रविवार, 31 मई 2020

राग दरबार: एक अनार सौ बीमार\राहुल की मजबूरी!

सियासत का मुद्दा
देश में केंद्र सरकार द्वारा लॉकडाउन में फंसे प्रवासियों खासकर श्रमिकों को उनकी घर वापसी कराने की मुहिम शायद किसी भी विपक्षी दलों को रास नहीं आ रही है। मसलन विपक्षी दलों की सियासत का मुद्दा बने श्रमिकों को लेकर हरेक कांग्रेस ही नहीं बल्कि ज्यादातर विपक्षी दल मजदूरों को मजबून बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें पहले उनके रेल किराए पर सवाल उठाए गये, फिर कांग्रेस ने बसों की सियासत शुरू कर दी। यही नहीं मजदूरों के इस मुद्दे को कई विपक्षी दल लपकने का प्रयास कर रहे हैं, जिसमें बसपा की मायावती ने श्रमिक ट्रेनों में अपने घर जाने वालें मजदूरों को पीडित करार देते हुए उस केंद्र सरकार पर श्रमिकों की उपेक्षा और तिरस्कार करने का आरोप लगाने से नहीं चूकी, जो इन परेशान प्रवासियों को उनके घर तक पहुंचाने के इंतजाम कर रहा है। कांग्रेस ने तो मजदूरों को अपनी सियासत का ऐसा मुद्दा बनाया जिसे वह अदालत तक ले गई, जिसने संज्ञान लेते हुए राज्य सरकारों को उनके लिए सुविधाएं जुटाने के आदेश दिये। सियासी गलियारों में हो रही चर्चा को माने तो कांग्रेस, बसपा व सपा खासतौर से मजदूरों की आड़ में उनकी हितैषी बनकर उत्तर प्रदेश की सियासी जमीन तलाशने का प्रयास कर रही हैं। बसपा मायावती के ताजा आरेप पर सोशल मीडिया में जिस प्रकार की टिप्पणियां सामने आ रही हैं, उसमें यहां तक कहा गया कि बहन जी मजदूरों की सियासत में पिछड गई, क्योंकि 90 फीसदी मजदूरों की घर वापसी हो चुकी है जब अदालत का फैसला आया, ऐसे में मजदूरों की मदद व सुविधाओं के लिए उनकी पार्टी आगे क्यों नहीं आ रही है, शायद ऐसे दलों के लिए मजदूर दलित राजनीति के लिए होते हैं मदद के लिए नहीं? कोरोना महामारी के बीच मजदूरों की सियासत को लेकर यह कहावत राजनीतिक दलों पर सटीक बैठ रही है कि एक अनार सौ बीमार..!
राहुल की मजबूरी!
देश की सियासत में वोट बैंक की वापसी के लिए जिस प्रकार कांग्रेस कोरोना संकट के बीच भी केंद्र सरकार को घेरने का प्रयास कर रही है उसमें कांग्रेस युवराज यानि पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ऐसे बयान भी देते नजर आ रहे हैं, जिनके लिए उन्हें सफाई पेश करनी पड़ती है। ऐसा ही एक मौका उस समय आया, जब हाल ही में उन्होंने ने एक वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए प्रेस वार्ता के दौरान एक सवाल के जवाब में कहा कि महाराष्ट्र में कांग्रेस न तो सरकार चला रही है और न ही नीतिगत फैसले कर रही है, बल्कि ठाकरे सरकार को समर्थन दे रही है। राहुल के इस बयान के बाद जिस प्रकार से सियासी हलचल तेज होना शुरू हुई और इस बयान के कई रूपों राजनीतिक व्याख्या होने लगी तो अपनी किरकिरी होते देख राहुल ने जिस प्रकार सफाई दी अपने बयान को तोडमरोड कर पेश करने के लिए उसका ठींकरा मीडिया पर ही फोड़ने का प्रयास किया। जबकि यह बयान वीडियो रिकार्डिंग में रिकार्ड पर है। बहरहाल राहुल को बाद में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को फोन के जरिए यह भरोसा दिलाना पड़ा कि कांग्रेस का उनकी सरकार को मजबूती देने के लिए समर्थन जारी रहेगा। जबकि कांग्रेस के नेताओं ने माना है कि राहुल जान बूझकर ऐसा बयान महाराष्ट्र सरकार और दिल्ली में बैठे कांग्रेस नेताओं के बीच मध्यस्थ बने लोगों को संदेश देने के मकसद से दिया है। कांग्रेस युवराज के लिए ऐसा पहली बार नहीं हुआ, जिसमें वे अपने बुने जाल में न फंसे हों। राजनीतिकारों की माने तो ऐसे बयान देना उनकी सियासी मजबूरी है।
31May-2020

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