मंगलवार, 27 जून 2023

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति को नई पहचान देते रागनी गायक रमेश कलावडिया

समाज को जोड़ने में लोक संस्कृति की अहम भूमिका 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: रमेश कलावडिया 
जन्मतिथि: 07 मार्च 1961 
जन्म स्थान: गांव खरावड़ जिला रोहतक (हरियाणा) 
शिक्षा: दसवीं 
संप्रत्ति: हरियाणवी लोक कलाकार(रागनी) 
संपर्क: म.न. 112, सेक्टर-2, बल्लभगढ़(फरीदाबाद), मोबा. 9810711664 
  BY-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला, संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, रीति रिवाज और भाषा की समाज को जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी विचारधारा की अलख जगाने में जुटे प्रसिद्ध लोक कलाकार रमेश कलावडिया ने अपने जीवन को समाज के लिए समर्पित किया हुआ है। पं. लखमीचंद और मेहर सिंह जैसे लोक कलाकारों को आदर्श मानकर उन्होंने उनकी रचनाओं को नया आयाम देने के साथ ही सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों पर अपनी रचनाओं का लेखन करके खासकर आज की नई पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरणा देने का भी प्रयास किया है। देश के अलावा उन्होंने पिछले दिनों ही आस्ट्रेलिया में अपनी रागनी शैली से भारतवंशियों आकर्षित किया है। हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में रागनी गायक रमेश कलावडिया ने अपने जीवन के उतार चढ़ाव से लेकर लोक कलाकार तक के सफर को लेकर कई ऐसे पहलुओं का भी जिक्र किया, जिसमें उनकी सर्वधर्म की विचारधारा से समाज को एक सकारात्मक संदेश जाता है। 
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रियाणा के रागनी कलाकार रमेश कलावडिया का जन्म 07 मार्च 1961 को रोहतक जिले के निकट खरावड़ गांव के सरदारसिंह मलिक और कलमो के यहां हुआ। उनका परिवार आर्यसमाज से जुडा हुआ है, जहां किसी प्रकार का लोक संस्कृति या साहित्यिक माहौल आज तक भी नहीं है। इसके बावजूद इस परिवार से निकले रमेश कलावडिया हरियाणवी लोक संस्कृति और रागनी की परंपरा को आगे बढ़ाने में जुटे हुए हैं। बचपन से ही उनके परिवार वाले रमेश के रागनी प्रेम के विरोध में खड़े रहे। इस कारण रमेश अपने घर कम और पडोसी के घर ज्यादा रहे। कलावडिया ने बताया कि गांव में लड़को व लड़कियों के अलग अलग स्कूलों के बीच की दीवार में एक दरवाजा था। जब स्कूल में प्रार्थना होती थी, तो शिक्षक दो लड़कियों के साथ उसे भी खड़ा कर देते थे और बाद में तो वह अकेले ही प्रार्थना कराने लगे। शनिवार के दिन स्कूल में बाल सभा के सांस्कृति कार्यक्रम में उसे रागनी सुनाने के लिए खड़ा करते थे, तो इस शैली को बल मिला और वह स्कूल की टीम के साथ प्रतियोगिता में भी हिस्सा लेकर अपनी आवाज बुलंद करने लगे। उन्होंने बताया कि वह स्कूल जाने में कम और नहर व नालों में नाग पकड़ने में ज्यादा ध्यान देते थे। किसी प्रकार से दसवीं की, उन्हें हॉकी खेलने का भी शौंक था। स्कूली समय से ही वह रागनी गाने के लिए दूसरे गांवों में भी जाने लगे, जिसका परिवार वाले कड़ा विरोध करते रहे। उन्होंने बेबाक कहा कि वह शराब पीने के इतने आदि हो गये थे, कि नशे की हालत में ही मार्च 1990 में वह भयानक सड़क दुर्घना का शिकार हुए और एक साल तक इलाज चला, लेकिन ठीक होते ही उन्होंने लगातार दस साल तक खूब शराब पी। 