दिल्ली मंडल
के बिजली खर्च में आइर 75 फीसदी कमी
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली।
भारतीय रेलवे सभी एलएचबी कोचों वाली
ट्रेनों में ‘हेड ऑन जनरेशन’ तकनीक प्रणाली शुरू कर रहा है। ऊर्जा बचत और
पर्यावरण की दिशा में उत्तर रेलवे के दिल्ली डिवीजन ने ऐसी 44 ट्रेनों को हेड ऑन जेनरेशन तकनीक से परिवर्तित करते
हुए 75 फीसदी बिजली की बचत करने का दावा किया है।
दिल्ली रेलवे मंडल के जनसंपर्क अधिकारी अजय माइकल ने गुरुवार को यह जानकारी
देते हुए बताया कि उत्तर रेलवे के दिल्ली मंडल ने ‘हेड ऑन जेनरेशन’(एचओजी)
प्रणाली पर 44 ट्रेनों में 54 रेक को परिवर्तित करके उन्हें सफलतापूवर्क चलाकर एक इतिहास कायम किया है। उत्तर रेलवे के दिल्ली
मंडल ने अपने ऊर्जा बिलों में कटौती करने के साथ ही पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से हेड ऑन जेनरेशन (एचओजी) तकनीक की शुरुआत की है।
उत्तर रेलवे के दिल्ली मंडल पीआरओ के मुताबिक दिल्ली मंडल की ट्रेनें के परिचालन लागत में कमी और राजस्व
में वृद्धि हुई और इस प्रणाली में प्रति इकाई लागत ईओजी प्रणाली का केवल 25 फीसदी रहा है। इसलिए एचओजी ऑपरेशन के साथ 75 फीसदी ऊर्जा की की बचत हुई है। दिल्ली मंडल ने
यह प्रणाली 44 एलएचबी कोच वाली ट्रेनों में इस्तेमाल की है और इस
प्रणाली से उम्मीद है कि दिल्ली मंडल को सालाना 12000 किलोवाट
एचएसडी
तेल खपत की बचत के साथ 20 करोड़ रुपये के राजस्व की बचत भी होगी। एचओजी तकनीकी प्रणाली में आपातकालीन प्रयोग के लिए
एक पॉवर कार को रखते हुए एक पॉवर कार को हटाया जा सकता है और एक अतिरिक्त एसी कोच को रेक के साथ
जोड़ा जा सकता है। इससे रेलवे को अतिरिक्त राजस्व भी प्राप्त होगा और यात्रियों को
सुविधा होगी। वहीं पर्यावरण
के अनुकूल इस
तकनीक से ईओजी प्रणाली
में दो प्रकार के प्रदूषण से मुक्ति मिलेगी, जिसमें हाई स्पीड डीजल के जलने के कारण वायु प्रदूषण और दूसरा डीए सेट द्वारा शोर प्रदूषण।
इसिलए एचओजी प्रणाली दोनों प्रकार
के प्रदूषण से मुक्त है।
कार्बन उत्सर्जन कम होगा
उत्तर रेलवे के अनुसार दिल्ली मंडल को एचओजी प्रणाली के माध्यम से प्रतिवर्ष 30 हजार टन कार्बन उत्सर्जन को कम करने की उम्मीद है।
इस प्रकार कार्बन क्रेडिट को पर्यावरण में एचएसडी तेल के प्रयोग के माध्यम से कार्बन का उत्सर्जन नहीं करके अर्जित किया जा सकता है। इसके अलावा भारतीय रेलवे के लिए अधिक कार्बन क्रेडिट अर्जित करने
के लिए कार्बन उत्सर्जन में सालाना 10 हजार मैट्रिक टन की कमी होने की उम्मीद है।
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ट्रेनों में सामाजिक दूरी का उल्लंघन होते ही बजेगा
अलार्म
रेलवे के इंजीनियरों ने इजाद की सूक्ष्म डिवाइस
हरिभूमि ब्यूरो.नई दिल्ली।
कोरोना वायरस महामारी के बीच दक्षिणी रेलवे सिग्नल एंड टेलीकम्यूनिकेशन के इंजीनियरों
ने सोशल डेस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए एक डिवाइस बनाई है। इस डिवाइस के जरिए कोरोना
वायरस से लड़ने में मदद मिलेगी और उसे फैलने से रोका जा सकता है।
इसकी खास बात ये है कि अगर दो डिवाइस एक दूसरे से तीन मीटर की दूरी से कम के दायरे
में चले आते हैं तो अलार्म बजने लगता है। इससे यह पता चल जाता है कि सोशल डिस्टेंसिंग
बनानी है। डिवाइस जेब या पर्स में फिट हो सकता है और कलाई घड़ी के साथ भी इसे इस्तेमाल
किया जा सकता है। इसका वजन लगभग 30 ग्राम है।
दक्षिण रेलवे के त्रिवेंद्रम डिवजन के सीनियर डिविजनल सिग्नल एंड टेलीकम्युनिकेशन
इंजीनियर आर दिनेश ने बताया कि यह ऑन-ड्यूटी रेलवे कर्मचारियों की सुरक्षा के लिए बनाया
गया है। उन्होंने अपने जूनियर इंजीनियर आर निधेज के साथ मिलकर इस डिवाइस को विकसित
किया है। उन्होंने बताया कि सोशल डिस्टेंसिंग सुनिश्चित करने वाले दो या दो से अधिक
लोग डिवाइस के 2-3 मीटर की दूरी के भीतर आते हैं, तो यह उन्हें अलार्म ध्वनि से चेतावनी देगा। अलार्म तब
तक बजता रहेगा, जबतक की उनके बीच तीन मीटर
से अधिक की दूरी ना बन जाए।
बड़े काम की चीज साबित हो सकता है
अलार्म बजते ही ये समझ आ जाता है कि नजदीकी बढ़ गई है और दूर जाने की जरूरत है।
काम करने की जगह जैसे ऑफिस, फैक्ट्री आदि में ये डिवाइस
बड़े काम की चीज साबित हो सकता है। डिवाइस को चार्जर की मदद से चार्ज किया जा सकता
है। एक बार चार्ज करने के बाद, यह बारह घंटे से अधिक समय
तक काम करेगा। दिनेश ने कहा कि हमने एक प्रोटोटाइप विकसित किया है और इसे सफलतापूर्वक
परीक्षण किया गया है। हम इसे बड़े पैमाने पर बनाने के लिए अन्य जोनल रेलवे या रेलवे
कार्यशालाओं में प्रौद्योगिकी को स्थानांतरित करने के लिए भी तैयार हैं। यह पहली बार
नहीं है कि रेलवे ने कोई खास डिवाइस बनाई है। इससे पहले रेलवे ने एक रोबोट कैप्टन अर्जुन
पेश किया था, जो यात्रियों की स्क्रीनिंग
करता था। इस रोबोट में कैमरा लगा होता है, जिससे वह थर्मल स्क्रीनिंग करता है और अगर किसी का तापमान अधिक होता है तो तुरंत
सजग भी कर देता है।
10July-2020
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