सोमवार, 13 मार्च 2023

साक्षात्कार: समाज में सर्वहिताय का परिचायक है साहित्य : सुरेश जांगिड़

पुस्तक संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए किया 350 से ज्यादा पुस्तक मेलो का आयोजन 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: सुरेश जांगिड ‘उदय’ 
जन्मतिथि: 02 जून 1965 
जन्म स्थान: कैथल (हरियाणा) 
शिक्षा: बीए (प्रकाशन) 
संप्रत्ति:अध्यक्ष एवं संस्थापक अक्षरधाम समिति कैथल एवं स्वतंत्र लेखन।
संपर्क:गलीनं.-2,वर्मा काॅलोनी, चंदाना गेट  कैथल (हरियाणा)। मोबाइल: 9215897365, 8168804643
ईमेलsj9215897365@gmail.com  
BY: ओ.पी. पाल 
रियाणा साहित्य एवं संस्कृति को नया आयाम देने वाले प्रबुद्ध लेखकों में सुरेश जांगिड़ उदय एक ऐसे साहित्यकार एवं कथाकार हैं, जो अपनी साहित्य साधना में समाज की दोहरी मानसिकता और कुरीतियों के खिलाफ बेबाक कलम चलाकर समाज को सकारात्मक विचाराधारा की ऊर्जा देने का प्रयास कर रहे हैं। साहित्य की विभिन्न विधाओं में वह हिंदी के साथ ही वह हरियाणवी भाषा एवं संस्कृति से दूर होते खासतौर से युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए प्रेरक रचनाओं के संसार को आगे तो बढ़ा ही रहे हैं, वहीं युवाओं और बच्चों के भविष्य की बेहतर कल्पना को लेकर उनकी अक्षरधाम समित नामक संस्था पुस्तक संस्कृति के प्रचार प्रसार करने की मुहिम में अब तक 350 से ज्यादा पुस्तक मेलो का आयोजन करके देश में सर्वाधिक पुस्तक मेले आयोजित कर चुकी है। समाज को साहित्य और संस्कृति के प्रति नई दिशा देने वाली ऐसी गतिविधियों को लेकर साहित्यकार सुरेश जांगिड उदय लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। अपने साहित्यिक सफर के बारे में उन्होंने ऐसे कई पहलुओं पर चर्चा की, जिसमें साहित्य के जरिए उनका यह रचनात्मक काम समाज को इस आधुनिक युग में भी अपनी संस्कृति की मूल जड़ो से जुड़ने का संदेश देता है। 
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हरियाणा के कैथल में 02 जून 1965 को एक साधारण परिवार में जन्मे सुरेश जांगिड़ के घर या परिवार में कोई साहित्यिक माहौल नहीं था, लेकिन शिक्षा के प्रति बेहद जागरुकता थी। हम चार भाई और एक बहन है। सभी विवाहित और सुव्यस्थित और रिटायर हो चुके हैं। फिलहाल वह निजी कारणों की वजह से अपने एक छोटे से बगीचे में प्रकृति की गोद में अकेला अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। जीवन में हर इंसान को किसी न किसी परेशानी से गुजरना पड़ता है, तो उनके साहित्यिक सफर में भी परेशानियां आना स्वाभिवक है। मसलन उनकी साहित्यिक रूचि घर वालों को कतई पसंद नहीं थी। मसलन वह जो चाहते थे नहीं हुआ और उन्हें तकनीकी शिक्षा दिलाई गई, जिसकी बदौलत उन्हें शुगर मिल में नौकरी भी मिल गई। लेकिन मन नहीं लगा तो सब कुछ छोड़कर और अधिक साहित्य लिखना शुरू कर दिया। तब तक साहित्य के लघुकथा विधा में उनकी अच्छी पहचान हो गई थी। उन्होंने बताया कि देश में पहली बार ‘पोस्टर लघुकथा’ प्रदर्शनी का विभिन्न शहरों में हुआ, जहां उन्हें लेखकों की खूब सराहना मिली। वैसे भी बचपन से ही उनमें साहित्य की कल्पनाशीलता प्रखर थी। इसलिए उनका चीजों और संबंधों को नजदीक से देखना और उसे अपने मायने में तोलने की आदत कब लेखन में बदल गई उन्हें भी पता ही नहीं चला। उनका साहित्यिक सफर कविताओं से शुरु हुआ। तब वह दसवीं कक्षा में थे, तो एक स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र में उसकी रचनाएं प्रकाशित होना आरंभ हो तो उनका रचनाएं लिखने के प्रति आत्मविश्वास बढ़ने लगा। इस साहित्य के माहौल में ही उन्होंने कविताओं के बाद लघुकथाओं और फिर कहानियां लिखना शुरू कर दिया। उनकी विभिन्न विधाओं में लिखी गई रचनाएं देशभर के पत्र-पत्रिकाओं और साहित्यिक पत्रिकाओं में निरन्तर रचनाएं छपने लगी। उनके लेखन में बढ़ती कलम को देखते हुए उन्हें स्थानीय साप्ताहिक समाचार पत्र ‘हक परस्त’ का साहित्य संपादक भी बनाया गया। 
