बुधवार, 16 जुलाई 2014

ट्राई संशोधन बिल पर ऐसे पस्त हुआ विपक्ष!

ट्राई संशोधन बिल पर नहीं चला कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्रा की नियुक्ति की बाधाओं को दूर करने वाले ट्राई संशोधन बिल में सरकार की रणनीति के सामने ऐसी पस्त हुई कि उसके नेतृत्व वाले यूपीए में बिखराव देखने को मिला और उसके लिए खेवनहार बनते रहे अन्य विपक्षी दल भी सरकार के साथ खड़े नजर आए। ऐसे में उच्च सदन में बहुमत वाला यूपीए अल्पमत में नजर आया और कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र विफल होने की स्थिति में असानी से ट्राई बिल पास हो गया।
दरअसल लोकसभा में विपक्ष के नेता को लेकर सरकार से रार की स्थिति में आई कांग्रेस ने धमकी दी थी कि यदि उसकी पार्टी को विपक्ष का पद नहीं दिया गया तो वह राज्यसभा में किसी भी बिल को पास नहीं होने देगी। इसके अलावा कांग्रेस सरकार को इस मुद्दे पर अदालत की शरण में जाने तक भी चेतावनी दे चुकी है, लेकिन पहले ही मौके यानि ट्राई संशोधन बिल के विरोध पर ही कांग्रेस बैकपुट पर नजर आई। उच्च सदन में कांग्रेसनीत यूपीए बहुमत में है, लेकिन जिस तरह से सरकार के μलोर मैनेजमेंट के सामने समूचा विपक्ष बिखरता नजर आया उसमें यूपीए के सहयोगी दल और उसके खेवनहार रहे अन्य दल भी ट्राई संशोधन बिल पर सरकार के साथ खड़े नजर आए। उच्च सदन में अल्पमत में मानी जा रही राजग सरकार की सुदर्शन चक्र के सामने ट्राई संशोधन बिल पर अलग-थलग पड़ी कांग्रेस के साथ सुर में सुर मिलाकर इस बिल के विरोध में लोकसभा से वाकआउट करने वाले राजद, जदयू तथा माकपा सदस्यों को उच्च सदन में रणनीति ही बदलनी पड़ी यानि राज्यसभा में उन्हें वाकआउट करने तक का मौका नहीं मिला और सरकार ट्राई संशोधन बिल को पारित कराने में कामयाब हो गई। मसलन लोकसभा में इस बिल के आने से पूर्व केंद्र सरकार की नीतियों खासकर नृपेन्द्र मिश्रा की नियुक्ति के विरोध में विपक्ष को मजबूत करने का दावा करने वाली तृणमूल कांग्रेस भी ऐनमौके पर कांग्रेस को मात देते हुए समर्थन में आ खड़ी हुई। यहां तक कि इस मुद्दे पर राजग सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा की धुरविरोधी दल बसपा और सपा भी ट्राई बिल के समर्थन में सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े नजर आए। यही कारण था कि उच्च सदन में भी सरकार इस बिल को पारित कराने में सफल रही, भले ही सरकार का समर्थन करने वाले विपक्षी दलों ने कोई तर्क दिये हो, लेकिन जिस काम को कांग्रेसनीत यूपीए सरकार अपने कार्यकाल में कर चुकी हो तो ऐसे में कांग्रेस के विरोध के रूख पर ज्यादातर विपक्षी दलों ने असहमति जताते हुए इस मुद्दे पर सरकार का साथ दिया।
रंग लाया वेंकैया का फ्लोर मैनेजमेंट
सूत्रों की माने तो इस मुद्दे पर आमसहमति बनाने के लिए संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू की भूमिका अहम रही है, जिन्होंने पहले लोकसभा में ट्राई संशोधन बिल पर विपक्ष के तिलिस्म को तोड़ा, जहां उसे इस रणनीति को अपनाने की जरूरत भी नहीं थी, लेकिन शायद निचले सदन में उच्च सदन में बिल को पास कराने की नींव रखते हुए सरकार की ओर से नायडू ने इस रणनीति को अंजाम दिया और आखिर उच्च सदन में यूपीए का बहुमत होने के बावजूद सरकार अपने अंजाम तक पहुंचने में सफल रही।
मणिशंकर की कई बार फिसली जुबान
उच्च सदन में विपक्ष की ओर से ट्राई संशोधन बिल पर चर्चा की शुरूआत जिस सदस्य को सौंपी गई, उनकी जुबान बार-बार फिसलती रही और पीठ को कई बार असंसदीय शब्दों को कार्यवाही से सदन में हटवाना पड़ा। कांग्रेस में बड़बोले नेता के रूप से पहचाने जाते रहे मणिशंकर अय्यर ट्राई बिल पर चर्चा में हिस्सा लेते हुए एक मात्र ऐसे सदस्य रहे जिन्होंने प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव नृपेन्द्र मिश्र पर व्यक्तिगत आरोप मंढ़े और उन्हें अयोग्य करार देने का प्रयास किया। जबकि कांग्रेस के ही डा. टी. सुब्बाराव रेड्डी व शांताराम नाईक समेत समूचे विपक्षी नेताओं ने इस अधिकारी की योग्यता और क्षमताओं को स्वीकार किया। विपक्षी दलों का तर्क मात्र इतना था कि सरकार के एक व्यक्ति के लिए अध्यादेश लाने का तौर-तरीका सही और नियमों में नहीं था। जहां तक मणिशंकर अय्यर की जुबान फिसलने का सवाल हैं उन्होंने एक नहीं दो बार प्रधानमंत्री का नाम लिए बिना उन्हें न्यू ब्याय कहा, वहीं इस मुद्दे पर सरकार को अदालत मे कठघरे में खड़ा करने की भी बात कहते हुए यहां तक आरोप लगाए कि सरकार द्वारा यह अध्यादेश लाकर संविधान के प्रावधानों और उच्चतम न्यायालय के दिशानिदेर्शों का उल्लंघन भी किया है। उनके भाषण में कई बार इस तरह के शब्दों को पीठासीन अधिकारी द्वारा डिलीट कराने के लिए कार्यवाही भी करनी पड़ी।
16July-2014

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