मंगलवार, 18 फ़रवरी 2014

पिछले साल ही गंवा चुकी थी सुनहरा मौका यूपीए!

अंतरिम बजट के सहारे नैया पार लगाने की कवायद
ओ.पी.पाल

आम चुनाव से पहले अंतरिम बजट में यूपीए सरकार के पास अपनी उपलब्धियों को गिनाने और लोकलुभावने वादे करने के अलावा कोई और चारा भी नहीं था। अंतरिम बजट में संवैधानिक रूप से भी सरकार के लिए देश को कुछ देने की गुंजाइश नहीं थी। आर्थिक विशेषज्ञों की माने तो यूपीए सरकार अपने खजाने को सुधारने के फेर में पिछले साल बजट में ही विकास योजनाओं के बजट में 80 हजार करोड़ रुपये की कटौती करके एक सुनहरा मौका गंवा चुकी थी।
यूपीए-2 के अंतरिम बजट को आर्थिक विशेषज्ञ ही नहीं, राजनीतिक दल भी राजनीतिक बजट करार दे रहे हैं, जिसमें आगामी लोकसभा चुनाव के को ध्यान में रखते हुए सरकार ने अपने पिछले दस साल के कामकाजों को स्मरण कराने और चुनाव में जाने की तैयार में चुनौतियों का हवाला देकर लोकलुभाने वादे किये हैं। आर्थिक विशेषज्ञ आनंद प्रधान ने हरिभूमि से बातचीत के दौरान कहा कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी मान चुके हैं कि यह उनकी विदाई का समय है जिसमें उन्होंने यूपीए शासनकाल की उपलब्धियों की समीक्षा की बात कही है। इससे पहले प्रधानमंत्री ने पिछले महीने एक पत्रकार सम्मेलन में भी अपना विदाई वक्तव्य पेश किया था। प्रधान कहते हैं कि यह बात सही है कि देश में पिछले साल वाला आर्थिक संकट अब नहीं है, लेकिन जिस प्रकार से पिछले बजट में सरकार खजाने को दुरस्त करने के फेर में विकास योजनाओं में 80 हजार करोड़ रुपये की कटौती कर गई थी, तो उसने एक बेहतरीन मौका ही गंवा दिया था, जिसे अंतरिम बजट में हासिल करने की कोई गुंजाइश बचती ही नहीं थी। जहां तक यूपीए की उपलब्धियों के बखान का सवाल है उसके बारे में आनंद प्रधान का कहना है कि उपलब्धियों में भी सरकार के पास कुछ खास नहीं है, क्योंकि महंगाई, रोजगार और बुनियादी ढांचे को सुधारने जैसी सभी योजनाओं में जो होना चाहिए था वह किया ही नहीं गया है। पिछले दस साल में अर्थव्यवस्था को सुधारने के दावे करना भी किसी के गले उतरने वाली बात नहीं है, क्योंकि खासकर यूपीए सरकार अपने दूसरे कार्यकाल में भ्रष्टाचार और घोटालों के ईर्दगिर्द अपनी छवि खराब करने के अलावा कुछ नहीं कर पाई। आनंद प्रधान का कहना है कि लेखानुदान की मांगों को पारित कराना किसी भी सरकार को जाने से पहले संवैधानिक प्रावधान है, इसलिए इसे चुनावी या राजनीतिक बजट कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है।
जेएनयू के प्रो. अरूण कुमार मानते हैं कि चिदंबरम का पूरा भाषण सरकार की उपलब्धियों से ही भरा था और उसमें अगले दस साल की योजना का खाका बनाकर दस लाख रोजगार सृजन करने का वादा तो भविष्य के गर्भ में होने के समान है। योजनाओं के खर्च को कम करके आम आदमी की जेबों को हलका करते हुए जिस तरह के वादे किये जाते हैं, उनसे इस अंतरिम बजट में जनता को कुछ मिलने वाला नहीं है। उनका कहना है कि यह सरकार कीभी मजबूरी है कि चुनाव सिर पर है और उनके लिए खोने  को कुछ नहीं है तो अपने अंतरिम बजट में शासनकाल की उपलब्धियों को ही गिनाकर भविष्य की योजनाओं का ही बखान किया जा सकता है। इसलिए वित्त मंत्री के इस बार के पिटारे से कुछ निकल पाता यह आम आदमी के लिए कोई मायने नहीं रखता।
18Feb-2014

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