गुरुवार, 7 मई 2020

राग दरबार: कोरोना जंग का भ्रम


पैर पकड़ा तो उसे खंभा
देश में कोरोना संकट के कारण जारी लॉकडाउन के बीच केंद्र सरकार के दिशा निर्देशों को लेकर आम लोगों में ही नहीं, बडे नेताओं और नौकरशाहों में भी भ्रम की स्थिति पैदा कर रहे हैं। दरअसल ऐसे संकट में पीएम मोदी या अन्य केंद्रीय मंत्री अथवा केंद्रीय नौकरशाह राज्यों के मुख्यमंत्रियों और अधिकारियों से वीडियो कांफ्रेस के जरिए बैठक करते हैं। इसके बावजूद ऐसी बैठकों या फिर केंद्रीय गृह मंत्रालय से लॉकडाउन के दौरान छूट देने के जारी दिशानिर्देशों को लेकर चर्चा के बावजूद दिशानिर्देशों या चर्चाओं के इस भ्रम के कारण ज्यादातर गृह मंत्रालय संशोधित आदेश देकर सरल भाषा में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ रहा है। मसलन जब गृहमंत्रालय ने लॉकडाउन के दौरान गैरजरूरी सामानों की बिक्री के बारे में एक अधिसूचना छूट का ऐलान किया तो अगले दिन ही नाई और अन्य सामानों की दुकाने खुल गई तो पंजाब सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने ट्विट करके तंज कसते हुए कहा कि कोई सरल भाषा में इसका मतलब समझा दें तो माने.. इसके बाद गृह मंत्रालय को ऐसे आदेश जारी कर स्पष्ट करना पड़ा कि सेवा देने के नहीं बिक्री की दुकानों को छूट दी गई है। यही नहीं पिछले सोमवार को पीएम मोदी ने मुख्यमंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेस के जरिए घंटो बैठक करके चर्चा की, लेकिन आम लोग तो क्या राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों को भी बैठक का मतलब समझ नहीं आए और पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री का अलग ही बयान सामने आया, जिसके बाद खुद पीएमओ को एक बयान जारी करना पड़ा। पुडुचेरी के सीएम के ऐसे भ्रमित बयान को लेकर सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी में पीएम के साथ हुई बैठक की व्याख्या अंधो के हाथी की तरह की गई। मसलन जिस तरह एक अंधे ने हाथी की पूंछ पकडी तो कहा कि यह रस्सी है और ने पैर पकड़ा तो उसे खंभा बता दिया जैसी कहावते सामने आ रही हैं।
घर वापसी पर भी डर
दुनियाभर में कोरोना वायरस एक ऐसा फोबिया बन रहा है, जिसमें अपने घर वापसी जाने पर भी कोरोना का डर सता रहा है। दरअसल देशभर में लॉकडाउन के कारण फंसे प्रवासी श्रमिकों, छात्रों, पर्यटकों और अन्य लोगों को केंद्र सरकार ने घर जाने की शर्तो के साथ छूट दे दी है, लेकिन इसके बावजूद जिस प्रकार ऐसे लोगों को कई जांच और शर्तो से गुजरना पड़ेगा उसका डर भी जहन में घुसा हुआ है। कोरोना के प्रकोप के कारण परिवहन व्यवस्था के तहत बस या ट्रेन में सवार होने से पहले उनकी जांच होना तय है, इस जांच ऐसे प्रवासियों को किसी कोरोना फोबिया से कम नहीं है। यदि दुर्भाग्यवश कोरोना पोजिटिव पाया गया तो उसके लिए तो वह जांच जीवन-मरण का सवाल बन जाएगी, लेकिन बाकी भी अपने घर जाने से पहले 14 दिन तक राज्यों में बनाए गये केंद्रों में रहेंगे, जिसके बाद उन्हें अपने घर या गांव में जाते ही अपने भी बेगाने नजर आएगे, जो उसे संदेह की नजर से ही देखता नजर आएगा, इसमें कोई संदेह नहीं हैं। हालात ही ऐसे हैं जिसमें अपने घरो से बाहर लॉकडाउन के कारण फंसों को अपने घरो पर जाने की इच्छा ही नहीं, अफवाह फैलते ही रेलवे स्टेशनों या बस अड्डो पर कोरोना की परवाह किये बिना उमडते देखे गये हैं। शायद इसलिए ही एक व्यवस्था के तहत केंद्र सरकार ने उनकी घर वापसी कराने के लिए अनुमति दी है, जिसमें घर वापसी करनी है तो लॉकडाउन की शर्तो और सरकार के दिशानिर्देशों की नाकेबंदी का सामना तो करना ही पड़ेगा, यही वह पल होगा, जो घर वापसी पर भी खत्म नहीं होगा कोराना का डर!
बदल गया सबकुछ
दुनियाभर में कोरोना वायरस के कहर से जिंदगी ऐसी थमी, कि खासकर भारत की ऐतिहासिक प्राचीन संस्कृति और संस्कार भी कोरोना से संक्रमित नजर रही है। कोरोना के इस कहर ऐसे हालात पैदा कर देगा, इसकी कल्पना तो भारत ही नहीं पूरी दुनिया ने भी नहीं की होगी? भारतीय भारत में तो अतिथि भव की संस्कृति को पूरी दुनिया सलाम करती आई है, लेकिन कोरोना वायरस ने इन सबके अर्थ ही बदल दिये, जिसमें अपने और पराए संदिग्ध की एक ही श्रेणी में आंके जाने लगे। हालात यहां तक पहुंच गये कि भारतीय संस्कृति में जहां अतिथि देवो भव का भाव हर मानव जाति के दिल में होता था, अब वह भाव ही बदल गया। मसलन अब अतिथि देवो भव वाली भारतीय संस्कृति भी कोरोनाग्रस्त यानि संक्रमित होकर उसके विपरीत आतिथेय कुभाव का रूप धारण करती देखी जा रही है। कोरोना संकट में स्थिति स्पष्ट है कि पूरे देश में लॉकडाउन अपनी जगह, लेकिन यदि अपना कोई रिश्तेदार भी अपने किसी घर में जाता है तो उसे संदिग्ध रूप से देखा जा रहा है और उसके साथ आतिथेय कुभाव जैसा बर्ताव हो रहा है। सामाजिक विशेषज्ञों की माने तो कोरोना का भय इतना सता रहा है कि लोग अपने घरों को भी सेनाटाइज करके संभल कर रह रहे हैं और यदि कोई जानकार या मेहमान विपरीत परिस्थतियों में उनके घर आना भी चाहे तो उसे जहां भी है वहीं रहने की सलाह दी जा रही है। शहरों से अपने गांवों की तरफ लौट रहे लोगों को भी अपने गांव तक में नहीं घुसने दिया जा रहा है। वाकई ऐसा किसी सोचा भी नहीं था कि ऐसे हालात भी सामने होंगे कि भारतीय तहजीबी सत्कार कभी बदलेंगे जिसका रुप होगा कोरोनाग्रस्त संस्कृति...! 
03May-2020

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें