रविवार, 20 जुलाई 2014

राग दरबार:- भौतिक ताप में उबलते वैदिक

मास्टरमाइंड हाफिज सईद
पाकिस्तान की यात्रा पर गये एक शिष्टमंडल में शामिल भारतीय पत्रकार की मुलाकात मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद से होने की तस्वीर सोशल साइट पर वायरल होते ही देश की राजनीति में ऐसा भूचाल आया कि बेचारे वैदिक भौतिक ताप में उबलते नजर आने लगे हैं। ऐसे में एक चैनल पर पाकिस्तानी सामाजिक पृष्ठभूमि पर आधारित धारावाहिक बहुत से भारतीयों को भी खूब पसंद आ रहा है, जिसमें हिंदुस्तान और पाकिस्तान दो अलग-अलग मुल्क होते हुए भी एक ही सामाजिक तानाबाने के दो पहलू बने हुए हैं, जो यह संदेश देती है कि इन दोनों मुल्कों को लेकर चल रही कहानी न तो बोझिल होती है और नहीं यथार्थ से भटकती है। लेकिन इस धारावाहिक के मुरीद यदि इस पाकिस्तानी धारावाहिक की तारीफ करेंगे तो वैदिक की तरह मुसीबत के सबब बन जाएंगे। हकीकत तो यह है कि वैदिक की हिम्मत को दाद देने के बजाए कांग्रेस संस्कृति के लोग मस्त मलंग मरहूम फिरोज खान साहब को शायद भूल चुके हैं, जो न तो अंतर्राष्ट्रीय राजनीतिक विश्लेषक थे और न ही राष्ट्रवाद के झंडाबरदार, लेकिन उन्होंने खुद को सच्चा और पक्का हिंदुस्तानी साबित किया था। जिन्होंने पाकिस्तान को उसी की सरजमीं पर जाकर ललकारा था’ शरबत-ए-दंगई का सेवन कर हिंदुस्तान परस्ती का उनमें ऐसा जज्बा भड़का था, कि उन्होने अंजाम की परवाह किये बिना पाकिस्तान को उसकी असलियत का आइना दिखाया था। शायद उसी तर्ज पर वैदिक भी एक सच्चे हिंदुस्तानी फिरोज खान को खिराज-ए-अकीदत पेश करना चाहते हों, लेकिन इसके उलट उन्हें वापस आकर भौतिक ताप में उबलने के लिए मजबूर कर दिया। गांधी जी की अहिंसा आत्मरक्षा को छोड़ने को नहीं कहती और न ही यह कायरता पर आधारित होती। कुछ संस्थाओं का मानना है कि अपनी जान की परवाह किये बिना वैदिक की हाफिज सईद से मुलाकात के भाव को भी समझ लेना चाहिए, क्योंकि यासिन मलिक और वैदिक की पृष्ठभूमि में धरती और आसमान का अंतर है। मीडिया जगत का एक तबका भी यह मान रहा है कि पत्रकारों ने इससे पहले भी चंदन तस्कर वीरप्पन क अलावा नक्सलियों और न जाने कितने खूंखार व्यक्तियों के साक्षात्कार किये हैं तब तो किसी ने राजनीति को गर्म नहीं किया, अब क्यों वैदिक जैसे व्यक्तित्व को जाबांज का तमका देने के बजाए उबालने का प्रयास किया जा रहा है।
सियासत की डोर
आजकल दिल्ली में सरकार बनाने के मुद्दे पर राजनीति पूरी तरह से गरमाई हुई है और इस सियासत की डोर को मजबूत करने के लिए सभी राजनीतिक दल हरकत में हैं। भाजपा की ओर से जब सरकार बनाने की बात चलती है तो आम आदमी पार्टी कुलाचें मारने शुरू कर देती है और भाजपा पर उनके विधायकों की खरीद-फरोख्त करने के आरोप लगते हैं लेकिन वे साबित नहीं होते। वैसे भी आप के आरोपों पर यकीन करना तो अब जनता ने भी छोड़ दिया है, क्योंकि अब से पहले भी आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल के खोखले साबित हुए आरोपों ने जनता को पछताने पर ही मजबूर नहीं किया,बल्कि केजरीवाल खुद इन झूठे आरोपों का दंश न्यायपालिका में झेलने को मजबूर हैं। हां इतना जरूर है कि आप के केजरीवाल को यह डर जरूर सता रहा है कि कहीं उनके विधायक टूटकर भाजपा का हिस्सा न बन जाएं और राजनीति के लिए संजोए गये सबने चकनाचूर न हो जाएं। इसलिए हाल ही में आप ना-नुकर के बावजूद कांग्रेस की शरण में जाकर अपने समर्थन से कांग्रेस की सरकार बनवाने की रणनीति की खबर भी राजनीति के गलियारों में सामने आ रही है, जिनका मकसद है कि दिल्ली की सत्ता भाजपा के पास न आ सके, इसलिए सियासत की डोर मजबूत करने की सरगर्मियां दिल्ली में तेज होने लगी हैं।--ओ.पी. पाल
नेताजी के लक्षण
भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव इन दिनों काफी उदास हैं। उनको ऐसा लग रहा है कि अमित शाह की नई टीम में शायद उन्हें जगह न मिले। पर करें तो क्या करें। संगठन में तो कोई हमदर्द मिल नही रहा। जिससे पीड़ा जाहिर कर सके। सो, उन्होंने दूसरे तरीके से अपनी आशंका का पता लगाने की ठानी। अपने कुछ शागिर्दो को उन्होंने टोह लेने का जिम्मा थमा दिया कि नई टीम में उनकी क्या भूमिका होगी। शागिर्द तो ठहरे शागिर्द जुट गए काम में। एक जनाब जो इन नेताजी के नाम पर फलते फूलते आ रहे हैं। उन्होंने कुछ पत्रकारों से मेल मिलाप बढ़ाते हुए इस बारे में पता लगाने की कोशिश तेज कर दी। उनको घर पर नेताजी से मुलाकात का न्योता बांटने लगे। पत्रकारों को भी माजरा समझ में आ गया। सो, जब नेताजी के शागिर्द कुछ ज्यादा ही जोर देने लगे तो एक पत्रकार ने सलाह दी कि, नेताजी से कहिए कि पार्टी मुख्यालय में ही मिले घर पर नही। छुटते ही शागिर्द ने कहा कि, नही घर पर ही नेताजी मिलना चाहते हैं। फिर क्या.. पत्रकार ने पलट के जवाब दिया कि नेताजी के लक्षण तो घर बैठने के ही दिख रहे हैं।--अजीत पाठक
20July-2014
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