मंगलवार, 29 जुलाई 2014

जजों की कमी के कारण बढ़ी लंबित मामलों की संख्या

न्यायिक सुधार के उपाय नहीं हुए कारगर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि रिक्त पदों पर जजों की नियुक्तियां न होने के कारण अदालतों में लंबित मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है। मसलन उच्चतम न्यायालय, उच्च न्यायालयों और जिला एवं अधीनस्थ न्यायालयों में अभी भी 4655 न्यायधीशों के पद रिक्त पड़े हुए हैं, जिसके कारण लंबित मामलों की सुनवाई में देरी हो रही है। यही कारण है कि सुप्रीम कोर्ट में लंबित 63843 मामलोें समेत उच्च न्यायालयों और निचली अदालतों में लंबित मामलों की संख्या करीब 3.14 करोड़ पहुंच गई है।
केंद्र की राजग सरकार ने जहां जजों की नियुक्यिों के लिए राष्टÑीय न्यायायिक नियुक्ति आयोग गठन करने की कवायद शुरू की है, वहीं पिछले सप्ताह ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी लंबित मामलों का अंबार लगने का कारण रिक्त पड़े जजों की नियुक्तियां न होना बताया और लंबित मामलों के लिए सीधे केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। विधि मंत्रालय के ताजा आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो देश में लंबित मामलों की संख्या बढ़ने के लोगों की जागरूकता और अधिकारों के लिए अदालत की शरण लेना भी एक बड़ा कारण है। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार लंबित मामलों की संख्या घटाने और अन्य प्रक्रिया में सुधार लाने के अनेक उपाय लागू करने का भी दावा करती रही, लेकिन कारगर साबित नहीं हुई। ऐसे में अब केंद्र की नई सरकार के लिए न्यायिक सुधार के लिए की जा रही पहल किसी चुनौती से कम नहीं होगी? सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी को भी विधि विशेषज्ञ लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ने की वजह मानते हैं। हालांकि पिछले दो सालों में सुप्रीम कोर्ट और निचली अदालतों में लंबित मामलों में मामूली कमी आई है, लेकिन उच्च न्यायालयों में इजाफा हुआ है। विधि मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक एक मई 2014 तक सुप्रीम कोर्ट में 63,843 मामले लंबित थे, जो वर्ष 2013 में 66,349 और वर्ष 2012 में 66,692 विवादों की सुनवाई बाकी थी। इसी प्रकार देशभर में 24 उच्च न्यायालयों में दिसंबर 2013 तक लंबित मामलों की संख्या 44 लाख 62 हजार 705 थी, जो वर्ष 2012 में 44,34,191 थी। हालांकि ताजा आंकड़ों में मार्च 13 में ही बनाए गये त्रिपुरा, मणिपुर और मेघालय के नए उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या भी इसमें शामिल है। सबसे ज्यादा करीब 10.44 लाख लंबित मामले इलाहाबाद हाई कोर्ट में निर्णय की बाट जो रहे हैं। जहां तक जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों का सवाल है उसमें वर्ष 2013 तक दो करोड़ 68 लाख 38 हजार 861 मामले सुनवाई के इंतजार में हैं। हालांकि पिछले साल वर्ष 2012 में लंबित मामलों में से 50 हजार से ज्यादा मामलों का निपटारा करने का भी दावा किया गया है। बहरहाल मौजूदा समय में विधि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार देशभर की अदालतों में लंबित मामलों की संख्या तीन करोड़ 13 लाख 65 हजार 409 हो गई है।
रिक्त पदों पर नियुक्तियों की दरकार
देशभर की अदालतों में स्वीकृत न्यायाधीशों के पदों पर नियुक्तियां भी सरकार के लिए एक चुनौती बना हुआ है, जिसके लिए केंद्र सरकार ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों के लिए अपनाई जा रही कॉलेजियम प्रणाली के बजाए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन करने की कवायद शुरू कर दी है। संसद के मौजूदा सत्र में उठे जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार कह चुकी है कि वह आयोग के गठन के लिए सभी राजनीतिक दलों और विशेषज्ञों की राय लेकर एक मसौदा तैयार किया जा रहा है। जहां तक न्यायालयों में न्यायाधीशों के रिक्त पदों का सवाल है उसमें सुप्रीम कोर्ट में 31 न्यायाधीशों के पद स्वीकृत हैं लेकिन 28 जज ही कार्यरत हैं, जहां तीन जजों के रिक्त पदों को भरना बाकी है। इसी प्रकार 24 उच्च न्यायालयों में स्वीकृत न्यायाधीशों की संख्या 906 है,लेकिन 636 न्यायाधीश ही हाई कोर्टों में कार्यरत है, जहां अभी 270 न्याधीशों की नियुक्ति होना शेष है। जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में 15039 जज कार्यरत हैं, जबकि 19421 पद स्वीकृत हैं। यानि निचली अदालतों में 4382 न्यायाधीशों की कमी है।
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय

स्वीकृत न्यायाधीश-68
कार्यरत न्यायाधीश-48
रिक्त पद 12
जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय

स्वीकृत जजों की संख्या-1345
कार्यरत जजों की संख्या-917
रिक्त पद-398
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
स्वीकृत न्यायाधीश-43
कार्यरत न्यायाधीश-32
रिक्तियां-11
जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय

स्वीकृत जजों की संख्या-1421
कार्यरत जजों की संख्या-1227
रिक्त पद-194
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
स्वीकृत न्यायाधीश-18
कार्यरत न्यायाधीश-13
रिक्तियां-05
जिला एवं अधीनस्थ न्यायालय
स्वीकृत जजों की संख्या-328
कार्यरत जजों की संख्या-285
रिक्त पद-43
29July-2014

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