सोमवार, 21 सितंबर 2020

राग दरबार: बेवजह की रार/नेताओं का सब्र

मानसून सत्र

कोरोना संकट की वजह से इतिहास में पहली बार व्यापक बदलाव के साथ संसद का मानसून सत्र शुरू होगा, जिसमें समय, प्रश्नकाल, शून्यकाल, बैठक का समय, अधिकारियों व मीडियाकर्मियों की संख्या यानि सबकुछ ज्यादातर सीमित होगा। ऐसे में सरकार ने पहले प्रश्नकाल न कराने का फैसला किया था, लेकिन बाद में विपक्ष के विरोध के सामने इसे समित करते हुए सवालों के जवाब लिखित में देने का निर्णय लिया। सवाल यह उठता है कि इस कोरोना महामारी के संकट में संसद का सत्र जिस हालातों में शुरू हो रहा है तो उसमें प्रश्नकाल न कराने को लेकर विपक्ष ने रार क्यों शुरू की। जबकि सबको मालूम है विपक्षी दल जब संसद में अपने मुद्दे उठाते हुए हंगामा करता है और प्रश्नकाल स्थगन के नोटिस देकर चर्चा की मांग करते हैं तो तब प्रश्नकाल को विपक्ष गंभीरता से क्यों नहीं लेता, लेकिन विपक्ष को तो सत्तापक्ष को घेरने का धर्म निभाना है। जबकि ऐसा निर्णय के लिए विपक्षी दलों की राय जरुर ली गई होगी। संसदीय मामलों के जानकारों की माने तो पिछले कई अरसों में कई ऐसे मौके आए हैं, जब संसद में हंगामे के कारण लगातार दो-दो सप्ताह तक भी प्रश्नकाल और शून्यकाल तक हंगामे की भेंट चढ़े हैं। राजनीतिकारों का कहना है कि कोरोना काल जैसे कई ऐसे मौके कांग्रेस शासनकाल में भी आए हैं, जब प्रश्नकाल स्थगित रखा गया है। मसलन भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध, बांग्लादेश के जन्म की घोषणा, आपातकाल के दौरान कई ऐसे मौके आए जब संसद के कई सत्र बिना प्रश्नकाल के चले है। इस बार मानसून सत्र में तो वैश्विक कोराना संकट है। इसलिए सरकार की तरफ से प्रश्नकाल स्थगित रखने के फैसले पर विपक्ष के आगबबूला होना समझ से परे हैं?

नेताओं का सब्र

राज्यसभा के चुनाव में कांग्रेस समेत विभिन्न दलों से भाजपा में शामिल हुए कई ऐसे नेता हैं, जो राज्यसभा में निर्वाचित होकर आए है, जिन्हें उम्मीद थी कि उन्हें मोदी कैबिनेट में जगह मिल जाएगी, लेकिन कोरोना काल में नरेंद्र मोदी सरकार के विस्तार की अटकलें अब थमने के बाद ऐसे नेताओं को अभी सब्र करते हुए इंतजार करना पड़ रहा है। मोदी मंत्रिमंडल के विस्तार टलने की दूसरी वजह बिहार विधानसभा चुनाव के रूप में भी देखी जा रही है। ऐसे में पिछले एक साल से मंत्री बनने की आस लगाए बैठे नेता भी अब थक गए हैं, लेकिन अब ऐसे सभी नेताओं को लग रहा है कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले केंद्र सरकार में बड़ी फेरबदल होना संभव नहीं है। कुछ ऐसे नेताओं ने यह भी स्वीकार किया है कि बिहार चुनाव में किस दल को कितनी सीटे मिलेंगी उसका असर भी केंद्रीय मंत्रिमंडल में नजर आ सकता है। ऐसी अटकलों में खासकर बिहार में भाजपा की सहयोगी जनता दल यू के केंद्र सरकार में शामिल होने की चर्चा भी चली आ रही थी, लेकिन ऐसा लग रहा है कि जदयू का केंद्र सरकार में शामिल होना तो बिहार चुनाव की पक्की वजह है। शायद यही वजह है कि राज्यसभा में उपसभापति का चुनाव भी अभी टला ही रहेगा। 

06Sep-2020


 

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