सोमवार, 19 जून 2023

साक्षात्कार: समाज और संस्कृ़ति में साहित्य की अहम भूमिका: कोसलिया

अहीरवाटी बोली में रचना करके साहित्य जगत में हुए लोकप्रिय 
 व्यक्तिगत परिचय 
नाम: समशेर कोसलिया ‘नरेश’ 
जन्मतिथि: 04 सितंबर 1969 
जन्म स्थान: सैनिक छावनी मेरठ (उत्तर प्रदेश) 
शिक्षा: दसवीं व इलैक्ट्रोनिक्स में डिप्लोमा 
सम्प्रत्ति:- कृषि व पशुपालन, स्वतंत्रत लेखन तथा समाज सेवा 
संपर्क: गांव व डाकघर स्याणा, वाया कनीना, जनपद महेन्द्रगढ़(हरियाणा) मोबा. 9466666118
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BY- ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला और संस्कृति के प्रति समाज को नई दिशा देने वाले लेखकों में अहीरवाल क्षेत्र के लेखक एवं साहित्यकार समशेर कोसलिया ने साहित्य क्षेत्र में कुछ अलग विधाओं को नया आयाम दिया हैं। हिंदी व हरियाणवी भाषा में अपनी रचनाओं को विस्तार देने के अलावा उन्होंने लोक संस्कृति को अभिव्यक्त करने वाली एक पुस्तक ‘दरद’ की रचना अहीरवाटी बोली में करके साहित्य जगत को आश्चर्यचकित भी किया, क्योंकि इससे पहले किसी भी लेखक ने अहीरवाटी बोली को अपनी रचना का हिस्सा नहीं बनाया। वे शायद हरियाणा के ऐस इकलौते साहित्यकार भी है, जिनके पास गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्डस की सदस्यता हैं। हरियाणा के लोक आशु महाकवि पं. सुखीराम गुणी के व्यक्तित्व और कृतित्व को पहचान देकर प्रेरणा पुंज बनाने में जुटे साहित्यकार समशेर कोसलिया ‘नरेश’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने बचपन से लेकर साहित्यिक सफर में आए ऐसे पहलुओं को उजागर किया, जिसकी वजह से वे साहित्य जगत में सुर्खियों में बने हुए हैं। 
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रियाणा के रेवाड़ी जिले में सैनिको की वीर भूमि के नाम से पहचाने जाने वाले कोसली गांव के वंशज के रुप में समशेर कोसलिया का जन्म 04 सितंबर 1969 को मेरठ छावनी (उत्तर प्रदेश) में हुआ। मूलरुप से महेन्द्रगढ़ जिले के स्याणा गांव निवासी समशेर के पिता बिशम्बर दयाल एक सैनिक के रुप में मेरठ छावनी में तैनात थे। इस सैन्य वंश से संबन्ध रखने वाले समशेर कोसलिया के दादा एक किसान थे और उनके परिवार में किसी प्रकार दूर तक भी कोई साहित्यिक माहौल नहीं था। कोसलिया की शिक्षा महात्मा बुद्ध की तपस्थली गया (बिहार) से शुरू हुई और वे दसवीं तक की ही शिक्षा हासिल कर सके, जबकि उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स में डिप्लोमा भी किया है। वैसे मूल रुप से समशेर कोसलिया एक किसान हैं, जहां तक साहित्य का सवाल है, उनके स्याणा गांव में ही जन्मे उत्तर भारत के लोक आशु महाकवि पं. सुखीराम गुणी की रचनाओं को एकत्र करके उन्हें पढ़ा, तो साल 1992 में उनमें साहित्यिक बीजारोपण हुआ और वे साहित्यकार बन गये। नतीजन साल 1993 में ‘श्रेष्ठ संस्कारों वाला एक गांव’ नामक उनका लिखा हुआ एक निबंध हरियाणा संवाद में प्रकाशित हुआ, तो उनका लेखन के प्रति आत्मविश्वास बढ़ा और उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। कोसलिया अपनी रचनाओं का फ़ोकस समाज में फैली कुरीतियों, पर्यावरण, बाल जीवन, जन जीवन पर रखते हुए जारी रखा। हरियाणा के लोक आशु महाकवि गुणी पं. सुखीराम को आदर्श और प्रेरणास्रोत मानने वाले समशेर कोसलिया ने उनके काव्य को प्रकाश लाकर उन्हें पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभा रहे हैँ। यही नहीं उन्होंने महाकवि गुणी पं. सुखीराम से समाज को जोड़ने के लिए एक ऐप भी तैयार कर लिया है। उन्होंने बताया कि श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित उनकी पुस्तक ‘दरद’ अहीवाटी बोली में किसी के द्वारा लिखी गई पहली कृति थी, जिसके बाद हाल ही में वरिष्ठ साहित्यकार सत्यवीर नाहडिया ने ‘कुण्डलिया छंद संग्रह’ उन्होंने बताया कि श्रेष्ठ कृति पुरस्कार से सम्मानित उनकी पुस्तक ‘दरद’ अहीवाटी बोली में किसी