शनिवार, 12 सितंबर 2020

राग दरबार: बगावत का झंडा

 

ताकत बनाम तेवर

देश की सबसे पुराने राजनीतिक दल में आजकल चल रही उठापठक सुर्खियों में है। पार्टी के भीतर जिस प्रकार से बगावत का दौर चला और कार्यसमिति में कांग्रेसी नेताओं ने बगावती तेवर दिखाएलेकिन कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पार्टी के अंदर बगावत का झंडा उठाने वाले नेताओं को अपनी ताकत दिखाकर यह एहसास करा दिया हैकि पार्टी में गांधी परिवार के सामने किसी की नहीं चलेगी। सोनिया गांधी की इस ताकत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने संसदीय समिति में 23 चिठ्ठीबाजों को दरकिनार कर दिया। मसलन कांग्रेस पार्टी में गांधी परिवार की रणनीति के सामने कोई नेता टिक नहीं सकता। सोनिया गांधी ने यह अपनी यह ताकत कांग्रेस कार्य समिति की बैठक में जिस प्रकार की भावना प्रकट की थी वह उसके विपरीत साबित हुई। मसलन बैठक में उन्होंने राहुल की तरह गुस्सा या डांट फटक वाली भाषा के बजाए यही कहा था कि उनके मन में कोई दुर्भावना नहीं है और सबको साथ मिल कर पार्टी को मजबूत करना चाहिए। राजनीतिकारों की माने तो सोनिया गांधी ने चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को क्षमा करने का भाव दिखायालेकिन उसके दो दिन बाद ही बगावती तेवर वाले नेताओं को अपनी ताकत दिखाई उससे साफ है कि कांग्रेस पर वंशवाद का ही राज चलेगा। सियासी गलियारों में हो रही चर्चा की बात करें तो आमतौर पर कांग्रेस पार्टी की कार्य समिति में या संसदीय दल की बैठक में चुने हुए नेताओं के साथ बाकी नेता सहमति में सिर हिलाते नजर आते हैं लेकिन इस बार कार्यसमिति की बैठक में नेताओं के बीच तू-तू-मैं-मैं ने यह साबित कर हैरान कर दिया कि कांग्रेस की यह परंपरा पिछले कुछ दिन से टूट रही है।

ममता की राह केजरीवाल

केंद्र की राजग सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने में जुटी कांग्रेस में आप के संयोजक अरविंद केजरीवाल ठीक उसी तरह से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से विपक्षी नेताओं की बुलाई गई बैठक से परहेज करते नजर आते हैं ,जिस प्रकार तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी ऐसी बैठकों से नदारद रहती हैं। हाल ही में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी द्वारा इंजीनियरिंग और मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं को लेकर चर्चा के अलावा जीएसटी का मुआवजा राज्यों को नहीं दिए जाने के मुद्दे पर विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं को निमंत्रण दिया। हालांकि इन दोनों मुद्दों पर केजरीवाल की राय वहीं हैजो कांग्रेस के दूसरे मुख्यमंत्रियों और अन्य विपक्षी मुख्यमंत्रियों के हैं। इसके बावजूद केजरीवाल इस बैठक में शामिल नहीं हुए। राजनीतिकारों की माने तो आजकल केजरीवाल जान बूझकर कांग्रेस से दूरी दिखाने की सियासत कर रहे हैं। इसमें केजरीवाल को लगता है कि यदि वह सोनिया गांधी की बैठक में गएतो भाजपा उनका कांग्रेस के साथ उनकी करीबी का प्रचार करेगी और इसका फायदा फायदा कांग्रेस को होगा। खासकर केजरीवाल दिल्ली चुनाव के बाद केंद्र सरकार और उनके नेताओं पर हमले करने की अपनी आदत में बेहद बदलाव ला चुके हैं।

30Aug-2020

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