विश्वस्तरीय प्रणालियों के लिए रेलवे के पास धन नहीं
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र मे नई राजग सरकार के कामकाज का आगाज एक बड़े रेल हादसे के साथ हुआ था। ऐसे में रेलवे सरंक्षा और यात्रियों की सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता में शामिल करते हुए रेलवे बजट में उपायों की गई घोषणाओं के बावजूद इस समस्या से निपटना मोदी सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। पिछली सरकारें भी रेलवे सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करने के बाद रेल यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सफल नहीं हो सकी हैं।
लोकसभा में मंगलवार को मोदी सरकार का पहला रेल बजट पेश करते हुए रेल मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने रेल संरक्षा को सर्वोच्च महत्व देते हुए 40 हजार करोड़ के खर्च का अनुमान लगाते हुए रेलपथ नवीकरण, बिना चौकीदार वाले समपारों को समाप्त करने और राज्यों की सरकार के साथ मिलकर निचले व ऊपरी सड़क पुलों के निर्माण की योजनाओं पर जोर दिया है। रेलवे सरंक्षा को मजबूत बनाने की दिशा में रेल बजट में भारतीय रेलों की पटरियों की टूटफूट का पता लगाने के लिए आधुनिक व्हीकल बोर्न अल्ट्रासोनिक फ़लों डिटेक्शन सिस्टम का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा है। वहीं चुनिंदा गाड़ियों के दरवाजों को मेट्रो ट्रेन की तर्ज पर प्रोद्योगिकी के इस्तेमाल की योजना शुरू करने का ऐलान किया। इसी प्रकार रेल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर भी रेल बजट में सरकार ने प्रतिबद्धता दर्शाई है, जिसके लिए गाड़ियों और रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा व्यवस्था को चाकचौबंद करने का प्रस्ताव किया है, जिसमें खासकर महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा गया है। हालांकि ऐसी योजनाओं की घोषणाए पूर्ववर्ती सरकार भी करती दिखी हैं, लेकिन देश में असमय होने वाले रेल हादसों को नियंत्रित नहीं किया जा सका है। विशेषज्ञों की माने तो विश्वस्तरीय सुरक्षा प्रणालियों को लागू करने के लिए रेलवे के पास पर्याप्त धनराशि नहीं है जिसकी पहले से आर्थिक सेहत खराब है।
कारगर साबित नहीं हुए उपाय
केंद्र की सरकारें और रेलवे बोर्ड ट्रेनों की टक्कर से होने वाली दुर्घटना को रोकने की दिशा में उच्च प्रभाव भार वहन करने वाले सक्षम क्रैशवर्दी संरचनात्मक डिजाइन का विकास करने के दावे करने में भी पीछे नहीं रहा है, वहीं पिछली सरकार ने सभी बिजली एवं डीजल चालित गाड़ियों में गाड़ी चालक की चौकसी एवं निगरानी करने एवं गाड़ी की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता नियंत्रक उपकरण (वीसीडी) का प्रावधान करने का भी दावा किया था, लेकिन सरकार के ये उपाय बेअसर साबित होते रहे हैं। वहीं रेलवे संरक्षा और सुरक्षा की दृष्टि से फील्ड परीक्षण पूरा करने के दावों के साथ भारतीय रेलवे पर स्वदेश निर्मित गाड़ी टक्कर रोधी प्रणाली (टीसीएएस) को शामिल करने की योजना बनाने की बात होती रही है ताकि रेलगाड़ी के पहुंचने से पूर्व सड़क उपयोगकतार्ओं को चेतावनी देने हेतु दृश्य-श्रव्य माध्यम से उन्नत सुरक्षा प्रणाली की व्यवस्था के दावे भी खोखले साबित हुए हैं। रेलवे ने राजधानी एक्सप्रेस गाड़ियों में प्रयोगात्मक