सोमवार, 20 मार्च 2023

चौपाल: लोक संस्कृति की धरोहर है संगीत की विधाएं: टीटू शर्मा

हारमोनियम वादक के रुप मे हरियाणवी लोक कला के संवर्धन में जुटे लोक कलाकार 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: दिनेश शर्मा ‘टीटू’ 
जन्मतिथि: 15 मार्च 1962 
शिक्षा: मैट्रिक, म्यूजिक(हारमोनियम) 
संप्रत्ति: टीटू शर्मा म्यूजिकल ग्रुप, मोबा.-9.38332390 ---
 हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति को जीवंत करने के लिए लोक कलाकार अपनी सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराओं व मूल्यों को संरक्षित करने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही संगीत कला हारमोनियम विधा में निपुण कलाकार दिनेश शर्मा उर्फ टीटू शर्मा भी बुजुर्गो से मिली विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं। हरियाणा की गीत, गायन जैसे संगीत के लिए हारमोनियम विधा में समाज को अपनी लोक संस्कृति से जुड़े रहने की प्रेरणा दे रहे टीटू शर्मा को बी प्लस श्रेणी कलाकार की मान्यता मिली है। इसलिए एक रेडियो कलाकार के रुप में उनकी रिकार्डिंग टीवी चैनलों व आल इंडिया रेडियो पर भी हो चुकी है। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान उन्होंने संगीत के वाद्य यंत्रों को लोक कला और संस्कृति की धरोहर करार दिया। 
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रोहतक शहर में 15 मार्च 1962 में जन्मे दिनेश शर्मा उर्फ टीटू शर्मा के दादा पं. प्रताप सिंह और पिता दर्शनदयाल शर्मा भी हारमोनियम वादन की कला से हरियाणवी संगीत और लोक कला को आगे बढ़ाते रहे हैं। शर्मा ने बताया कि उन्हें बचपन से ही हारमोनियम वादन में अभिरुचि होने लगी थी। जब वह नौ साल के थे तो वह अपने पिता के साथ रामलीलाओं और अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों में साथ जाने लगे और हारमोनियम बजाने लगे थे। यहीं से उनका हारमोनियम बजाने का सिलसिला शुरू हुआ। पहली बार स्वतंत्र रुप से उन्होंने दस साल की उम्र में रोहतक शहर में प्राचीन लोकल रामलीला के मंच पर हारमोनियम वादन का प्रदर्शन किया। उन्होंने संगीत के अहम वाद्य यंत्र हारमोनियम की संगीत स्कूल से शिक्षा भी ली। हालांकि उनकी शैक्षिक योग्यता केवल मैट्रिक तक ही हो पाई, लेकिन संगीत अहम वाद्य यंत्र में वे इतने निपुण हो गये कि गीतों के बोल के साथ हारमोनियम से सुरताल निकालने लगे। उन्होंने श्याम बटेजा के साथ उनकी संगीत टीम के साथ काम किया। यही नहीं हरियाणा व पंजाब के सबसे बड़े संगीत निर्देशक के रुप में लोकप्रिय हुए चरणजीत आहूजा से भी उन्होंने हारमोनियम वादन की कला सीखी और उनके संगीत की रिकार्डिंग में उन्होंने इस वाद यंत्र की कला का प्रदर्शन किया। संगीत निर्देशक आहूजा ने संगीतकार गुरदास मान, सरगुर सिकंदर जैसे अनेक संगीत कलाकारों को म्यूजिक दिया है। उन्होंने बताया कि साल 2001 में मुंबई में उन्हें आशा भोसले ने अपने गीत के कंपोजन के लिए बुलाया। वहीं सपना अवस्थी, जसविन्दर नरुला, लखबीर सिंह लक्खा के गीतों को भी उन्होंने अपनी कला से कंपोजन दिया। इन सभी संगीतकारों के गीतों के सुरो से हारमोनियम की कला से संगीत में मिश्रण देना किसी चुनौती से कम नहीं था। इसके अलावा वह पंजाबी गीतों में भी हारमोनियम वादन के जरिए सुरताल मिलाते आ रहे हैं। संगीत में हारमोनियम वादक दिनेश शर्मा ‘टीटू’ हिंदी और हरियाणवी गीत और भजन भी लिखते हैं। 
बरकरार है परंपरागत वाद्ययंत्र की महत्ता 
संगीत में हारमोनियम वादक दिनेश शर्मा ‘टीटू’ हिंदी और हरियाणवी गीत और भजन भी लिखते हैं। दिनेश शर्मा ‘टीटू’ का कहना है कि संगीत मनोरंजन या सांस्कृतिक अथवा धार्मिक आयोजन के लिए हो उन सभी में हारमोनियम के बिना संगीत परिपूर्ण नहीं हो सकता। आज के युग में इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यंत्रों के बावजूद परंपरारम हारमोनियम की महत्ता कम नहीं हुई। हारमोनियम को बैंजू जैसा बजाना पड़ता है। उनका कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक वाद यंत्र में कीबोर्ड का इस्तेमाल होता है, जो अक्षर की तरह कभी भी गलत बटन दबने से संगीत के सुर से ताल मिलना मुश्किल हो जाता है। उनका कहना है कि लोक संगीत मानवीय हितों और जरूरतों से उभरता है। खासतौर से हरियाणा में लोक संगीत की एक समृद्ध परंपरा है। इस संगीत शैली में हारमोनियम जैसा वाद्य यंत्र भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक अभिन्न अंग है। हारमोनियम किसी भी संगीत में ढोलक और सारंगी के साथ गीतों की धुनों के साथ संगीत स्कोर मिश्रित रागों पर आधारित है। आजकल फिल्मों और टीवी के माध्यम से पश्चिमी वाद्ययंत्र के साथ पश्चिमी संगीत प्रभाव हमारे राज्य के शहरी केंद्रों में जमा हो रहे हैं। लेकिन परंपरागत हारमोनियम, नगाड़ा, ढोलक व सारंगी जैसे संगीत वाद्ययंत्रों की महत्ता कम नहीं हुई है। 
एक शिक्षक की भूमिका 
हारमोनियम वादक कलाकार विभिन्न स्कूल कॉलेजों में संगीत संकायों में वे संगीत के बच्चों यानी छात्र छात्राओं को हारमोनियम वादन की शिक्षा भी दे रहे हैं। वह एमएस सरस्वती सीनियर सेकेंडरी स्कूल रोहतक के संगीत निर्देशक भी है। इसके अलावा वे संगीत में अभिरुचि रखने वाले बच्चों को भी संगीत और उसके हारमोनियम वादन के लिए प्रेरित कर रहे हैं। इसका मकसद है कि भारतीय शास्त्रीय संगीत और लोक कला के क्षेत्र में अपनी संस्कृति और परंपराओं को विस्तार दिया जाए। उन्होंने बताया कि विरासत में मिली इस कला को आगे बढ़ाने के लिए उनके पुत्र भी हारमोनियम सीख रहे हैं। वह पिछले करीब तीन दशक से पंजाबी रामलीला में संगीत निर्देशक की भूमिका निभा रहे हैं। 
आजीविका बनी कला 
संगीत के क्षेत्र में वे देशभर के विभिन्न राज्यों के अनेक शहरों में आयोजित म्यूजिक नाइट, सांस्कृतिक कार्यक्रमों व धार्मिक आयोजनों में लगातार हारमोनियम वादक के रुप में हिस्सेदार बन रहे है। वैसे भी उनकी संगीत कला उनकी और परिवार की आजीविका का साधन बन चुकी है। इसलिए पेशे के रुप में संगीत की इस कला में हारमोनियम वादन के रुप में उन्हें आमंत्रित किया जा रहा है। 
सम्मान व पुरस्कार 
लोक कलाकार को संगीत के क्षेत्र में हारमोनियम वादन के रुप में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए जहां महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक में सम्मानित किया गया, वहीं गणतंत्र दिवस पर पुलिस लाइन में आयोजित समारोह में देशभक्ति के गीतों पर हारमोनियम से दिये संगीत के लिए पुरस्कृत किया गया। सिटी कैबल, ब्राह्मण समाज, वैश्य कालेज, एमडीयू और गौड ब्राह्मण कालेज जैसी संस्थाओं के पुरसार के अलावा टीटू शर्मा को देशभर में विभिन्न मनोरंजन, संगीत, धार्मिक आयोजनों में उन्हें अनेक सम्मान मिल चुके हैं। 
सकारात्मक बने रहे कलाकार 
आधुनिक युग में लोक कला और संगीत में गिरावट को लेकर हारमोनियम वादक दिनेश शर्मा टीटू का कहना है कि युवा पीढ़ी अपनी परंपरागत गायन शैली और संस्कृति से दूर होती जा रही है। कलाकार भी उनकी अभिरुचि के अनुसार द्विअर्थी गीतों का लेखन और गायन करने की तरफ जाते दिख रहे हैं। लेकिन समाज को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने के लिए कलाकारों के लिए जरुरी है कि वे खासतौर से इंटरनेट और मोबाइल में उलझे युवाओं को अपनी संस्कृति और परंपराओं के प्रति प्रेरित करने के लिए अच्छे गीतों का लेखन और गायन करें। हालांकि आज भी ज्यादातर लोक कलाकार अपनी परंपरागत शैली को अपनाते हुए समाज को सकारात्मक रुप से अपनी संस्कृति से जुड़े रहने का संदेश दे रहे हैं। 
20Mar-2023

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