सोमवार, 23 अगस्त 2021

आजकल-खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा के बिना चैंपियन की अपेक्षा बेमाने

-चन्द्रशेखर लूथरा, वरिष्ठ खेल पत्रकार 
ओलंपिक में भारत क्यों पिछड़ जाता है, इसका कारण साफ है कि भारत ने शायद अभी तक चीन, अमेरिका, जापान और ब्रिटेन की खेल नीतियों से सबक नहीं लिया है। भारतीय खिलाड़ियों को मनोवैज्ञानिक रूप से मजबूत करने के लिए एक ऐसो अनुकूल वातावरण की जरुरत है, जिसमें एक खिलाड़ी की स्वतंत्र इच्छा, भावनात्मक अभिव्यक्ति और स्वतंत्र प्रतिक्रिया को बढ़ावा मिल सके। इसके लिए भारत सरकार और खेल फैडरेशनों को ओलंपिक जैसे अंतर्राष्ट्रीय खेलों में खेल नीतियों में आमूलचूल बदलाव करने की जरुरत है, जो बिना किसी तैयारी के खिलाड़ियों को पदक लेने के लिए ओलंपिक में उतार देते हैं। 1980 मास्को ओलंपिक में हॉकी में चैंपियन बनने के 41 साल बाद भी भारत आगे नहीं बढ़ सका है। यदि भारत को ओलंपिक का चैंपियन बनाना है तो खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा को मजबूत करने की प्राथमिकता जरुरी है। भारतीय खिलाड़ी ज्यादातर गरीब घरानों से आते हैं और बिना रोजी रोटी और पैसे के हम उनके भरोसे वर्ल्ड पावर बनने का सपना देखते हैं। भारत सरकार द्वारा ओलंपिक के बजट में 232 करोड़ रुपये का बजट घटाकर हम खिलाड़ियों से ओलंपिक में पदक की उम्मीद करना बेमाने होगा। ओलंपिक जैसी अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हरेक खिलाड़ी अक्सर अपने खेल प्रदर्शन, व्यवसाय और व्यक्तिगत जीवन से संबंधित कई तनावों से निपटते हैं। इसलिए उनके काम के लिए उन्हें तनाव सहन करने की क्षमता विकसित करने और तनाव से निपटने के लिए चुनौतियों का सामना करने की ताकत देना जरुरी है। भारत को वर्ल्ड पावर बनाने की उम्मीद से जिन तैयारियों के साथ हम खिलाड़ियों को ओलंपिक में भेजते हैं और दर्शक रूपी होकर वापस लौटते हैं। यदि अभी भी हम कथनी और करनी में अंतर के बजाए खेल के प्रति गंभीर नहीं हुए तो किसी भी योजनाओं या स्कीम से हम चैंपियन नहीं बन सकते। हमे इमोशनल होने के बजाए खेलों की प्रतिभाओं को तरासने के लिए स्टीक होना पड़ेगा। उदाहरण के तौर पर लांसएंजलिस ओलंपिक अमेरिका ने आठ साल की तैयारी के बाद जिस प्रकार खेल पावर को बढ़ाया और ब्रिटेन ने एक खिलाड़ी 250 करोड़ का खर्च केवल पदक के लिए किया, तो वहीं चीन ने बच्चों को उनकी इच्छा के खेल में मजबूत बनाने की नीति अपनाई है। उसी प्रकार भारत को भी खेल नीति और विभिन्न खेल योजनाओं में खिलाड़ियों की आर्थिक सुरक्षा की प्राथमिकता के आधार पर खेल नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन करना होगा। भारत को दस साल तैयारी करने की नीति बनानी चाहिए, भले ही 2028 नहीं, तो 2030 के ओलंपिक के लिए दुनिया के सामने अपने आपको साबित करने के लिए बच्चों को विभिन्न स्पर्धाओं में प्रक्रिया को मजबूती के साथ शुरू करना होगा। इसी तैयारी में एक खिलाड़ी को बेहतरीन खिलाड़ी बनाने में और श्रेष्ठतम प्रदर्शन को बढ़ावा देने में प्रशिक्षकों की विशेष रूप से महत्वपूर्ण भूमिका के लिए सिस्टम को दुरुस्त करके हम आगे बढ़ सकते हैं।