साहित्य की गौरवमय परम्परा 
जहां तक इस आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति का सवाल है उसके बारे में सुरेश जांगिड का मानना है कि साहित्य का मानव जीवन पर बहुत गहरा असर होता है। साहित्य सदा से मनुष्य को मनुष्य बनाए रखने में सर्वाधिक योगदान देता आ है और देता रहेगा। चाहे कोई भी युग रहा हो साहित्य की स्थिति में थोड़ा बहुत अंतर तो आता ही रहता है। साहित्य आज भी अपने गौरवमय परम्परा के साथ सबसे ऊपर है। साहित्य के प्रति पाठकों में कम होती रुचि पर उनका कहना है कि विज्ञान की तेज प्रगति और जीवन की अंधी होड़ में कई बार साहित्य के पाठक कम होते जाते रहे हैं। इंटरनेट ने इसे पछाड़ा तो है, लेकिन साहित्य की सार्थकता को कभी भी खत्म नहीं कया जा सकता। हां हर युग में युवाओं के सामने चुनौतियां रहती हैं और आज के दौर में युवा पीढ़ी पर सर्वाधिक बोझ बढ़ा है, क्योंकि जीवन की चुनौतियों और पैसों की अंधी दौड़ में युवा बरगला जाते हैं। अगर युवाओं को कोई सही राह दिखता है तो वह साहित्य ही है। साहित्य की ओर कम रूझान के कारण युवा वर्ग उदेश्यहीन हो जाता है, जिसके कारण जीवन में तनाव और भटकाव में बढ़ोतरी जैसी समस्याअें से जुझना पड़ रहा है। ऐसे में माता पिता का दायित्व है कि अपनी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए वे अपने बच्चों को साहित्य के प्रति प्रेरित करें, क्यों कि साहित्य ही मनुष्य में अच्छे बुरे के फर्क को पहचानने में मददगार होता है। इस आधुनिक साहित्य में लेखन के स्तर पर भी गिरावट को लेकर उनका स्पष्ट कहना है कि ऐसी बात नहीं है। आज भी कुछ लोग सतही लेखन करते हैं और अपने आपको मुंशी प्रेमचंद या मिर्जा गालिब से कम नहीं समझते। ऐसे ही लोग शोर मचाते हैं कि लेखन के स्तर में गिरावट आई है। भारत ही नहीं पूरे विश्व में आज भी बहुत अच्छे स्तर का साहित्य लिखा जा रहा है। हमें अपना दृष्टिकोण व्यापक रखना होगा। उनका मानना है कि हर साहित्यकार लिखता तो है स्वसुखाय ही है किन्तु लेखक भी तो समाज का एक हिस्सा होता है। वो जो समाज की बुराईयाँ और अच्छाइयों का जो वा लेखा-जोखा समाज के सामने रखता है तो वह लेखन स्वयं ही सर्वहिताय बन जाता है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
हरियाणा के सुप्ररिचित साहित्यकार सुरेश जांगिड़ की लिखित मौलिक 12 पुस्तकों में अहसास (प्रेरक बोध कविताएं) यहीं-कहीं (लघुकथा संग्रह-पांच संस्करण), बाट मत जोहना (कहानी संग्रह), एक न एक दिन (कविता संग्रह-दो संस्करण) हरियाणवी लोककथाएं (चार संस्करण), भारतीय संविधान(पांच संस्करण), प्रकृति की अनमोल देन आंवला (पांच संस्करण), टाइम मैनेजमैंट (दस संस्करण), प्रेरक प्रसंग, प्रेरक कहानियां, प्रेरक कथाएं और तेरे होने का अहसास (लघुकविता-संग्रह) शामिल हैं। इसक अलावा उन्होंने छोटी सी हलचल, प्रेमन्द का लघुकथा साहित्य, दोहरे चेहरे संपादित लघुकथा संग्रह जैसी हिन्दी तथा हरियाणवी बोली की 120 से अधिक पुस्तकों का संपादन भी किया है। वहीं उन्होंने पांच पत्र और साहित्यिक पत्रिकाओं में संपादन करने में अहम योगदान किया है। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में कथाकार सुरेश जांगिड़ उदय पर एमफिल के लिए शोध भी किया गया है। 
सम्मान व पुरस्कार एक कथाकार के रुप में पहचाने जाने वाले प्रसिद्ध साहित्यकार सुरेश जांगिड़ को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2019 के लिए लाला देशबन्धु गुप्त सम्मान से नवाजा है। यह पुरस्काेर उन्हें् पंचकूला में फरवरी 2022 को मुख्यमंत्री मनोहर लाल के हाथों प्रदान किया गया। इसके अलावा विभिन्न् साहित्यिक मंचों और अन्य सांस्क़रति‍क कार्यक्रमों में उन्हें अनेक पुरस्कावर व सम्मालन मिल चुके हैं। 
13Mar-2023

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