रविवार, 18 अक्तूबर 2020

देश के आदिवासी उद्यमियों को मिलेगा शहरी बाजार

छत्तीसगढ़ लघु वन उपज फेडरेशन व आईआईटी कानपुर ने की ई-लांच हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली। देश के आदिवासी उद्यमियों यानि आदिवासियों के लिए एक तकनीकी पहल की शुरुआत की गई है। आदिवासी उद्यमियों और शहरी बाजार की खाई को पाटने के मकसद से इन तकनीक को जनजातीय कार्य मंत्रालय के ट्राइफेड द्वारा छत्तीसगढ़ लघु वन उपज फेडरेशन और आईआईटी कानपुर के साथ मिलकर ई-लॉन्च किया गया है। केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने बताया कि मंगलवार को उद्यमिता कौशल विकास कार्यक्रम के तहत ट्राइफेड ने लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय के साथ मिलकर 'आदिवासियों के लिए तकनीकी' ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से कार्यक्रम शुरू किया गया है, जिसका उद्देश्य वन धन विकास केंद्रों (वीडीवीके) के माध्यम से संचालित होने वाले स्वयं सहायता समूहों की सहायता से उद्यमिता विकास, सॉफ्ट स्किल, सूचना प्रौद्योगिकी और व्यावसायिक विकास पर ध्यान देने के साथ-साथ आदिवासियों का समग्र विकास करना है। इस कार्यक्रम में ट्राइफेड के प्रबंध निदेशक प्रवीर कृष्ण, छत्तीसगढ़ राज्य लघु वन उपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ के प्रबंध निदेशक संजय शुक्ला, आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर-इन-चार्ज इनक्यूबेटर प्रो. अमिताभ बंद्योपाध्याय, आईआईटी कानपुर में प्रथम मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ. निखिल अग्रवाल और छत्तीसगढ़ राज्य लघु वन उपज (व्यापार एवं विकास) सहकारी संघ तथा आईआईटी कानपुर के अधिकारी शामिल हुए। इसके अलावा प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल लाभार्थियों ने भी इसमें हिस्सा लिया। तत्काल शुरू हुआ छत्तीसगढ़ में प्रशिक्षण मंत्रालय के अनुसार इस तकनीकी पहल के तहत 13 अक्टूबर से 7 नवंबर 2020 तक 6 सप्ताह के प्रशिक्षण के दौरान छत्तीसगढ़ राज्य के सभी जिलों में वन धन लाभार्थियों को सूक्ष्म उद्यम निर्माण, प्रबंधन और कामकाज के विभिन्न पहलुओं पर प्रशिक्षित करना शुरू कर दिया गया है। यह कार्यक्रम 30 दिनों की अवधि में पूरा होगा और इसमें 120 सत्र आयोजित होंगे। इसका प्रशिक्षण मॉड्यूल आईआईटी, कानपुर द्वारा विकसित किया गया है। इसमें ऑनलाइन व्याख्यान तथा प्रशिक्षण जैसी विभिन्न प्रणालियों के माध्यम से चरणबद्ध तरीके से ऑनलाइन गतिविधियों का प्रसार लाभार्थियों के बीच किया जाएगा और क्लास रूम, व्यावहारिक ज्ञान, ऑनसाइट दौरा करने और जगहों को दिखाने की गतिविधियों को भी धीरे-धीरे आगे बढ़ाया जायेगा। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आदिवासियों के पारंपरिक ज्ञान और कौशल का दोहन करना तथा वन धन विकास केंद्रों (वीडीवीके) की स्थापना करके बाजार पर आधारित उद्यम मॉडल के माध्यम से उनकी आय को बढ़ाने के लिए ब्रांडिंग, पैकेजिंग और विपणन कौशल को बेहतर करना है। ट्राईफेड ने अब तक 21 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में 1,243 वनधन केंद्रों को मंजूरी दी है, जिसमें 3.68 लाख आदिवासी शामिल हुए हैं। चालू वित्त वर्ष के दौरान ट्राइफेड की पहल 'वोकल फॉर लोकल गो ट्राइबल' के तहत इस योजना का और अधिक विस्तार किया जा रहा है। ट्राइफेड ने 27 राज्यों के 307 जिलों में 3000 वन धन केंद्र स्थापित करने की परिकल्पना की है। आदिवासियों के लिए तकनीकी पहल संजय शुक्ला ने छत्तीसगढ़ में एमएफपी कार्यक्रम की अभूतपूर्व सफलता के बारे में चर्चा की और बताया कि अपने सराहनीय प्रयासों के साथ वह एक विजेता के रूप में कैसे उभरे तथा इस सफलता को कैसे आगे ले जा रहे हैं, इसी क्रम में “आदिवासियों के लिए तकनीकी पहल” अगला तार्किक कदम है। पिछले कुछ महीनों में, छत्तीसगढ़ सरकार ने 46,857 मीट्रिक टन लघु वन उपज की खरीद की है, जिसकी कीमत 106.53 करोड़ रुपये है। छत्तीसगढ़ सरकार ने एमएफपी योजना के लिए एमएसपी के कार्यान्वयन में अपनी पूरी शक्ति लगा दी है, खरीद की व्यवस्था तथा प्रक्रिया सभी जिलों में अच्छी तरह से प्रभावी हैं। छत्तीसगढ़ में 866 खरीद केंद्र हैं और राज्य सरकार ने 139 वनधन विकास केंद्रों से वनधन एसएचजी के अपने विशाल नेटवर्क का प्रभावी ढंग से लाभ उठाया है। वन, राजस्व और वनधन केंद्र के अधिकारियों के सचल दस्तों द्वारा घर-घर जाकर इन उच्च खरीद मूल्यों वाली लघु वन उपज के संग्रह जैसे नवाचारों को भी अपनाया गया है।

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