सोमवार, 28 सितंबर 2020

राग दरबार: कोरोना का डर

कोरोना का डर या बहाना

वैश्विक कोरोना महामारी का फोबिया इस कदर बढ़ा हुआ है कि संसद के मानसून सत्र में हिस्सा लेने वाले सांसदों, अधिकारियों, कर्मचारियों, मीडियाकर्मियों या अन्य हर किसी को कोरोना जांच से गुजरना अनिवार्य किया गया है। लिहाजा कोरोना जांच में पॉजेटिव रिपोर्ट आने का डर ऐसे दिग्गज सांसदों व नेताओं को भी डरा दिया, जो विभिन्न मुद्दों पर संसद में मोदी सरकार को घेरेने के लिए विपक्ष की एकजुटता की दुहाई देकर नेतृत्व करने का दावा कर रहे थे। खासकर यह डर प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के लिए खास हो गया, जिसके कारण संसद सत्र से छुट्टी लेकर खासतौर से कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी अपने शहजादे राहुल के साथ अमेरिका चली गई और वहीं से राहुल केंद्र सरकार को ट्वीट के जरिए गरियाने का प्रयास कर रहे हैं। यही नहीं दोनों सदनों में दर्जनों   सांसद अस्वस्थ्य और विभिन्न निजी कारणों का हवाला देकर संसद सत्र के दौरान अवकाश ले चुके है, ताकि उन्हें सत्र में शामिल होने के लिए कोरोना जांच से न गुजरना पड़े। राजनीतिकारों की माने तो संसद में सरकार की घेराबंदी करने की हुंकार भरने वाला विपक्ष जुबानी जंग के अलावा संसद के भीतर पस्त ही नजर आ रहा है और सरकार अपना काम आसानी से निपटा रही है। हालांकि इस सच्चाई से भी पीछे नहीं हटा जा सकता कि कोरोना ने शायद संसद के इतिहास में पहली बार संसद सत्र के साथ संसद में आगुंतकों के कारण रहने वाली रौनक को लील लिया है, क्योंकि कोरोना महामारी के दिशानिर्देशों व प्रोटोकॉल के साथ आयोजित संसद सत्र में दर्शक दीर्घाओं में सांसदों के बैठने की व्यवस्था के कारण उनका प्रवेश पूरी तरह निषेध है। ऐसे में उन सांसदों के लिए कोरोना का डर ही कहा जाएगा जो सत्र में आने के बजाए बहाने से अवकाश ले चुके हैं?

केजरी की चुप्पी

देश की सियासत में नेताओं का चक्र किधर घूम जाए इसका कोई अंदाजा लगाना मुश्किल है। ऐसा चक्र आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल पर सटीक होता नजर आ रहा है। दरअसल केजरीवाल और 2011 में हुए इंडिया अगेंस्ट करप्शन के आंदोलन को लेकर जाने माने वकील और सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत भूषण ने जिस प्रकार कई बड़े खुलासे किए हैं, उसके बावजूद केजरीवाल की ओर से अभी तक कोई टिप्पणी या स्पष्टीकरण नहीं आया है। जबकि भूषण ने यहां तक खुलासा किया कि इस आंदोलन की पटकथा भाजपा व आरएसएस की योजना का हिस्सा था और केजरीवाल इस योजना का प्रमुख हिस्सा थे। सियासी गलियारों में हो रही चर्चा पर गौर करें तो इतने गंभीर खुलासे के बाद भी केजरीवाल या उनके किसी करीबी नेता ने कोई बयान या खंडन नहीं किया है। जबकि इसके विपरीत कांग्रेस पार्टी ने आप से सवाल किये, तो आप के एक बडबोले नेता का ऐसा बयान जरुर आया, लेकिन उसमें कोई  स्पष्टीकरण नहीं। इसलिए राजीनीतिकार इस खुलासे पर केजरीवाल की चुप्पी उनकी पार्टी की स्वीकारोक्ति न को उनकी स्वीकारोक्ति मानकर चल रहे हैं। राजनीतिकारों की माने तो पिछले कुछ समस से जिस प्रकार की राजनीति कर रहे हैं उससे भी ऐसा लगता है कि वह भाजपा के एजेंडे को फॉलो करने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें पिछले कुछ घटनाक्रम इस प्रकार की सियासत के रूझान का इशारा भी करते आ रहे हैं।

20Sep-2020

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