बुधवार, 14 अक्तूबर 2020

अब महिला अपराधों में लापरवाह अधिकारियों की खैर नहीं!

महिला अपराध के हर मामले की रिपोर्ट दर्ज करना अनिवार्य: गृह मंत्रालय सभी राज्यों को जारी परामर्श में जांच दो माह में पूरा करने की हिदायत
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली। यूपी के हाथरस कांड के बाद केंद्र सरकार ने महिला सुरक्षा को गंभीरता से लेते हुए सभी राज्यों को एक नया परामर्श जारी किया है। इस परामर्श में महिला संबन्धी अपराध का मुकदमा दर्ज करना अनिवार्य होगा और मामले की जांच को दो माह में पूरा करने की सलाह दी गई है। गृह मंत्रालय ने कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए यह भी स्पष्ट किया है कि महिला अपराधों के मामलों में लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई होगी। केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा शनिवार को सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों जारी परामर्श में स्पष्ट किया गया है कि महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में पुलिस सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करें। जिसमें शासन के आदेश के अनुसार पुलिस के लिए आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 154 की धारा-उप (1) के तहत संज्ञेय अपराध के मामले में अब एफआईआर दर्ज करना अनिवार्य होगा। परामर्श के मुताबिक कानून के तहत बलात्कार या यौन उत्पीड़न के मामले में पुलिस को जीरो एफआईआर दर्ज करने का अधिकार प्राप्त है, भले ही अपराध उनके थाना क्षेत्र में न हुआ हो। गृह मंत्रालय ने कहा कि सख्त कानूनी प्रावधानों और भरोसा बहाल करने के अन्य कदम उठाए जाने के बावजूद अगर पुलिस अनिवार्य प्रक्रिया का अनुपालन करने में असफल होती है तो देश की फौजदारी न्याय प्रणाली में उचित न्याय देने में बाधा उत्पन्न होती है। राज्यों को जारी परमार्श में कहा गया कि ऐसी खामी का पता चलने पर उसकी जांच कर और तत्काल संबंधित जिम्मेदार अधिकारी के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसे में परामर्श में स्मरण कराया गया है कि भारतीय दंड संहिता 1860 (आईपीसी) की धारा 166 ए (सी) एक सरकारी अधिकारी को धारा 326 ए, धारा 326 बी, धारा 354, धारा 354 बी, धारा 370, धारा 370 के तहत संज्ञेय अपराध के संबंध में एफआईआर दर्ज करने में विफलता के लिए दंड का प्रावधान करती है। गृह मंत्रालय ने सीआरपीसी के प्रावधानों का हवाला देते हुए जारी परामर्श ने इस बात को भी स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों पर भी सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी। इसके लिए कहा गया कि आईपीसी की धारा 166 ए(सी) के तहत अगर एफआईआर दर्ज नहीं की जाती है, तो संबन्धित अधिकारी को सजा का भी प्रावधान है। परामर्श में खास प्रावधान मंत्रालय के परामर्श के अनुसार सीआरपीसी की धारा 173 में दुष्कर्म से जुड़े किसी भी मामले की जांच दो महीने के अंदर पूरी करने का प्रावधान है। अपराध में जांच की प्रगति जानने के लिए गृह मंत्रालय की ओर से ऑनलाइन पोर्टल बनाया है। वहीं सीआरपीसी के सेक्‍शन 164-ए के अनुसार दुष्कर्म के किसी भी मामले की सूचना मिलने के 24 घंटे के अंदर पीड़िता की सहमति से एक रजिस्‍टर्ड मेडिकल प्रैक्टिशनर मेडिकल जांच करेगा। गृह मंत्रालय ने परामर्श में कहा है कि दुष्कर्म, यौन शोषण व हत्या जैसे संगीन अपराध होने पर फोरेंसिंक साइंस सर्विसिज डायरेक्‍टोरेट ने सबूत इकट्ठा करने गाइडलाइन बनाई है। ऐसे मामलों में फॉरेंसिक सबूत इकट्ठा करने के लिए गाइडलाइन का पालन करना अनिवार्य होगा। वहीं परामर्श में कहा गया कि इंडियन एविडेंस एक्‍ट की धारा 32(1) के तहत मृत व्‍यक्ति का बयान जांच में अहम तथ्‍य होगा। केंद्र सरकार ने राज्यों से स्पष्ट कहा कि कानूनी प्रावधानों का सही तरीके से पालन किया जाए तो महिलाओं को न्याय दिलाने में परेशानी नहीं होगी, इसलिए अधिकारियों खासकर पुलिस को ऐसे मामलों को गंभीरता से लेने की जरुरत है। 11Oct-2020

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