सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

पश्चिमी उत्तर प्रदेश: मोदी की रैली से बदल सकते हैं सियासी समीकरण!


 दंगों की तपिश पर हाथ सेकने वाले दलों को झटका
ओ.पी. पाल
मुजफ्फरनगर दंगों की तपिश में मेरठ में हुई भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की विजय शंखनाद रैली को यूपी में अभी तक हुई सभी रैलियों के रिकार्ड तोड़ने का दावा किया जा रहा है। ऐसे में माना जा सकता है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन मजबूत करने के लिहाज से इस रैली ने यूपी के भाजपा दिग्गजों का कद भी बढ़ाया है, तो सियासी समीकरण बदलने की संभावनाओं से अन्य दलों की सियासी रणनीतियों को झटका लगने से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
मोदी ने कांग्रेस, रालोद और सपा की यूपी सरकार पर मुजफ्फरनगर दंगों का जिक्र किये बिना तीखे हमले बोलते हुए इशारों-इशारों में ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति में गरमाहट पैदा करने का दम भरा। मोदी इस बार अप्रत्याशित रूप से बसपा को अपने हमले की धार से बख्शते नजर आए। आमतौर पर सपा और बसपा दोनो पर समान हमला करने वाले मोदी ने अपनी रैली में बसपा के खिलाफ कुछ भी कहने से परहेज किया। इसके साफ सियासी मायने निकाले जा रहे हैं। यूपी में खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों व गन्ना उत्पादकों और आम जनता की बुनियादी समस्याओं, विकास, रोजगार और सुरक्षा के लिए कानून व्यवस्था जैसे मुद्दे को बारीकी से छूते हुए केंद्र और यूपी की सपा सरकार पर तीखे हमले बोले और गैर भाजपाई दलों की वोट बैंक की सियासत की हकीकत से रैली में आए समर्थकों को रूबरू कराने का प्रयास किया। मोदी ने मेरठ एयरपोर्ट की अधूरी योजना पर रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह की केंद्रीय नागर विमान मंत्री के रूप में हैसियत को भी उजागर करने में कोई परहेज नहीं किया। उन्हें इस बात का इल्म भलीभांति है कि पश्चिम उत्तरप्रदेश की कुल 14 लोकसभा सीटों में अधिकतर सीटों पर रोलोद से सीधी टक्कर है। उन्होंने खेत, खलिहान के साथ किसानों के मसीहा कहे जाने वाले चौधरी अजित सिंह के पिता चौधरी चरण सिंह को याद करना नहीं भूले। उन्हें मंच से दिवंगत किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत की याद भीआई। किसानों के हित में कई फार्मूला देते भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार का संदेश साफ था तो इशारे-इशारे में पश्चिम उत्तरप्रदेश में राजनीति चमकाने वाले नेताओं को जमकर घेरा। लोकसभा चुनाव की तैयारियों में वैसे तो सभी दलों की नजरें उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन के लिए महत्वपूर्ण हैं, लेकिन खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासी समीकरणों को जिस प्रकार से मुजफ्फरनगर व आसपा के जिलों में हुए दंगों ने बिगाड़ा है उसे अपने पक्ष में करने के लिए सभी दल दंगों की राजनीति करने में कोई परहेज नहीं कर रहे हैं। माना जा रहा है कि मेरठ में रविवार को हुई भाजपा की ओर से पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की रैली में नजर आए उत्साह ने उन गैर भाजपाई दलों की नींद उड़ा दी है, जिन्होंने दंगों की सियासत में लोकसभा चुनाव की राह पकड़ने के लिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत बनाने के लिए न जाने कितनी रणनीतियों के जाल बिछाए। 
रालोद की सियासी मुश्किलें बढ़ी?
रालोद की चार दिन पहले ही आगरा में हुई संकल्प रैली में मोदी की मेरठ रैली को लेकर चौधरी अजित सिंह को जिस तरह का राजनीतिक भय सता रहा था, वो रविवार को मोदी की रैली से मुश्किलों में बदलता दिखाई देने लगा है। आगरा की रैली में रालोद प्रमुख को मंच पर भाषण के दौरान बार-बार गुस्सा इस बात को साफ जाहिर कर रहा था कि उन्हें पश्चिमी उत्तर प्रदेश की अपनी राजनीतिक जमीन खिसकने की चिंता है, जिसके लिए उन्होंने अपने बेटे को चौधरी चरण सिंह की विरासत सौंपकर समूचे सूबे की राजनीति करने के संकेत दिये थे।
सत्यपाल करेंगे अजित से मुकाबला
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को रालोद का गढ़ माना जाता है, लेकिन पिछले दिनों हुए दंगों ने जाट-मुस्लिम समीकरण को बिगाड़ दिया, जिससे संवारने में रालोद को नए सिरे से रणनीति का तानाबाना बुनना पड़ रहा है। रालोद के इस गढ़ को तोड़ने के लिए सपा ने जिस रणनीति को अपनाया है उसका तोड़ रालोद तलाश ही रहा था, कि भाजपा ने चौधरी अजित सिंह के मुकाबले बागपत लोकसभा सीट पर मुंबई पुलिस कमिश्नर की नौकरी छोड़कर भाजपा में शामिल हुए सत्यपाल सिंह को उतारने का संकेत दिया है। सत्यपाल सिंह रविवार को मोदी की मेरठ रैली के मंच पर उत्साह के साथ नजर आए।
03Feb-2014

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