शुक्रवार, 25 दिसंबर 2020

देश में जल के साथ कीचड़ प्रबंधन पर भी होगा फोकस

एनएमसीजी का जैव-अर्थव्यवस्था शोध संस्थान नार्वे के साथ करार हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली। देश में नदियों के संरक्षण की दिशा में नमामि गंगे मिशन को दिशा देने वाले राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के थिंक टैंक सी-गंगा के साथ जैव-अर्थव्यवस्था शोध संस्थान नार्वे के साथ एक करार हुआ है। इस करार के तहत भारत में कीचड़ प्रबंधन के विकास के लिए दोनों संगठन मिलकर काम करेंगे। भारत और नार्वे के शोध संस्थान के साथ भारत में कीचड़ प्रबंधन के विकास हेतु यहां चल रहे वर्चुअल 5वें भारत जल प्रभाव शिखर सम्मेलन के दौरान किये गये, जिसमें भारत समेत दुनिया भर के विशेषज्ञ जल संरक्षण और विकास के मुद्दे पर मंथन कर रहे हैं। इसी सम्मेलन में नॉर्वे के विशेषज्ञों ने भी ‘अर्थ गंगा-नदी संरक्षण और विकास’ पर अपने अनुभव साझा किये और तकनीकी पद्धतियों की जानकारी दी। इसी सम्मेलन में कीचड़ प्रबंधन पर आयोजित एक सत्र में नॉर्वे में भारतीय राजदूत डॉक्टर बी. बालाशंकर ने कहा कि हमें नॉर्वे में अपनाई जा रही अच्छी पद्धतियों से लाभान्वित होने की आवश्यकता है और यह देखने की आवश्यकता है कि कैसे स्थानीय मांग की पूर्ति के लिए हम उन्हें अपना सकते हैं। उन्होंने एनएमसीजी और सी-गंगा को अपना समर्थन व्यक्त किया। भारत में नॉर्वे की राजदूत सुश्री करीना एब्सजॉर्नसेन ने कहा कि नॉर्वे, भारत के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने का इच्छुक है, विशेष रूप से हम जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण के संबंध में सहयोग भारत में साथ मिलकर काम करने का इरादा स्पष्ट है। इसी दौरान नार्वे के शोध वैज्ञानिक डॉ. ओला ने मंच से भारत में अपशिष्ट जल प्रबंधन यानि कीचड़ प्रबंधन के विकास हेतु संयुक्त रूप से नार्वे के जैव अर्थव्यवस्था शोध संस्थान और सी-गंगा के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। इस समझौते को लेकर जल शक्ति मंत्रालय में सचिव यूपी सिंह ने भारत में मौजूद समस्याओं को रेखांकित करते हुए कहा कि भारत में पानी की कमी नहीं है, परंतु हमें जल प्रबंधन को बेहतर करने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। --दिल्ली में नार्वे का केंद्र शुरू-- इसी दौरान नॉर्वे की नवाचार केंद्र के प्रमुख ओले हेनास ने भारत के साथ काम करने के प्रति अपनी रुचि जाहिर करते हुए दिल्ली में एक केंद्र भी आरंभ कर दिया है। जल शक्ति मंत्रालय में सचिव यूपी सिंह ने कीचड़ प्रबंधन यानि अपशिष्ट जल प्रबंधन पर व्याख्या देते हुए कहा कि सी-गंगा एवं नॉर्वे की संस्था के साथ मिलकर आगे व्यवसायी माड्यूल विकसित करने होंगे। एनएमसीजी के महानिदेशक राजीव रंजन मिश्रा ने वादा किया कि वह नार्वे की तकनीकि का लाभ लेने हेतु भारत के जल क्षेत्र में संयुक्त परियोजनाएं शुरू करने के लिए नार्वे की तकनीकि कंपनियों और भारत के व्यापार जगत के बीच विस्तृत विचार विमर्श का प्रबंध करेंगे। गौरतलब है कि भारत जल सम्मेलन में जल संरक्षण, जल सुरक्षा और नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए भारत समेत दुनियाभर के विभिन्न देशों से विशेषज्ञ और शोधार्थी सम्मिलित हो रहे हैं। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और सेंटर फॉर गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट (सी-गंगा) इस सम्मेलन के सह-आयोजक हैं। ---नदियों के संरक्षण समकालिक कृषि-- सम्मेलन के चौथे दिन भी विचार विमर्श “नदियों के संरक्षण समकालिक कृषि” पर ही मुख्यतः केन्द्रित रहा। कृषि विभाग में अपर सचिव सुश्री अल्का भार्गव ने कृषि में अपनाई जाने वाली पद्धतियों के स्थानीय जल श्रोतों पर प्रभाव के बारे में व्याख्या करते हुए कहा कि “पारंपरिक प्रज्ञता और आधुनिक विज्ञान को साथ लाने की आवश्यकता है ताकि ‘नदियों का संरक्षण समकालिक कृषि’ सुनिश्चित हो सके। उन्होंने बताया कि किस तरह से किसान उत्पादक संगठनों के गठन से किसानों की मोल-भाव करने की क्षमता में वृद्धि हुई है। नीति आयोग में वरिष्ठ सलाहकार (कृषि) सुश्री नीलम पटेल ने ज़ोर दिया कि किसानों तक उपयोगी सूचनाएँ पहुंचाने और उन्हें प्रशिक्षण देने की आवश्यकता है ताकि पर्यावरण अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाई जा सकें। किसान उत्पादक संगठनों को प्रोत्साहित किए जाने की भी आवश्यकता है। उन्होंने डिजिटल तकनीकि और कृषि पर्यटन को भी बढ़ावा दिये जाने के बारे में भी बात की। कृषि पर्यटन लोगों, विशेषकर बच्चों में किसानों के कठिन परिश्रम का सम्मान करने का भाव पैदा करने में मददगार हो सकता है। एनएमसीजी के निदेशक श्री मिश्रा ने कहा कि कृषि उन प्रमुख गतिविधियों में से एक है, जिसके लिए नदियों से जल दोहन किया जाता है। उन्होंने कहा कि हम जल के प्रभावी उपयोग पर किसानों को शिक्षित करने के लिए उनके साथ काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कृषि मंत्रालय की साझेदारी से एनएमसीजी जैविक खेती, प्राकृतिक खेती और शून्य लागत वाली खेती को बढ़ाव देने पर भी काम कर रहा है। हाल के वर्षों में जैविक खेती में कई गुना की वृद्धि हुई है। उत्तराखंड में पहले के 1000 हेक्टेयर के मुक़ाबले इस वर्ष 50,000 हेक्टेयर में जैविक खेती की गई है। इसी तरह से उत्तर प्रदेश में भी जैविक खेती का दायरा बढ़ते हुए 35,000 हेक्टेयर में पहुँच गया है। 16Dec-2020

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