बुधवार, 29 अप्रैल 2020

राग दरबार: जहरीली नफरत


हिंदू-मुस्लिम का नैरेटिव
भारत एक ऐसा लोकतांत्रिक देश है जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है यानि सबको अपने  विचार प्रकट करने की छूट है। इसका मतलब यह भी नहीं है कि देश या समाज विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जाए। मसलन कोरोना वायरस के संकट से जूझ रहे भारत में एकजुट होकर हालातों का मुकाबला करने के बजाए इससे पहले देशभर में सीएए के विरोध में शुरु की गई सांप्रदायिक सियासत पर ब्रेक तक नहीं लग सका, बल्कि उसी माहौल को कोरोना संकट के बावजूद कोरोना से निपटने के लिए केद्र सरकार के उपायो और किसी भी विमर्श को सांप्रदायिक रूप देने का प्रयास किया जा रहा है? विशेषज्ञ भी मान रहे हैं कि देश में कोरोना के खिलाफ मोदी सरकार की जंग को कमजोर करने के प्रयासों की पृष्ठभूमि में तबलीगी जमात की घटना एससे पहले सीएए विरोधी गतिविधियों से कहं ज्यादा जहरीली नफरत फैलाने की साजिश है। हालांकि जमात के लोगों द्वारा देशभर में जहादी कोरोना के रुप में प्रसारति करने की इस साजिश के लिए पूरे मुस्लिम समुदाय को दोष नही दिया जा सकता। मोदी सरकार के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी जैसे कई जिम्मेदार लोग इस बात को कह चुके हैं, लेकिन कोरोना जैसे वैश्विक संकट के समय जमात के लोगों के बर्ताव को देखते हुए उन्हे या उनके समर्थन में खड़े किसी सियासी दल या संगठन को सियासत करने की भी इजाजत नही दी जानी चाहिए। सोशल मीडिया पर कोरोना को लेकर जमातियों के बहाने इस महामारी से लड रही सरकार के साथ एकजुट खडे होने की दुहाई देने के बावजूद मुसलमानों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाने वालों को खरी खोटी भी सुननी पड़ रही है, लेकिन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड लेकर कोरोना सांप्रदायिकता का हर फैलाने में कांग्रेस जैसे कुछ प्रमुख विपक्षी दल आदत से मजबूर नजर आ रहे हैं, जिसमें एक तरफ भारत में तबलीगी जमात के बचाव मे मुस्लिमों के इलाज में लापरवाही की अफवाहों के जरिए अंतरराष्ट्रीय कूटनीति को भी शामिल करते हुए हिंदू-मुस्लिम का नैरेटिव बनाया जा रहा है यानि फैलाई जा रही है जहरली नफरत..!
फोबिया में कांग्रेस
दुनियाभर में कोरोना वायरस के भय के बीच भारत जैसे देश की सियासत जिस प्रकार गिरगिट की तरह रंग बदलती दिख रही है, उससे यह बात पुष्ट हो जाती है कि एक सिक्के के कई पहलुओं के ईर्दगिर्द घूमती देश की सियासत महज अपने फायदे देखती है, भले ही देश या जनता गर्त में चले जाए। वैश्विक कोरोना संकट में केंद्र की मोदी सरकार ने जिस तरह से एक के बाद एक उपाय करके कोराना वायरस से लड़ने की रणनीति अपनाई है उसका दुनियाभर के देश लोहा मान रहें हैं, लेकिन कांग्रेस व अन्य विपक्षी दल उसमें भी खामिया तलाशने में व्यस्त हैं। शायद इसीलिए कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर जो सुझाव दिए थे,उनके कई अच्छे सुझावों को केद्र सरकार पहले ही लागू कर चुकी थी। सोनिया ने सरकार को कोरोना के चिालाफ चल रही जंग में सरकार का समर्थन करने प्रतिबद्धता दोहराई, लेकिन दूसरी और केद्र सरकार का नेतृत्व करने वाली भाजपा पर नफरत का वायरस फैलाने का आरोप लगाते हुए यह भी अहसास कराया है कि कोरोना संकट में भी पीएम मोदी की विश्व में लोकप्रियता तेजी से बढ़ने से कांग्रेस की सियासत पर नकारात्मक असर हो रहा है। राजनीतिकारों की माने तो कांग्रेस की यही टीस है कि मोदी को कमजोर करने की हर नीति उल्टे उन्ही की पार्टी पर भारी पड़ रही है। जिस प्रकार कार्यसमिति में सोनिया ने कोरोना संकट में सरकार के साथ चलते हुए समर्थन किया वहीं सरकार के उपायों पर सवाल खडे करते हुए जिस प्रकार के आरोप लगाए उससे ऐसा कतई नहीं लगता कि कांग्रेस जैसी पार्टी कोरोना-युद्ध में भारत की जनता के साथ हैं। मसलन कांग्रेस कोरोना से लड़ने की बजाय सरकार से ज्यादा लड़ने पर उतारु हो गई हैं। सोशल मीडिया पर सोनिया के ऐसे बयान पर ऐसी टिप्पणियां सार्वजनिक हो रही हैं कि भाजपा पर सांप्रदायिकता का आरोप लगाकर सोनिया गांधी ने अपना और अपनी पार्टी का ही नुकसान किया है। देश के बहुसंख्यक लोग और समझदार मुसलमान लोग कांग्रेस के इस रवैए पर हैरान हैं, जिसमें यहां तक लिख गया कि क्या सोनिया की कांग्रेस पार्टी इतनी निराशा में है कि वह मजहबी राजनीति की पटरी पर आ टिकी है?
-ओ.पी.पाल
26Apr-2020

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