मंगलवार, 29 सितंबर 2020

राग दरबार: सियासी मजबूरी/संकटमोचक की भूमिका

राजनीतिक दलों के लिए है सियासी मजबूरी! 

देश की सियासत में राजनीतक दलों की भूमिका किस कदर बदलती है, यह संसद में कृषि संबन्धी विधेयकों को लेक

र सामने आई। मसलन मोदी सरकार ने जिस मकसद से कृषि से जुड़े तीन अध्यादेश जारी करके उन्हें विधेयकों में बदला है, उसी मकसद से मनमोहन सरकार भी किसानों को बाजार मुहैया कराने के लिए काम करती रही है। वहीं मोदी सरकार के इन कदमों को कांग्रेस समेत विपक्ष जमकर विरोध कर रहा है तो मनमोहन सरकार के समय में भाजपा और उसके सहयोगी विपक्ष में रहते हुए इसी प्रकार विरोध करते रहे हैं, जिस प्रकार अब कांग्रेस व उसके समर्थक दल कर रहे हैं। दरअसल यूपीए शासनकाल में मनमोहन सरकार ने कृषि संबन्धी सुधारों के नाम पर इस प्रकार के प्रस्ताव पेश करने का प्रयास किया था, उसके लिए संसद में नेताओं के बयानों की सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो रही है, जिसमें भाजपा और कांग्रेस की रणनीति वहीं है जो हाल ही में संपन्न हुए मानसून सत्र में सामने आई। मुद्दा एक ही है, पर फर्क यह है कि जो यूपीए के राज में कांग्रेस बोल रही थी, वह अब मोदी सरकार में भाजपा बोल रही है। अब मोदी सरकार के खिलाफ जो कांग्रेस बोल रही है वही भाषा मनमोहन सरकार में भाजपा बोल रही थी। राजनीतिकारों की माने तो देश में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए सत्ता और विपक्ष में राजनीतिक दलों की भूमिकाएं स्वत: ही बदल जाती है और यही राजनीतिक दलों के लिए है सियासी मजबूरी! 


संकटमोच
क की भूमिका  

 संसद के मानसून सत्र के दौरान जिस प्रकार विपक्ष ने चीन विवाद समेत विभिन्न मुद्दों पर केंद्र सरकार की घेराबंदी करने का प्रयास किया, ऐसे समय में मोदी सरकार का बचाव करने में माहिर माने जाने वाले केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह अस्वस्थ्य रहे, तो उनके स्थान पर सरकार के लिए नए संकटमोचक की भूमिका में केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ मुखर होते नजर आए। संसद सत्र में विपक्ष ने जितने भी मुद्दों पर सरकार की घेराबंदी करने का प्रयास किया, उन सभी मोर्चो पर सरकार की ओर से राजनाथ आगे नजर आए। इसका कारण है कि सभी दलों के साथ अपने संबंधों और मीडिया से लेकर आम लोगों के बीच सद्भाव की वजह से राजनाथ का चेहरा सरकार को सूट कर रहा है। संसद सत्र शुरू होते ही सरकार को जब चीन के मसले पर घेरा गया तो प्रधानमंत्री के पूर्व में दिये गये बयानों को बचाव करते हुए राजनाथ ने दोनों सदनों में विपक्षी दलों के नेताओं को यह कहने पर मजबूर कर दिया कि देश की सुरक्षा के लिए सभी दल सरकार और भारतीय सेना के साथ हैं। राजनीतकारों की माने तो संसद सत्र से पहले सरकार लद्दाख की जमीनी स्थिति के बारे में सटीक जानकारी नहीं नहीं बता रही है, लेकिन संसद में सभी दलों ने राजनाथ के बयान को मोटे तौर पर स्वीकार करते हुए कम से कम चीन के मुद्दे पर अपने मुंह बंद कर लिये। इसी प्रकार संसद के मॉनसून सत्र में प्रश्न काल के मसले पर विपक्ष के विरोध को कम करने के लिए भी राजनाथ सिंह ने मोर्चा संभालकर विपक्ष की जिज्ञासा दूर की। सियासी गलियारों में तो चर्चा है कि जो आपसी समन्वय कायम करने के लिए जो काम काम संसदीय कार्य मंत्री को करना चाहिए था, उस काम को राजनाथ ने पूरा करके संकटमोचक की भूमिका निभाई। 

27Sep-2020

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