गुरुवार, 8 अक्तूबर 2020

राग दरबार: नहीं बजेगी बांसुरी/कांग्रेस की टीस

राग दरबार नहीं बजेगी बांसुरी देश में प्रचलित ‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी’ वाली कहावत अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचे के मामले में बरी हुए आरोपियों को लेकर सटीक बैठती है।शामिल नेताओं द्वारा आरोप स्वीकार करने के बावजूद सभी को बरी करने के मामले पर सटीक बैठती है। मसलन बाबरी विध्वंस के सभी आरोपियों का बरी होना संयोग है या कोई प्रयोग? जबकि 28 साल से चल रहे इस मामले में शामिल आरोपियों में उमा भारती एक बार नहीं कई बार कह चुकी है कि यह ढांचा एक योजनाबद्ध तरीके से ढाया गया है, जिसके लिए वह किसी भी सजा के लिए तैयार है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि इस मामले में अदालत से बरी हुए इन नेताओं को इस बात का मलाल है कि यदि उन्हें भले ही कुछ माह की सजा होती तो उनका नाम अयोध्या के इतिहास की विरासत में दर्ज हो जाता, लेकिन शायद भगवान राम को ऐसा मंजूर नहीं था और ढांचा गिराए जाने और रामलला की जन्मभूमि को सपाट बनाने का श्रेय निराकार कारसेवकों को जाएगा, जबकि सुप्रीम कोर्ट से मुकदमा जीतने से लेकर शिलान्यास तक का श्रेय नरेंद्र मोदी को जाएगा। मंदिर आंदोलन से जुड़े किसी भी चेहरे का शिलान्यास की पूजा में मौजूद नहीं रहना भी इस बात का संकेत है कि मंदिर निर्माण का पूरा आंदोलन अब सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम से दर्ज होगा। ऐसे में सवाल है कि अब अयोध्या आंदोलन की विरासत का क्या होगा? यह आंदोलन इतिहास में किस रूप में दर्ज होगा? इसका जवाब यही हो सकता है कि अब अयोध्या या मंदिर निर्माण का मुद्दा सियासत के लिए बचा ही नहीं है और सीबीआई की विशेष अदालत के फैसले के बाद अब इस आंदोलन की स्मृतियां धीरे धीरे खत्म हो जाएंगी। कांग्रेस का विरोध या टीस राष्ट्रपति की मुहर लगते ही संसद में पारित कृषि कानून लागू हो गये हैं, जिसमें सरकार और विपक्ष खासकर कांग्रेस तर्क-वितर्क के साथ आमने सामने है। कांग्रेस इन कानूनों को किसान विरोधी करार दे रही है, जबकि की सत्ताधारी दल भाजपा इसे किसानों की आर्थिक दशा और कृषि क्षेत्र को मजबूती प्रदन करने की दुहाई दे रही है। भाजपानीत कांग्रेस ने संसद में विपक्ष के विरोध के बावजूद कृषि संबन्धी तीनों कानूनों को पारित करा लिया। हालांकि सरकार के पास शायद इन कृषि बिलों के समर्थन में कहने को कुछ नहीं है? हालांकि सरकार के मंत्री और भाजपा के नेता जहां भी किसान कानून का बचाव करते हैं वहां यह भी कहते नजर आ रहे हैं कि कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इस कानून का वादा किया था, जिसे भाजपानीत सरकार को पूरा करना पड़ा है। राजनीतिकारों की माने तो सरकार और सत्तापक्ष के इन कानूनों को लेकर किसानों के नाम पर भाजपा व कांग्रेस के बीच यह नूराकुश्ती है, जिसमें यदि यह कहा जाए कि कांग्रेस के इन कृषि बिलों के पीछे विरोध करने का कारण सके श्रेय लेने का मामला है, जो भाजपा को मिल गया शायद इसी का मलाल कांग्रेस को विरोध करने के लिए मजबूर कर रहा है। ऐसी चर्चा सियासी गलियारों और सोशल मीडिया पर वायरल वीडियों भी पुष्टि कर रही हैं, कि कांग्रेस किसानों के लिए ऐसे कानून लाने का प्रयास करती रही है, जिसमें फर्क केवल इतना है कि कांग्रेस के शासनकाल में ऐसी घोषण फाइलों में सिमट गई और भाजपानीत सरकार ने उन्हें सार्वजनिक रूप से कानूनी अमलीजामा पहना दिया। इसलिए कांग्रेस की विरोध करने सियासत में कहीं न कहीं छिपी है श्रेय न मिलने की टीस..! 04Oct-2020

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