शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

अगले दो साल में देश को 'टोल फ्री' बनाने की तैयारी

खत्म होंगे तमाम टोल प्लाजा, लागू की जाएगी जीपीएस आधारित टोल संग्रह प्रणाली केंद्र सरकार ने प्रौद्योगिक टोल संग्रह के तहत जीपीएस प्रणाली को दी मंजूरी ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। देश में राष्ट्रीय राजमार्गों और राज्य मार्गो पर टोल प्लाजाओं पर वाहनों की निर्बाध वाहनों की आवाजाही के मकसद से नई तकनीकी के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिसमें फास्टैग टोल प्रणाली के बाद अब केंद्र सरकार ने जीपीएस-आधारित टोल संग्रह प्रणाली को अंतिम रूप दिया है। सरकार का अगले दो साल में इस प्रणाली के लागू कर भारत को टोल फ्री करने की योजना है, जिसके साथ ही देशभर के तमाम टोल प्लाजा खत्म कर दिये जाएंगे। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने गुरुवार को इस प्रणाली की मंजूरी की पुष्टि करते हुए कहा है कि सरकार ने देश भर में वाहनों की निर्बाध आवाजाही सुनिश्चित करने के लिए जीपीएस-आधारित (ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम) प्रौद्योगिकी टोल संग्रह को अंतिम रूप देने के बाद मंजूरी दे दी गई है। उन्होंने कहा कि इस प्रणाली को लागू करके अगले दो साल में भारत को 'टोल फ्री' बनाने का लक्ष्य रखा गया है यानि तमाम टोल प्लाजा खत्म कर दिये जाएंगे। गडकरी ने इस योजना के लागू होने से वर्चुअल तरीके से टोल की राशि वाहनों की आवाजाही के आधार पर सीधे उनके बैंक खाते से काट ली जाएगी। हालांकि अब सभी वाणिज्यिक वाहन वाहन ट्रैकिंग सिस्टम के साथ आ रहे हैं, सरकार पुराने वाहनों में जीपीएस तकनीक स्थापित करने के लिए कुछ योजना लेकर आएगी। उन्होने यह भी उम्मीद जताई कि जहां मौजूदा प्रणाली में मार्च 2021 तक टोल संग्रह 34,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है, वहीं टोल संग्रह के लिए जीपीएस तकनीक का इस्तेमाल होने से अगले पांच वर्षों में टोल वसूली की आय 1.34 लाख करोड़ रुपये तक होगी। --कई तकनीकी पर हुआ था विचार-- एनएचएआई के एक अधिकारी ने इस प्रणाली को लेकर जानकारी दी कि मोदी सरकार ने जनवरी 2018 को देश में ई-टोल संग्रह यानि फास्टैग प्रणाली की परियोजना को लागू किया, लेकिन फास्टैग खरीदने और उसे रिचार्ज कराने के झंझट को लेकर ट्रांस्पोर्टरों ने विरोध किया था। इसके बाद केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी के साथ भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण ने पांच नई तकनीकी प्रणालियों पर विचार किया, जिसमें अन्य देशों की तर्ज पर जीपीएस आधारित यानि ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम प्रौद्योगिकी टोल संग्रह को बेहतर मानते हुए फिलहाल जीपीएस आधारित टोल संग्रह प्रणाली के परीक्षण के लिए ‘पायलट परियोजना’ शुरू की, जिसके प्रति काफी उत्साह देखा जा रहा है और उसी आधार पर इस प्रणाली को केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है। इस प्रणाली के जरिए टोल संग्रह करने का काम कम्प्यूटर पर वर्चुअल तरीके से कंट्रोल रूम में बैठ कर किया जा सकेगा और वाहनों की टोल राशि ऑटोमैटिक तरीके उतनी ही कटेगी, जितना उसने सफर तय किया है। --जीपीएस प्रणाली की विशेषता-- केंद्रीय सड़क एवं परिवहन मंत्रालय के एक अधिकारी की माने तो जीपीएस-आधारित प्रणाली की सबसे खास बात यह है कि वाहन चालक को केवल उतना टोल का भुगतान करना पड़ेगा, जितना उसने सफर किया होगा यानि न एक पैसा ज्यादा और न एक पैसा कम। देश में फास्टैग के जरिए अभी इलेक्ट्रॉनिक टोलिंग में कम से कम 60 किमी का टोल देना पड़ रहा है, क्योंकि दो टोल के बीच अमूमन इतनी ही दूरी होती है। इसमें वाहन में आरएफआइडी तकनीक पर आधारित फास्टैग लगाना पड़ता है जो अगले टोल तक का टोल काट लेता है, चाहे आपको आधी दूरी तक ही जाना हो। इसलिए जीपीएस आधारित ई-टोलिंग प्रणाली के बाद जहां वाहन चालकों को लाभ होगा, वहीं एनएचएआई को टोल प्लाजा बनाने पर होने वाले खर्च की बचत हो सकेगी। एनएचएआई के अनुसार थ ही टोल बनाने और चलाने पर आने वाला एनएचएआइ का काफी खर्चा बचेगा। 18Dec-2020

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