के द्वारा लिखी गई रचना थी, जिसके बाद हाल ही में साहित्यकार सत्यवीर नाहडिया ने ‘कुण्डलिया छंद संग्रह’ अहीरवाटी में लिखा है। जबकि इस बोली का प्रयोग हरियाणा के सभी साहित्यकारों को करना चाहिए। लिखा है। जबकि इस बोली का प्रयोग हरियाणा के सभी साहित्यकारों को करना चाहिए। कोसलिया के लेखन व रचनाओं का आकाशवाणी रोहतक से वार्ताओं के रुप में प्रसारण भी होता रहा है। कोसलिया नेकीराम साहित्य एवं नाट्य कला संरक्षण परिषद के जैतडावास के संस्थापक उपाध्यक्ष, बाबू बाल मुकुन्द गुप्त पत्रकारिता एवं साहित्य संरक्षण परिषद रेवाड़ी के आजीवन सदस्य तथा सांग सम्राट चन्द्रलाल मंच के सदस्य भी हैं। सदैव उपयोगी मिनी कैलेण्डर प्रकाशित कृति उनकी विशेष उपलब्धि रही है। 
युवाओ को साहित्यिक शिक्षा जरुरी 
आज के इस आधुनिक युग में साहित्य के क्षेत्र में बढ़ती चुनौतियों के बारे में समशेर कोसलिया का कहना है कि समाज व संस्कृति में साहित्य का अहम योगदान होता है। इसलिए साहित्यकार व लेखक को समाज के दर्पण के रुप में देखा जाता है। लेकिन आज के इस युग में साहित्य की स्थिति दयनीय है और साहित्य हाशिए पर है। साहित्यकारों की रचनाएं आपस में एक दूसरे साहित्यकार ही पढ़ रहे हैं। साहित्यकार समाज को नई दिशा देने का काम करता है, लेकिन आज के इस युग में ऐसे वास्तिविक लेखक के साहित्य को उतना महत्व नहीं मिल पाता है, जितना धनोर्पजन करने वाले लेखक को दिया जा रहा है। ऐसे में लेखकों का स्तर गिरना स्वाभाविक है। जहां तक युवा पीढी का साहित्य के प्रति रुचि न होने का सवाल है, उसका कारण आज के युवा ऑनलाइन प्रणाली पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करना हैं। हालांकि इंटरनेट के जरिए अच्छी शिक्षा तो युवा ले रहे हैं, लेकिन उसके नुकसान भी युवा पीढ़ी को नशा खोरी और पश्चिमी सभ्यता को ज्यादा ग्रहण कर रहे है, जिसकी वजह से समाज और अपनी संस्कृ़ति गर्त में जा रही है। युवा पीढ़ी को साहित्य के प्रति प्रेरित करना समय की मांग है। इसके लिए लेखकों और रचनाकारों को भी उनकी अभिरुचि और अच्छे साहित्य के लिए आकर्षित करना चाहिए। मसलन युवाओ को साहित्यिक शिक्षा का ज्ञान भी जरुरी है, ताकि वे देश व समाज के निर्माण में अपना अहम योगदान दे सकें। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार समशेर कोसलिया ने अभी तक वृक्ष पहेलियां, लता पहेलियां (हिंदी में पहेली विधा), तुम बूझो हम जानें (हिंदी में कुंडलियां), नाज़ की रूखाली (अहीरवाटी बोली में बाल कहानियां), पानी नै बचाल्यो (हरियाणवी नाटक), प्रेरणा के बोल (हिंदी में बाल कहानियां), दरद (अहीरवाटी बोली में नाटक संग्रह), बरगद (हिंदी में पर्यावरण निबन्ध संग्रह) जैसी पुस्तकों की रचनाएं की हैं। पिछले करीब तीन दशक से उनके आलेख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हो रहे हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2021 में पहली बार शुरु किए गये ढाई लाख रुपये के कवि दयाचंद मायना सम्मान की शुरुआत साहित्यकार समशेर कोसलिया को देकर की है। इससे पहले अकादमी ने हरियाणवी नाटक वर्ग में उनकी पुस्तक ‘दरद’ को भी 2018 में पुरस्कृत किया। कोसलिया को चांदराम साहित्य स्मृति सम्मान, उत्तराखंड के श्रीमती विद्या देवी खन्ना स्मृति बाल साहित्य सम्मान, यादव साहित्य विभूषण सम्मान, अहीरवाल का लोक साहित्य सम्मान, साहित्य गौरव सम्मान, हिन्दी सेवा सम्मान, साहित्य सुगन्ध सम्मान, साहित्य सुमन सम्मान, राष्ट्र भाषा आचार्य मानक उपाधि सम्मान, साहित्य वाचस्पति सम्मान, साहित्य सम्मान, सिहाग साहित्य सम्मान, बाल साहित्य सम्मान, पर्यावरण मित्र सम्मान, वन महोत्सव सम्मान आदि प्रमुख पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें कई दर्जन साहित्यिक, सामाजिक एवं स्वयंसेवी संस्थाओं ने मंच पर अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया है। 
19June-2023

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