बुधवार, 4 अगस्त 2021

मंडे स्पेशल: करोड़ो रुपये बहाने के बावजूद जलभराव से जूझ रहा प्रदेश

ड्रनेज सिस्टम दुरुस्त न होने का खामियाजा भुगतने को मजबूर है आमजन

ओ.पी. पाल.रोहतक।

हरियाणा में तेजी के साथ बढ़ते शहरीकरण और अनियोजित विकास के साथ रखरखाव न होने का ही नतीजा है, कि आए दिन शहरों व कस्बों में ड्रेनेज सिस्टम जबाब दे रहे हैं, जिसके कारण थोड़ी बारिश होते ही जल भराव की समस्या से जूझना पड़ रहा है। हालांकि प्रदेश सरकार ने ड्रनेज सिस्टम को विकसित करने के लिए विजन-2030 में एक रोडमैप तैयार करने का दावा किया है। अभी तक मानसून से पहले प्रदेश में ड्रनेज सिस्टम को विभिन्न योजनाओं के जरिए आधुनिक प्रणाली के साथ दुरस्त करने पर करोड़ो की रकम तो बहाई जा रही है। इसके बावजूद जल निकासी के लिए ड्रनेज सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए चलाई जाने वाली योजनाओं के कार्यान्वयन और अभियान की असलियत मानसून का मौसम आते ही सामने आ जाती है। मसलन इस बार मानसून की पहली बारिश ने प्रदेश के जिलों व कस्बों में जिस तरह जलभराव से आमजन जूझते नजर आए, उसमें ड्रनेज सिस्टम पर सवाल खड़े होना स्वाभाविक ही है।

प्रदेश के शहर और कस्बों में बरसाती पानी की निकासी के लिए 833 ड्रेन हैं। इनमें हाइवे व रेलवे लाइन के किनारे 18 ड्रेनों का प्रबंधन का जिम्मा भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और रेलवे के पास है। हर साल बरसात से पहले तमा ड्रनेज प्रणाली को दुरस्त करने और उनके जीर्णोद्धार के लिए सरकार संबन्धित विभागों करोड़ो रुपये खर्च किया जाता है। लेकिन इस बार प्रदेश के तमाम जिलों और उनके कस्बों में जलभराव का जो आलम देखने को मिला, उससे अधिकांश ड्रनेज सिस्टम की बेहद खस्ताहाल और विभागों के दावों की पोल खुलकर सामने आ गई है। जबकि प्रदेश में इस बार भी मानसून से पहले विभिन्न जिलों में 143 अल्पावधि योजनाओं के 132 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया गया है। मसलन करोड़ो रुपये की रकम बहाने के बावजूद करीब सभी जिलों के शहरों व कस्बों में डिस्पोजल सेंटरों की कम क्षमता, जाम पड़े ड्रेनेज सिस्टम, नालों की अधूरी सफाई और पंप सेटों की अधूरी मरम्मत से ड्रेनेज सिस्टम जैसी सारी व्यवस्था ध्वस्त होती नजर आई। यह हालत तब है जब जब ड्रेनेज सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए सिंचाई एवं जल संसाधन, शहरी स्थानीय निकाय, लोक निर्माण विभाब और हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण ने संयुक्त अभियान भी चलाता है।

सरकार ने तैयार किया रोडमैप

राज्य सरकार ने शहरी आबादी में बढ़ोतरी और शहरों के विस्तार के कारण जलभराव की समस्या से निपटने के लिए विजन-2030 तैयार किया है, जिसमें ड्रेनेज सिस्टम को विकसित करने के लिए भी खाका खींचा गया है। ड्रनेज सिस्टम को दुरस्त करने के लिए तैयार रोडमैप के तहत शहरों के नियोजित विकास पर फोकस करते हुए मानसून पहले ही ड्रेनों की मरम्मत, इनकी सफाई और गाद निकालने की मुहिम चलाई जा रही है। सरकार ने प्रदेश में कैथल, कुरुक्षेत्र एवं रतिया समेत ऐसे 522 अस्थायी स्थल चिन्हित किये गये हैं, जहां बरसात में जलभराव होता है। ऐसे स्थानों से जल निकासी के लिए पर्याप्त प्रबंध के साथ रिचार्जिंग शाफ्ट के निर्माण की भी एक व्यापक योजना बनाई गई है।