रूप से लगाए गये कॉम्प्रिहेंसिव फायर और स्मोक डिटेक्शन सिस्टम को भी अजमाया, लेकिन एक्सप्रेस गाड़ियां ही ज्यादातर बड़े हादसे का शिकार हुई हैं। एक्सप्रेस रेलगाड़ियों बिजली यात्री डिब्बों में आग रोधी सामग्रियों का उपयोग करने, बिजली सर्किट के लिए मल्टी टियर सुरक्षा, वातानुकूलित डिब्बे, गार्ड-सह-लगेज ब्रेकवेन, पेंट्री कार और इंजनों में पोर्टेबल अग्निशामक का प्रावधान करने के प्रयोग भी सफल नहीं हो सके हैं। ऐसे में सवाल है कि रेलवे सुरक्षा और संरक्षा से जुड़े इन वादों को पूरा करने के लिए मोदी सरकार कितनी गंभीरता से तकनीकी उपायों को अमल में लाएगी? अभी तक जब देश में विश्वस्तरीय रेल संरक्षा और सुरक्षा की बात आती है तो सरकार आर्थिक तंगी का रोना भी रोने से पीछे नहीं रही हैं, इसलिए केंद्र में नई सरकार के रूप में सत्ता में आई नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए रेलवे संरक्षा और सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है।
चिंता का सबस रहे हादसे
रेल मंत्रालय के आंकड़ो पर ही गौर करें तो यूपीए के शासनकाल में वर्ष 2007 से 2012 के बीच करीब छह सालों के दौरान देश में ट्रेनों के पटरियों से उतरने एवं दुर्घटनाओं की 429 घटनाएं सामने आई हैं जिसमें 123 लोगों की मौत हुई और 851 लोग घायल हुए हैं। मसलन इस दौरान उत्तर रेलवे में ट्रेनों के पटरी से उतरने के 49 मामले, पूर्व मध्य रेलवे में 47 मामले, मध्य रेलवे में रेल हादसों के 35 मामले, पूर्व तटीय रेलवे में ट्रेनों के पटरी से उतरने के 35 मामले, उत्तर सीमांत रेलवे में रेल हादसों के 33 मामले सामने आए हैं। यानि औसतन हर छठे दिन एक ट्रेन के पटरी से उतरने या दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं सामने आई हैं।
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र मे नई राजग सरकार के कामकाज का आगाज एक बड़े रेल हादसे के साथ हुआ था। ऐसे में रेलवे सरंक्षा और यात्रियों की सुरक्षा को अपनी प्राथमिकता में शामिल करते हुए रेलवे बजट में उपायों की गई घोषणाओं के बावजूद इस समस्या से निपटना मोदी सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा। पिछली सरकारें भी रेलवे सुरक्षा को लेकर बड़े-बड़े दावे करने के बाद रेल यात्रियों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने में सफल नहीं हो सकी हैं।
लोकसभा में मंगलवार को मोदी सरकार का पहला रेल बजट पेश करते हुए रेल मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने रेल संरक्षा को सर्वोच्च महत्व देते हुए 40 हजार करोड़ के खर्च का अनुमान लगाते हुए रेलपथ नवीकरण, बिना चौकीदार वाले समपारों को समाप्त करने और राज्यों की सरकार के साथ मिलकर निचले व ऊपरी सड़क पुलों के निर्माण की योजनाओं पर जोर दिया है। रेलवे सरंक्षा को मजबूत बनाने की दिशा में रेल बजट में भारतीय रेलों की पटरियों की टूटफूट का पता लगाने के लिए आधुनिक व्हीकल बोर्न अल्ट्रासोनिक फ़लों डिटेक्शन सिस्टम का इस्तेमाल करने का प्रस्ताव रखा है। वहीं चुनिंदा गाड़ियों के दरवाजों को मेट्रो ट्रेन की तर्ज पर प्रोद्योगिकी के इस्तेमाल की योजना शुरू करने का ऐलान किया। इसी प्रकार रेल यात्रियों की सुरक्षा को लेकर भी रेल बजट में सरकार ने प्रतिबद्धता दर्शाई है, जिसके लिए गाड़ियों और रेलवे स्टेशनों पर सुरक्षा व्यवस्था को चाकचौबंद करने का प्रस्ताव किया है, जिसमें खासकर महिलाओं की सुरक्षा को सर्वोपरि रखा गया है। हालांकि ऐसी योजनाओं की घोषणाए पूर्ववर्ती सरकार भी करती दिखी हैं, लेकिन देश में असमय होने वाले रेल हादसों को नियंत्रित नहीं किया जा सका है। विशेषज्ञों की माने तो विश्वस्तरीय सुरक्षा प्रणालियों को लागू करने के लिए रेलवे के पास पर्याप्त धनराशि नहीं है जिसकी पहले से आर्थिक सेहत खराब है।
