रविवार, 13 जुलाई 2014

राग दरबार- ‘कुंवारों’ की खुशी पर राजनीति

--ओपी पाल
‘कुंवारों’ की खुशी पर राजनीति एक प्रचलित कहावत ‘गरीब की लुगाई सारे गांव की सलहज’ यूं ही नहीं बनी है, इसमें दौलत से सब कुछ खरीद लेने की घटिया सोच अक्सर उजागर होती रही है। हाल ही में बात हरियाणा में लिंगानुपात के कारण कुंवारे लड़कों को खुशी का इजहार कराने के लिए एक नेताजी ने उनकी बिहार की बालाओं से शादी कराने का फार्मूला पेश किया तो इस पर राजनीति ही गरमा गई। इस मामले में दौलतमंदों की सोच किसी से काई छुपी हुई नहीं है, जिसका नतीजा तो है कि वैश्विक स्तर पर हसीनाओं की तलाश में अरब के दौलतमंद शेखों का भारत आना और अपने मुल्क के रईशजादों का इसी मकसद से नेपाल जाने के पीछे भी तो यही मकसद रहा है। यह दुर्भाग्य या अफसोस ही है कि इस अनैतिक खरीद-फरोख्त को बड़ी चालाकी से शादी का नाम देकर सियासी हथियार बनाने की कवायद सामने आई। हालांकि इन नेताजी ने राजनीति गरमाने के बाद अपने बचाव करने के प्रयास में सफाई देकर कहा कि उनका आशय खरीद-फरोख्त से नहीं, बल्कि विधिवत शादी की बात करके देश के दो राज्यों को संस्कारी तरीके से मिलाने की बात हो रही है। खैर तरीका कुछ भी रहा हो लेकिन एक बात साफ है कि नेता जी का मकसद शादी का लालच देकर वोट बैंक की राजनीति का हवा देना तो था ही। राजनीति गलियारों में इस मसले पर बवाल मचने पर चर्चा तो यही हो रही है कि अगर नेताजी को कुंवारों को खुशी ही देनी है तो हरियाणा में लिंगानुपात के बिगड़ते कारणों यानि कन्या भ्रूण हत्या की कुप्रथा को खत्म करने के लिए जागरूक अभियान क्यों नहीं चला देना चाहिए। यह हकीकत है कि हरियाणा लिंगानुपात में देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे फिसड्डी है और ऐसी बुराई को सामाजिक जागरूकता से ही दूर करने की राजनीति करने की जरूरत होनी चाहिए।
 मोदी का यू-टर्न
न रेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद यूं पीएमओ से कई सकरुलर निकले, मगर एक सकरुलर ने नौकरशाही और राजनीतिज्ञ, खासकर केंद्रीय मंत्रियों के बीच खासी हलचल मचा दी। डीओपीटी से जारी इस सकरुलर में सभी मंत्रियों को ताकीद की गई थी कि ऐसा कोई स्टाफ मंत्री सचिवालय में नहीं रखें जिन्होंने यूपीए सरकार में किसी भी स्तर पर काम किया हो, ऑफिसियल या अन-ऑफिसियल। अब इस सकरुलर का सीधा मतलब था मंत्री के सचिव, ओएसडी से लेकर सचिवालय का बाबू तक सभी फ्रेश अधिकारी होंगे। सकरुलर संसद के बजट सत्र से पहले जारी हुआ। सभी फ्रेश अधिकारी आते तो संसद का प्रश्न भी नहीं बन पाता, लिहाजा बजट सत्र की दुहाई देते हुए मंत्रियों ने पहले मामला रफादफा किया। अब तो मंत्रियों ने सचिव, ओएसडी सहित सभी पुराने कर्मचारियों को रखना भी शुरू कर दिया। रेलमंत्री सदानंद गौड़ा के एपीएस, मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी की पीएस, रसायन एवं उर्वरक मंत्री अनंत कुमार के एपीएस सहित दर्जनभर से ज्यादा मंत्रियों के स्टाफ कांग्रेस जमाने के वही घुटे हुए अधिकारी हैं, पर डीओपीटी मौन है। माना जा रहा है कि मंत्रियों के दबाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने नियम में मौन ढिलाई दे दी है। इस ढिलाई से भविष्य के लिए कई संकेत गए हैं। हो सकता है कि आने वाले दिनों में कई मंत्री अपने रिश्तेदारों को भी चुपके से पीए या ओएडी बना लें और फिर नरेंद्र मोदी मौन दिखे। अब देखिए, एक नियम टूटा है तो दूसरे नियमों के टूटने का आधार तो बन ही गया है।
13July-2014

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