पांच दशक पुराने सिस्टम ने बिगाड़ा हाल

दरअसल हरियाणा में पिछले पांच दशक से ज्यादा समय में शहरीकरण जिस तेजी से बढ़ रहा है तो उसमें बढ़ती आबादी की वजह से शहरों पर दबाव भी बढ़ा है। इसी शहरीकरण के दबाव के कारण अनियमित कालोनियों और अवैध निर्माण होते गये। इस विस्तारीकरण के हिसाब से बुनियादी सुविधाओं को विकसित नहीं किया जा सका। हरियाणा का ड्रनेज सिस्टम भी अभी तक संयुक्त पंजाब के समय का ही चल रहा है। प्रदेश में सरकार और संबन्धित विभाग जल निकासी को दुरस्त करने के लिए मानसून से पहले हर साल इसी पुराने ड्रेनेज सिस्टम पर करोड़ो की रकम खर्च करते आ रहे हैं, लेकिन बढ़ती आबादी और शहरों के विस्तार के समानांतर इस सिस्टम का आधुनिकीकरण या विस्तार नहीं किया गया। इसके कारण पुराने ड्रनेज सिस्टम पर बढ़ते बोझ का ही नजीता है कि बरसात आते ही शहर और कस्बे जलमग्न हो जाते हैं।

नालों की सफाई की खानापूर्ति

प्रदेश में ड्रनेज सिस्टम को दुरस्त करने के लिए योजनाओं के पूरा न होने के कारण केवल धन की बर्बादी होती है, जिसका खामियाजा बरसात के दिनों में जल भराव और बरसाती नालों के उबलने से आमजन को भुगतना पड़ रहा है। बरसाती नालों से कचरा निकालकर वहीं छोड़ने के कारण बरसात होते ही वह फिर नालों में चला जाता है, ऐसा आमजन खुलेआम विभाग को कोसने पर सफाई की खानापूर्ति करार देते हुए हमेशा सवाल खड़े करते आ रहे हैं। देखने में यह भी आया है कि कई बरसाती नालों पर लोगों के अवैध कब्जे भी जल निकासी को लेकर हो रही परेशानी का सबब बन रहे हैं। विडंबना यह भी है कि सरकार और विभाग अवैध कालोनियों को वैध घोषित करने की परंपरा को अमलीजामा पहनाती है तो ज्यादातर ड्रेनेज सिस्टम को वैध कालोनियों से जोड़ने से भी बारिश के दिनों में ड्रनेज सिस्टम बेबस हो जाते हैं।

मास्टर प्लान पर अमल नहीं

प्रदेश में ड्रनेज सिस्टम के हाल बेहाल होने के पीछे शहरों के अनियोजन विकास भी है, जहां मास्टर प्लान पर गंभीरता से अमल नहीं होता। मसलन जहां नई कालोनियां बसाई जा रही है, उसमें पानी के स्रोत और जल निकासी के बहाव की दिशा भी तय नहीं की जाती। यही कारण है कि ज्यादातर शहरों में निचले हिस्सों और तालाब के जलग्रहण क्षेत्र में निर्माण कर आबादी बसाई जा रही है, तो उन बस्तियों के पानी का निकास होना असंभव है। ऐसे में बरसात के दिनों में जल का बहाव सड़कों और रास्तों पर जलभराव के रूप में होना स्वाभाविक है। यदि मास्टर प्लान को अमल लाया जाए, तो निश्चित रूप से बारिश के पानी के लिए अलग से निकास प्रणाली (स्ट्रॉम ड्रेनेज) बनाया जा सकता है।

पहली बारिश ने खोली पोल

हरियाणा में एक भी जिला ऐसा नहीं रहा, जहां इस मानसूनी मौसम में हुई बारिश से शहरों व कस्बों की सड़के, गलियों ने जलभराव के कारण नदियां न बन गई हों। रोहतक में बरसात से कई सेक्टरों में जलभराव रहा, जहां जल निकासी व्यवस्था के लिए डिस्पोजल व लाइन न बिछाने और जल निकासी के लिए अस्थाई पंप सेट की व्यवस्था न होने से ड्रनेज सिस्टम दुरुस्त करने के काम की असलियत सामने आई। इसी प्रकार गुरुग्राम की जल निकासी में ड्रनेज सिस्टम जवाब देते नजर आए। साइबर सिटी गुरुग्राम की सिविक एजेंसी जीएमडीए और नगर निगम ने भी जल निकासी को दुरस्त रखने के लिए करीब 30 करोड़ रुपये खर्च किये। शहर के चारों जोन में सीवर की सफाई, ड्रेन के निर्माण, स्ट्रॉम वॉटर ड्रेन के निर्माण व सफाई की असलियत उस समय उजागर हुई, जब पिछले सप्ताह बारिश होने पर जलभराव से लोगों की जिंदगी हाल बेहाल होती नजर आई। प्रदेश के अन्य जिलों से भी इसी प्रकार की समस्या सामने आई। ऐसे हालातों में प्रदेश के ड्रनेज सिस्टम को लेकर चौतरफा उठाए जा रहे सवाल स्वाभाविक ही हैं।

26July-2021

 

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