2001 में उन्होंने शराबअ व बीडी पीना छोड़ दिया, जिसमें एचटी के वीरेन्द्र भारद्वाज का योगदान रहा। रमेश कलवाडिया ने बताया कि रागनी की वजह से ही उसे नौकरी भी मिलती रही। जब सोनीपत शुगर मिल में रागनी कंपीटशन में वह प्रथम आया तो एमपी जैन ने उन्हें शुगर मिल में कलर्क की नौकरी दी, जिसे बाद में छोड़ दिया तो फिर विद्युत विभाग हिसार में नौकरी लग गई। कुछ साल बाद उसे छोड़ने के बाद उनकी नजफगढ़ अस्पताल में नौकरी लग गई। वह भी उन्हें रास नहीं आई। उसके बाद उन्हें दिल्ली आयकर विभाग और उसके बाद डीडीए तथा बाद में आबकारी विभाग में नौकरी मिली, जहां से वह 31 मार्च 2021 को आबकारी निरीक्षक के पद से सेवानिवृत्त हुए। बचपन में वह पाकिस्तान भी गये, जहां खासकर लाहौर में हरियाणवी संस्कृति में रागनी शैली को पसंद किया जाता है। रागनी गायकी के रुप में उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में अपनी कला के प्रदर्शन पर अनेक सम्मान व पुरस्कार हासिल किये हैं। 
पं. लखमी चंद की रागनी से मिली राह 
सुप्रसिद्ध रागनी गायक रमेश कलावडिया ने बताया कि रागनी कंपीटशनों में वह पं. लखमीचंद की रागनियां गाते थे, यहीं नहीं वह लखमीचंद के पुत्र पं. तुलाराम के शिष्य बन गये और रागनी गायक को अपना व्यवसाय बनाया। कार्यक्रमों में श्रोता उनकी रागनी पसंद करने लगे और पैसे भी मिलने लगे। उन्होंने खुद भी रागनी लिखना शुरू कर दिया और रमेश कलावडिया चैनल तक बना लिया। एक रागनी गायक के रुप में उन्होंने दिल्ली, यूपी, राजस्थान और हरियाणा जैसे कई प्रदेशों में अपनी लोककाल का प्रदर्शन किया। रमेश कलावडिया गत अप्रैल में आस्ट्रेलिया में हरियाणवी के यूनाइटेड हरियाणवी संगठन के बुलावे पर मेलबर्न गये, जहां उनके नेतृत्व में रागिनी की पूरी टीम ने वाद यंत्रों के साथ हरियाणा के पारंपरिक लोक संगीत रागनी शैली में अपनी कला के रंग बिखेरकर उनके दिलों में जगह बनाई। उन्होंने बताया कि आस्ट्रेलिया में बसे इन लोगों में हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के लोगों ने हरियाणवी लोक संस्कृति को बेहद पसंद किया। 
लोक संस्कृति को प्रोत्साहन दे सरकार 
आज के दौर में हरियाणवी लोक संस्कृति एवं कला के बिगड़ते ताने बाने को लेकर रमेश कलावडिया का कहना है कि समाजिक विकास में लोक संस्कृति का अहम योगदान है, लेकिन आज की युवा पीढ़ी इससे दूर होती जा रही है। सरकार को चाहिए सांग, भजन और रागनी जैसी लोक संस्कृति को प्रोत्साहन देने के लिए स्कूलों में व्यवस्था कराए। वहीं गांवों में इसके लिए सरपंचों को जिम्मेदारी सौंपी जाए, ताकि गांव गांव में विलुप्त होती जा रही लोक संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जीवित रखा जा सके। वहीं लोक कलाकारों को भी पाश्चत्य संस्कृति को त्यागकर अच्छे लोक गीत लिखने और गाने की जरुरत है, तभी उन्हें लोक कलाकार के रुप में लोकप्रियता हासिल हो सकती है। वहीं अपनी संस्कृति से जुड़े रहकर समाज को नया आयाम मिल सकता है। 
आस्ट्रेलिया में बजा डंका 
लोक कलाकार रमेश कलावडिया गत अप्रैल में आस्ट्रेलिया में हरियाणवी के यूनाइटेड हरियाणवी संगठन के बुलावे पर मेलबर्न गये, जहां उनके नेतृत्व में रागिनी की पूरी टीम ने वाद यंत्रों के साथ हरियाणा के पारंपरिक लोक संगीत रागनी शैली में अपनी कला के रंग बिखेरकर उनके दिलों में जगह बनाई। उन्होंने बताया कि आस्ट्रेलिया में बसे इन लोगों में हरियाणा, पंजाब व राजस्थान के लोगों ने हरियाणवी लोक संस्कृति को बेहद पसंद किया। 
26June-2023

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