कन्फ्यूज
सियासत
देश में कोरोना महामारी के खिलाफ जब पूरा
देश संकट से निपटने के लिए मुकाबला कर रहा है, तो वहीं कांग्रेस ऐसी कन्फ्यूज
सियासत करने में जुटी है, जिसमें वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की
देश की अर्थव्यवस्था या अन्य उपायों का लेकर घोषणा होते हड़बड़ाते हुए सरकार को
घेरते हुए प्रतिक्रियाओं का अंबार लगाती दिख रही है। हाल ही में पीएम मोदी देश के
नाम संदेश में जैसे ही 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की गई तो उसके
तुरंत बाद ही प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस पार्टी के नेताओं का
प्रतिक्रियाओं का सिलसिला शुरू हो गया। इसमें जहां कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आनंद
शर्मा, राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत के अलावा गुजरात के कांग्रेस नेता
अर्जुन मोडवाडिया जैसे नेताओं ने पीएम मोदी द्वारा घोषित इस बड़े आर्थिक पैकेज की
तारीफ तक कर डाली। इन प्रतिक्रियाओं पर जब सोशल मीडिया पर टिप्पणियां शुरू हुई तो
कांग्रेस के कई प्रवक्ता और वरिष्ठ नेता हाईकमान यानि राहुल गांधी के ट्रवीटर
हैंडल देखने में इसलिए जुटे रहे कि उसी के हिसाब से इस मामले पर उसी हिसाब से
प्रतिक्रिया देने के आदेश थे। ऐसे में जिन नेताओं ने आननफानन में पीएम मोदी की
तारीफ करते हुए अपनी प्रतिक्रिया जाहिर कर दी, अब उनके सामने अपने आपको डैमेज कंट्रोल करने की चुनौती खड़ी नजर आई, क्योंकि वे सरकार की
तारीफ में बयान देकर फंस चुके थे। में जुट गये। कांग्रेस के विश्वसनीय सूत्रों की
माने तो इन नेताओं को पार्टी हाईकमान की नाराजगी भी झेलनी पड़ी, जो हडबडी में
प्रतिक्रिया दे गये। पार्टी के हाईकामन की भी प्रतिक्रिया ऐसी ही असमंजस यानि
कन्फ्यूजन वाली आई जिसमें कहा गया पीएम मोदी ने पैकेज में प्रवासी मजदूरों का
जिक्र नहीं किया, जबकि मोदी कह चुके थे पैकेज के बारे में विस्तार से वित्तमंत्री
द्वारा ऐलान किया जाएगा। सियासी गलियारों में कांग्रेस की हड़बडी को लेकर कहा जा
रहा है कि वह कोरोना से कम मजदूरों को लेकर अपनी सियासत चमकाने में ज्यादा मुखर हो
रही है, जो अपने आपको मजदूरों की हितैषी साबित करने में जुटी है। कांग्रेस
की इस सियासत पर केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तो
पलटवार करते हुए यहां तक टिप्पणी की है कि कांग्रेस ऐसी गंदी
सियासत करने के बजाए प्रवासी मजदूरों के प्रति संवेदनशील
होकर अपने कांग्रेस शासित राज्यों को अपनी जिम्मेदारी निभाने का निर्देश
देना चाहिए।
दर्द की दवा
देश में एक शायरी के रूप में प्रचलित गीत ‘जिसने दर्द दिया है, दवा भी वहीं देगा’ जम्मू-कश्मीर में
इंटरनेट की 4जी सेवा शुरू करने की मांग वाली याचिका पर की गई सुनवाई के बाद दिये गये आदेश पर सटीक बैठता है। मसलन मामले की सुनवाई में कहा गया कि केंद्रीय
संचार सचिव और जम्मू कश्मीर के शीर्ष अधिकारी को शामिल करते
हुए केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में तत्काल एक कमेटी बनाई जाए।
यह कमेटी इस बात पर विचार करेगी कि जम्मू कश्मीर में इंटरनेट की 4जी सेवा नहीं चलाने का यह
फैसला किसका?
यानि राष्ट्रपति शासन संभाल रहे प्रशासन का है? या केंद्र का। यह सब जानते हैं कि
राष्ट्रपति शासन के दौरान किसी भी राज्य प्रशासन राज्यपाल और केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन काम करता है। ऐसे में जाहिर सी बात
है कि इस इंटरनेट के दर्द का इलाज भी उन्हीं के पास मिलेगा? जानकारों की माने तो
यूटी में इंटरनेट सेवा चालू न करने का फैसला प्रशासन ने केंद्रीय गृह
मंत्रालय के निर्देश पर ही किया होगा। मसलन अदालत ने यह आदेश देकर साफ कर
दिया कि राज्य में इंटरनेट सेवा बहाल करने रास्ता यह कमेटी ही तय करेगी। सीधे
शब्दों में कहा जाए तो इस अदालती आदेश में यह जिम्मेदारी उन्हीं को सौंपी गई
जिन्होंने राज्य के हालातों को सुधारने के लिए इंटरनेट सेवा शुरू न करने का निर्णय
लिया है, तो यह माना जाए कि अभी जम्मू-कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवा बहाल होने वाली
नहीं है, क्योंकि इंटरनेट रूपी दर्द का इलाज गृह मंत्रालय की मंजूरी पर जम्मू कश्मीर प्रशासन को ही करना है, जिन्होंने अपना फैसला पहले ही
लागू किया हुआ है।
17May-2020
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