खेलों के क्षेत्र में भारत सरकार हालांकि विभिन्न योजनाओं के जरिए प्रतिभाओं को तरासने की नीति पर काम कर रही है। सरकार के नेतृत्व वाली समग्र योजना में लोगों की व्यापक भागीदारी के साथ ओलंपिक के हिसाब से लक्ष्य निर्धारण करने के लिए प्रतिभाओं की खोज और प्रोत्साहन तंत्र में सरकारी और निजी क्षेत्रों के बीच तालमेल के साथ अनुवांशिक के आधार को भी देखने की जरुरत है। एक उदाहरण ये भी है कि देश की तत्कालीन खेल मंत्री मार्गेट अल्वा ने साईं के माध्यम से1980 में एक योजना बनाकर कर्नाटक के उत्तर कन्नड जिले में बसने वाले सिद्दी समुदाय के 12-13 साल के बच्चों को खेलों के लिए तैयार करना शुरू किया। अफ्रीकी मूल के इस समुदाय को इसके लिए मुख्यधारा में लाना भी एक मकसद रहा। उन्हें विभिन्न खेलों की ट्रेनिंग के लिए हास्टिलों में रखा गया। जब उन्हें नतीजे देने थे तो वे कुछ दिन के लिए अपने घरों में गये, तो ज्यादा खिलाड़ी गरीब परिवारों के ही होकर रह गये। 
इस मुहिम को सरकार को आगे बढ़ा सकती है, क्योंकि प्रशिक्षण के दौरान उनकी खेल प्रतिभाएं और क्षमताएं बेहतर प्रदर्शन के रूप में देखी गई है। यह सच है कि यदि भारत को चैंपियन बनाना है तो आदिवासी इलाकों में प्रतिभाओं को तराशने की मुहिम को तेज करनी होगी। भारत में यह भी एक कड़वा सच है कि जहां खेल संस्कृति और पारिवारिक-सामाजिक भागीदारी का अभाव है, तो वहीं सरकारों की औपचारिक प्राथमिकता और खेल फैडरेशनों पर सियासत हावी है। टोक्यो ओलंपिक में महानतम मुक्केबाज एमसी मैरीकॉम को भेजा गया, जिससे पदक की उम्मीद पहले से ही नहीं थी, क्योंकि नौ साल पहले ही उसे सन्यास लेना था। ऐसे केई मौके आए जब सरकार और फैडरानों ने कई ऐसे खिलाड़ियों को ओलंपिक की सैर कराई जिनसे पदक की की उम्मीद नहीं की जा सकती थी। ऐसा भी नहीं है कि उनमें क्षमता नहीं लेकिन आयु वर्ग भी खेल को प्रभावित करता है। इसी प्रकार के बिगड़ते सिस्टम को दुरुस्त करके सरकार को देश में खेल को हर सतह बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए एक अभियान पर मुहिम की तरह आगे बढ़ने की ज़रुरत है और समाज के सभी वर्गों को इसे प्राथमिकता के साथ चीन की तर्ज पर एक सिस्टम स्थापित करना होगा। चीन में माता-पिता और परिवार वाले बचपन से ही अपने बच्चों को खिलाड़ी बनाना चाहते हैं, जबकि भारत में खास तौर ग्रामीण क्षेत्रों में माँ-बाप बच्चों को पढ़ाने पर और बाद में नौकरी पर ध्यान देते हैं। इसी कारण भारत को खिलाड़ियों के परिवार की आर्थिक आधार को भी खेल नीतियों में शामिल करना होगा। भारत को भी खिलाड़ियों की ट्रेनिंग साइंटिफ़िक और मेडिकल साइंस के आधार पर तेज करनी होगी। 
 -(ओ.पी.पाल से बातचीत पर आधारित)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें