शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

निलंबन नहीं बर्खास्तगी है दवा, सांसदों की भी हो सुरक्षा जांच!

संविधान विशेषज्ञों ने दी सलाह:
ओ.पी.पाल

लोकसभा में तेलंगाना राज्य का विरोध करने वाले कुछ सांसदों ने भारतीय संसद को शर्मसार करने में अपनी बेशर्मी की सभी हदों को पार कर दिया। इससे अब माननीयों को भी सुरक्षा के दायरे में शामिल किये जाने पर विचार करने के लिए भी विचार किया जाना चाहिए। संविधान विशेषज्ञों के मुताबिक माननीयों का सदन में किया गया व्यवहार आपराधिक दायरे में है जिसके लिए सदन को ऐसे सदस्यों के खिलाफ सख्त से सख्त सजा का प्रस्ताव लाना चाहिए।
लोकसभा में गुरुवार को माननीयों के हंगामे करने की शैली ने संसदीय गरिमा को ताक पर रखकर जिस तरह से मिर्च स्प्रे छिड़का गया। चाकू लहराने जैसी बाते सामने आई हैं इस पर संविधान विशेषज्ञ भी हतप्रभ हैं। उनकी राय में अब संसद की सुरक्षा के दायरे में माननीयों को भी लाने पर निश्चित रूप से विचार होना चाहिए। अब तक सुरक्षा जांच में छूट पा रहे सांसदों के भी सुरक्षा जांच की वकालत विशेषज्ञों ने की। राज्यसभा के पूर्व महासचिव डा. योगेन्द्र नारायण ने हरिभूमि से बात करते हुए कहा कि किसी भी विधेयक या अन्य पत्रों को मंत्री के हाथ से छीनने व फाड़ने की घटनाएं तो आम हो चली हैं,लेकिन जब माननीय ही सांसदों की जान के दुश्मन बन जाएं तो यह लोकसभा को कलंकित करने वाला है। डा. योगेन्द्र नारायण कहते हैं कि यह बड़े ही अफसोस की बात है कि सदन में मिर्च पाउडर व चाकू लेकर जाना किसी भी सांसद के लिए बेशर्मी की हदे पार करने जैसा है। यही नहीं उससे सांसदों के लिए खतरा पैदा करने की हरकत तो संसद को दुनियाभर में शर्मसार करती है। ऐसी हरकतों पर लोकसभा में इन सांसदों के लिए नियम 374 ए के तहत केवल 5 दिनों के लिए निलंबित करना कोई सबक नहीं है, बल्कि सांसदों को ऐसे सदस्यों के खिलाफ विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव लाना चाहिए। उनका कहना है कि राज्यसभा की तरह लोकसभा में भी लोकतंत्र के मूलरूप का अंत करने वाले ऐसे सांसदों को सदन की सदस्यता से बर्खास्त करने जैसे प्रस्ताव भी लाने की जरूरत है। जहां तक माननीयों की सुरक्षा जांच के दायरे का सवाल है उसके बारे में डा. योगेन्द्र नारायण कहते हैं कि जब संसद में सांसदों से ही सुरक्षा दांव पर लगने जैसी नौबत हो तो ऐसे में माननीयों को भी सुरक्षा जांच के दायरे में लाने के लिए विचार किया जाना चाहिए, ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।
लोस की घटना लज्जाजनक और शर्मसार: सुभाष
लोकसभा के महासचिव रह चुके संविधानविद सुभाष कश्यप ने लोकसभा में हुई घटना को बेहद लज्जाजनक और शर्मनाक करार देते हुए कहा कि यह सदन के अधिकार क्षेत्र में आता है कि ऐसे सांसदों के खिलाफ संसदीय गरिमा गिराने के विरोध में सदन की अवमानना के लिए जेल तक भेजा जा सकता है, क्योंकि सदन में चाकू ले जाना या ज्वलनशील पदार्थ ले जाना आपराधिक श्रेणी में आता है। उनका कहना है कि यह सदन के विवेक पर निर्भर है जिसमें इनके निलंबन की कार्यवाही को बर्खास्तगी में भी बदला जा सकता है। कश्यप कहते हैं कि लोकसभा में इस तरह के व्यवहार करने के लिए केंद्र सरकार भी अपनी जिम्मेदारी से नहीं भाग सकती, जिसने वोटबैंक की राजनीति में चुनाव से ठीक पहले ऐसे विवादास्पद मुद्दे को सदन में रखने का निर्णय लिया है। तेलंगाना का मुद्दा पिछले दस साल से है जिसमें सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि दोनों पक्षों को बैठाकर बीच का रास्ता निकालने के लिए कदम बढ़ाती, लेकिन उसने तेलंगाना समर्थकों को सदन में विधेयक पेश करके समर्थन बटोरने की नीति बनाई, जबकि सीमांध्र के लोगों का समर्थन लेने के लिए वह सदन में इस विधेयक को लटकाने की नीति अपना सकती है? हालांकि यह इस सत्र के शेष दिनों की कार्यवाही से तय हो सकेगा।
14Feb-2014

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