कारगर साबित नहीं हुए उपाय
केंद्र की सरकारें और रेलवे बोर्ड ट्रेनों की टक्कर से होने वाली दुर्घटना को रोकने की दिशा में उच्च प्रभाव भार वहन करने वाले सक्षम क्रैशवर्दी संरचनात्मक डिजाइन का विकास करने के दावे करने में भी पीछे नहीं रहा है, वहीं पिछली सरकार ने सभी बिजली एवं डीजल चालित गाड़ियों में गाड़ी चालक की चौकसी एवं निगरानी करने एवं गाड़ी की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए सतर्कता नियंत्रक उपकरण (वीसीडी) का प्रावधान करने का भी दावा किया था, लेकिन सरकार के ये उपाय बेअसर साबित होते रहे हैं। वहीं रेलवे संरक्षा और सुरक्षा की दृष्टि से फील्ड परीक्षण पूरा करने के दावों के साथ भारतीय रेलवे पर स्वदेश निर्मित गाड़ी टक्कर रोधी प्रणाली (टीसीएएस) को शामिल करने की योजना बनाने की बात होती रही है ताकि रेलगाड़ी के पहुंचने से पूर्व सड़क उपयोगकतार्ओं को चेतावनी देने हेतु दृश्य-श्रव्य माध्यम से उन्नत सुरक्षा प्रणाली की व्यवस्था के दावे भी खोखले साबित हुए हैं। रेलवे ने राजधानी एक्सप्रेस गाड़ियों में प्रयोगात्मक रूप से लगाए गये कॉम्प्रिहेंसिव फायर और स्मोक डिटेक्शन सिस्टम को भी अजमाया, लेकिन एक्सप्रेस गाड़ियां ही ज्यादातर बड़े हादसे का शिकार हुई हैं। एक्सप्रेस रेलगाड़ियों बिजली यात्री डिब्बों में आग रोधी सामग्रियों का उपयोग करने, बिजली सर्किट के लिए मल्टी टियर सुरक्षा, वातानुकूलित डिब्बे, गार्ड-सह-लगेज ब्रेकवेन, पेंट्री कार और इंजनों में पोर्टेबल अग्निशामक का प्रावधान करने के प्रयोग भी सफल नहीं हो सके हैं। ऐसे में सवाल है कि रेलवे सुरक्षा और संरक्षा से जुड़े इन वादों को पूरा करने के लिए मोदी सरकार कितनी गंभीरता से तकनीकी उपायों को अमल में लाएगी? अभी तक जब देश में विश्वस्तरीय रेल संरक्षा और सुरक्षा की बात आती है तो सरकार आर्थिक तंगी का रोना भी रोने से पीछे नहीं रही हैं, इसलिए केंद्र में नई सरकार के रूप में सत्ता में आई नरेन्द्र मोदी सरकार के लिए रेलवे संरक्षा और सुरक्षा सबसे बड़ी चुनौती है।
चिंता का सबस रहे हादसे
रेल मंत्रालय के आंकड़ो पर ही गौर करें तो यूपीए के शासनकाल में वर्ष 2007 से 2012 के बीच करीब छह सालों के दौरान देश में ट्रेनों के पटरियों से उतरने एवं दुर्घटनाओं की 429 घटनाएं सामने आई हैं जिसमें 123 लोगों की मौत हुई और 851 लोग घायल हुए हैं। मसलन इस दौरान उत्तर रेलवे में ट्रेनों के पटरी से उतरने के 49 मामले, पूर्व मध्य रेलवे में 47 मामले, मध्य रेलवे में रेल हादसों के 35 मामले, पूर्व तटीय रेलवे में ट्रेनों के पटरी से उतरने के 35 मामले, उत्तर सीमांत रेलवे में रेल हादसों के 33 मामले सामने आए हैं। यानि औसतन हर छठे दिन एक ट्रेन के पटरी से उतरने या दुर्घटनाग्रस्त होने की घटनाएं सामने आई हैं।
09July-2014
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