य कानून बने हैं जिनका इस्तेमाल किया जा सकता है और भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए की जरुरत नहीं है और आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई भी संभव है। खासबात है कि ब्रिटेन में राजद्रोह को खत्म कभी का खत्म किया जा चुका है, जो सरकार के राजनीतिक एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए राजद्रोह का संभावित दुरुपयोग भी राजद्रोह को खत्म करने का एक कारण बना। इसलिए भारत में भी राजद्रोह कानून में धारा 124ए को समाप्त किया जाना चाहिए। -(ओ.पी. पाल से बातचीत पर आधारित) 18July-2021

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