
ग्राउंड रिपोर्ट: विदर्भ के किसानों को भाने लगी महामार्ग विकास में जलसंवर्धन की परियोजना
बुलढाणा लौटकर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
महाराष्ट्र के जल संकट से जूझते विदर्भ में बुलढाणा जिले और
आसपास के जिलों के किसानों की आय ऐसे ही नहीं बढ़ने लगी। इसके पीछे केंद्र सरकार
की सड़क परियोजना के साथ बिना खर्च के जलसंवर्धन की संकल्पना के तहत चलाई गई दोहरी
विकास परियोजना क्षेत्र के ग्रामीणों और किसानों के लिए ऐसी वरदान बन रही है। इसी
परियोजना को ‘बुलढाण पैटर्न’ नाम दिया गया है, जिसके कारण आज अकेले बुलढाणा जिले
में सैकड़ो गांवों के ग्रामीणों को पीने, खेती की सिंचाई के लिए पानी मिलने से जल
संकट खत्म होने से पशु तथा मछली पालन भी आबाद हो रहा है।
केंद्रीय सड़क मंत्रालय ने नेशनल मीडिया को ‘बुलढाणा
पैटर्न’ का स्थलीय भ्रमण कराकर इस अनोखी और दोहरी परियोजना को दिखाया है, जहां
हरिभूमि संवाददाता ने एनएचएआई और महाराष्ट्र सरकार के लोकनिर्माण और जल संकट से
बहुत बड़ी राहत महसूस कर रहे किसानों व ग्रामणों से भी मौके पर बातचीत की। खासकर
जहां जलसंवर्धन कई गुणा बढ़ा है उनमें बुलढाणा जिले के कई गांवों के ग्रामीणों,
किसानों, पशुपालकों से बातचीत के बाद यह तथ्य सामने आए कि विदर्भ के किसानों और
ग्रामीणों को यह ‘बुलढाणा पैटर्न’ भा रहा है, जिसके कारण ग्रामीणों के पलायन और
किसानों की आत्महत्याओं में बेहद कमी आई है। सड़क परिवहन मंत्रालय के अधिकारियों
ने दावा किया है कि बुलढाणा जिले की खामगांव तहसील के लांजूड जलाशय से लांजूड के
अलावा बालापुर, खामगांव, मलकापुर, लांजूड, सुटाला, पिंपरी, सूजातपुर, मोरगांव जैसे
12 गांवों में 42,877 लोगों के लिए 272 हैक्टेयर खेती की सिंचाई के लिए जलसंवर्धन
के कारण 1737 टीसीएम जलसंचय वाले तालाबों को पुनर्जिवित किये गये हैं और 700 कुओं
की रिफलिंग की गई है। वहीं जलाशयों, नदी-नालों के गहरीकरण से निकाली गई 55.10 लाख
कयूबिक मीटर मरुम मिट्टी का इस्तेमाल सड़क निर्माण परियोजना में इस्तेमाल किया गया
है।
गांवों में किसानों व ग्रामीणों को मिली नई जिंदगी
बुलढाणा जिले के हिवरखेड का जलाशय यानि तालाब में लबालब
पानी भरा था, जहां अक्सर बरसात के बाद फरवरी तक पानी सूख जाता था। इस गांव के
किसान और पशुपालक अशोक राव हटकर ने बताया कि इसी जलसंवर्धन के कारण तालाबों में
बढ़ी जल क्षमता के कारण आज वे जहां एक साल में एक खेती भी पूरी तरह नहीं ले पाते
थे, वहीं अब दो या तीन फसले लेकर संपन्न होने लगे हैं, उन्होंने बताया कि जल
क्षमता बढ़ने से खेती की सिंचाई के साथ हिवरखेड समेत तीन-चार गांवों में कुओं के
पुनर्भरण के लिए रिसाईक्लीन के जरिए गांवों में पीने का पानी भी पहुंच रहा है। खुद
500 भेड-बकरियों और गाय पालने का काम करने वाले अशोक हटकर ने बताया कि उनके गांव
में खेती और पशुपालन का काम ज्यादा है, जहां भेड़ बकरियों के पालन के आबाद होने से
फिलहाल गांव में करीब एक लाख पशुओं का पालन हो रहा है। वहीं तालाबों में मछली पालन
का काम करके ग्रामीण एवं किसान अब इतने संपन्न होते जा रहे हैं कि वे अपने चार
पहिया वाहन भी इस्तेमाल करने लगे। वहीं भेड़-बकरी
पालक हटकर समुदाय के सुरेन्द्र सुखदेव हटकर का कहना है कि इस पैटर्न ने ऐसी
जिंदगी बदली है कि अब उनके समुदाय के लोगों को अपने मवेशियों को लेकर
पड़ोस के जिले अकोला, जालना और जलगांव
जाना नहीं
पड़ता है। ग्रामीणों ने दावा किया कि जलाशयों के पुनर्जीवित होने से जहां पलायन का संकट टला
है, वहीं पानी और खेतों में हरा चारा मिलने से मवेशी आबाद हो रहे
हैं। इसी तरह चिखली के जलाशय में जलसंवर्धन के कारण बढ़े पानी को लेकर सैलूदा गांव निवासी किसान सुखेदव संपत और
भिखाजी राव जाधव ने इस तालाब से 17 गांवों के आबाद होने की कहानी बताई, जो अपनी
आजीविका बढ़ने से प्रफ्फुलित नजर आ रहे थे।
पानी से लबालब भरे जलाशय
विदर्भ में मीडिया के प्रतिनिधिमंडल ने औरंगाबाद से नागपुर
राष्ट्रीय राजमार्ग के सफर में औरंगाबाद जालना जिले के बाद
जैसे ही बुलढाणा सीमा में प्रवेश किया, तो मार्ग के दोनों किनारों
पर बड़े-बड़े पानी से लबालब जलाशय और हरीभरी खेती नजर आए, जिनकी जानकारी लगातार
एनएचएआई और महाराष्ट्र के लोक निर्माण तथा जल संबन्धी विभागे अधिकारी दे रहे थे।
इन सूखाग्रस्त क्षेत्रों जहां पिछले साल तक इन तालाबों में फरवरी महीने
में पानी नजर भी नहीं आता था। मसलन अकेले बुलढाणा जिले में औरंगाबाद से
नागपुर तक 491 किमी लंबी महामार्ग विकास की परियोजना में बिनाखर्च के जलसंवर्धन के
कार्य से अकेले बुलढाणा जिले में 152 गांवों के 4.84 लाख लोगों को पानी मुहैया हो
रहा है। हालांकि एनएचएआई के अधिकारियों ने अभी तक 300 किमी नेशनल हाइवे बनाने का
दावा करते हुए बताया कि बाकी निर्माण कार्य को दिसंबर 2020 तक पूरा कर लिया जाएगा।
अधिकारियों और ग्रामीणों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि सड़क निर्माण के साथ
जलसंवर्धन की दिशा में हो रहे काम से खेतों में सिंचाई हो रही है, लोगो को पीने का
पानी मिल रहा है और पशुओं के लिए भी पर्याप्त पानी मिल रहा है तो किसानों की आय
बढ़ना स्वाभाविक है। ग्रामीणों और किसानों की बदल रही जिंदगी को ही ‘बुलढाणा
पैटर्न’ का नाम दिया गया है।
01Mar-2020
मच्छी पालन व्यवसाय शुरू कैसे करें परवानगी कहां से निकाले
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